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________________ ta अष्टाङ्गार्थ्य-अष्टाध्यायी ८. समाधि (जब ध्यान अपना स्वरूप छोड़कर ध्येय के आकार में भासित होता है तब उसे समाधि कहते हैं।) समाधि की अवस्था में ध्यान और ध्याता का भान नहीं रहता, केवल ध्येय रह जाता है। ध्येय के ही आकार को चित्त धारण कर लेता है । इस स्थिति में ध्यान, ध्याता और ध्येय की एक समान प्रतीति होती है। (२) 'अष्टाङ्गयोग' नामक दो ग्रन्थों का भी पता चलता है । एक तो श्री चरनदास रचित है, जो चरनदासी पंथ के चलाने वाले थे। इस पंथ में योग की प्रधानता है, यद्यपि ये उपासना राधा-कृष्ण की करते हैं। रचनाकाल अठारहवीं शती है । दूसरा 'अष्टाङ्गयोग' गुरु नानक का रचा बताया जाता है। धारणा, ध्यान और समाधि योग के इन तीन अङ्गों को संयम कहते हैं। इनमें सफल होने से प्रज्ञा का उदय होता है । (योगसूत्र) अष्टाङ्गाऱ्या-आठ द्रव्यों से बनाया गया पूजा का एक उपकरण । तन्त्र में कथन है : आपः क्षीरं कुशाग्राणि दधि सर्पिः सतण्डुलाः । यवाः सिद्धार्थकश्चैव अष्टाङ्गार्ग्यः प्रकीर्तितः ॥ [ जल, दूध, कुश का अग्रभाग, दही, घी, चावल, जौ, सरसों ये मिलाकर अष्टाङ्गाऱ्या कहे गये हैं।] स्कन्दपुराण (काशीखण्ड) में कथन है : आपः क्षीरं कुशाग्राणि धृतं मधु तथा दधि । रक्तानि करवीराणि तथा रक्तं च चन्दनम् ॥ अष्टाङ्ग एष अयॊ वै मानवे परिकीर्तितः ॥ [ जल, दूध, कुश का अग्रभाग, घी, मधु, दही, करवीर के रक्तपुष्प तथा लालचन्दन सूर्य के लिए यह अष्टाङ्ग अर्ध्य कहा गया है।] अष्टादशरहस्य-आचार्य रामानुजरचित एक ग्रन्थ । अष्टावशलीलाकाण्ड-चैतन्यदेव के शिष्य एवं प्रकाण्ड विद्वान् रूप गोस्वामी का रचा हुआ एक ग्रन्थ । अष्टावशस्मृति-इस नाम का एक प्रसिद्ध स्मृतिसंग्रह। इसमें मनु और याज्ञवल्क्य की स्मृतियाँ नहीं हैं। इन दो के अतिरिक्त जिन स्मतियों का संग्रह इसमें किया गया औशनसस्मृति, ५. आङ्गिरसस्मति, ६. यमस्मति, ७. आपस्तम्बस्मृति, ८. संवर्तस्मृति, ९. कात्यायनस्मृति, १०. बृहस्पतिस्मृति, ११. पराशरस्मृति, १२. व्यासस्मृति, १३. शङ्ख-लिखितस्मृति, १४. दक्षस्मृति, १५. गौतमस्मृति, १६. शातातपस्मृति, १७. वसिष्ठस्मृति और १८. स्मृतिकौस्तुभ । ___इस संग्रह में विष्णुस्मृति भी सम्मिलित है, किन्तु उसके केवल पाँच अध्याय ही दिये गये हैं, जब कि वङ्गवासी प्रेस की छपी विष्णुसंहिता में कुल मिलाकर एक सौ अध्याय हैं । अष्टाध्यायी-पाणिनिरचित संस्कृत व्याकरण का प्रसिद्ध ग्रन्थ । इसमें आठ अध्याय हैं। इसका भारतीय भाषाओं पर बहुत बड़ा प्रभाव है । साथ ही इसमें यथेष्ट इतिहास विषयक सामग्री भी उपलब्ध है । वैदिक भाषा को ज्ञेय, विश्वस्त, बोधगम्य एवं सुन्दर बनाने की परम्परा में पाणिनि अग्रणी हैं। संस्कृत भाषा का तो यह ग्रन्थ आधार ही है। उनके समय तक संस्कृत भाषा में कई परिवर्तन हुए थे, किन्तु अष्टाध्यायी के प्रणयन से संस्कृत भाषा में स्थिरता आ गयी तथा यह प्रायः अपरिवर्तनशील बन गयी। ___अष्टाध्यायी में कुल सूत्रों की संख्या ३९९६ है । इसमें सन्धि, सुबन्त, कृदन्त, उणादि, आख्यात, निपात, उपसंख्यान, स्वरविधि, शिक्षा और तद्धित आदि विषयों का विचार है। अष्टाध्यायी के पारिभाषिक शब्दों में ऐसे अनेक शब्द हैं जो पाणिनि के अपने बनाये हैं और बहत से ऐसे शब्द है जो पूर्वकाल से प्रचलित थे । पाणिनि ने अपने रचे शब्दों की व्याख्या की है और पहले के अनेक पारिभाषिक शब्दों की भी नयी व्याख्या करके उनके अर्थ और प्रयोग का विकास किया है। आरम्भ में उन्होंने चतुर्दश सुत्र दिये हैं। इन्हीं सूत्रों के आधार पर प्रत्याहार बनाये गये हैं, जिनका प्रयोग आदि से अन्त तक पाणिनि ने अपने सूत्रों में किया है। प्रत्याहारों से सूत्रों की रचना में अति लाघव आ गया है । गणसमूह भी इनका अपना ही है । सूत्रों से ही यह भी पता चलता है कि पाणिनि के समय में पूर्व-अञ्चल और उत्तर-अञ्चलवासी दो श्रेणी वैयाकरणों की थीं जो पाणिनि की मण्डली से अतिरिक्त रही होंगी। १.अत्रिस्मृति, २. विष्णुस्मृति, ३. हारीतस्मृति, ४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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