SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 702
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८८ वर्णन होता है और उनसे स्तुतिकर्ता के अथवा संसार के कल्याण की कामना की जाती है । (२) दुर्गा का एक पर्याय | देवीपुराण ( अध्याय ४५ ) के अनुसार दुर्गा के निम्नांकित नाम हैं: । स्तुति सिद्धिरितिख्याता श्रयाः संश्रयाश्च सा । लक्ष्मीर्या ललना वापि क्रमात् सा कान्तिरुच्यते ॥ स्तोता वेदमन्त्र स्तुतिपाठक था स्तवकर्ता ऋग्वेद ( ८. ४४-१८) में कथन है: "स्तोता स्यां तव शर्मणि । " निघण्टु ( ३. १३) में इसके तेरह पर्याय पाये जाते हैं । स्तोत्र - स्तुति करने की पचनावली मत्स्यपुराण (अध्याय १२१) में इसके चार प्रकार बतलाये गये हैं : ऋचो यजूंषि सामानि तथावत् प्रतिदैवतम् । विधिहोत्र तथा स्तोष पूर्ववत् सम्प्रवर्तते ॥ द्रव्यस्तो कर्मस्तोत्र विधिस्तोत्रं तथैव च । तथैवाभिजनस्तोत्र' स्तोत्रमेतच्चतुष्टयम् ॥ स्तोम - साम ( गान ) के अन्तर्गत गीत और आलाप के पूरक एवं अर्थरहित अक्षरों को स्तोम कहते हैं । छान्दोज्ञोपनिद् ब्राह्मण ( प्रथम प्रपाठक ) में इसके त्रयोदश भेद बतलाये गये हैं। स्त्रीधन - हिन्दू परिवार के पितृसत्तात्मक होने के कारण धर्मशास्त्र के अनुसार पुरुष कुलपति के मरने पर उत्तराधिकार परिवार के पुरुष सदस्यों को प्राप्त होता था । उनके अभाव में ही स्त्री उत्तराधिकारिणी होती थी। इस अवस्था में भी उसका उत्तराधिकार बाधित था। वह सम्पत्ति का केवल उपयोग कर सकती थी; वह उसे बेंच अथवा परिवार से अलग नहीं कर सकती थी । उसके मरने पर पुनः पुरुष को अधिकार मिल जाता था। यह एक प्रकार से सम्पत्ति के उत्तराधिकार का माध्यम मात्र थी । परन्तु पारिवारिक सम्पत्ति को छोड़कर उसके पास एक अन्य प्रकार की सम्पत्ति होती थी जिस पर उसका पूरा अधिकार था। वह परिवार की पैतृक सम्पत्ति से भिन्न थी । उसको स्त्रीधन कहते थे । नारद के अनुसार स्त्रीधन छः प्रकार का होता है : अध्यग्न्यभ्यावाहनिकं भर्तृदायं तथैव च । भातृदत्तं पितृभ्याञ्च षड्विधं स्त्रीधनं स्मृतम् ॥ [ विवाह के समय प्राप्त, विदाई के समय प्राप्त, पति से प्राप्त भाई द्वारा दिया हुआ, माता और पिता से दिया हुआ; यह छः प्रकार का स्त्रीधन कहलाता है । ] दूसरे 1 Jain Education International स्तोता - स्त्रीधन स्रोतों से धनसंग्रह करने में स्त्री के ऊपर प्रतिबन्ध लगा हुआ है । कात्यायन का कथन है : प्राप्तं शिल्पैस्तु यद्वित्तं प्रीत्या चैव यदन्यतः । भर्तृः स्वाम्यं भवेत्तत्र शेषंतु स्त्रीपनं स्मृतम् ॥ [ जो धन शिल्प से प्राप्त होता है अथवा दूसरे प्रेमोपहार में प्राप्त होता है उसके ऊपर पति का अधिकार होता है; शेष को स्त्रीधन कहते हैं ] काम कर के कमाया हुआ धन परिवार के अन्य सदस्यों की कमाई की भाँति परिवार की सम्पत्ति होता है, जिसका प्रबन्धक पति है । स्त्रियों को अपने सम्बन्धियों के अतिरिक्त अन्य से प्रेोपहार ग्रहण करने में प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है । कारण स्पष्ट है । मिताक्षरा (अध्याय २) ने स्त्रीधन का प्रयोग सामान्य अर्थ में किया है और सभी प्रकार के स्त्रीधन पर स्त्री का अधिकार स्वीकार किया है। दायभाग (अध्याय ४) में स्त्रीधन उसी को माना गया है जिस पर स्त्री को दान देने, बेचने का और पूर्णरूप से उपयोग ( पति से स्वतन्त्र ) करने का अधिकार हो । परन्तु सौदायिक (सम्बन्धियों से प्रेमपूर्वक प्राप्त) पर स्त्री का पूरा अधिकार माना गया है । कात्यायन का कथन है : ऊढया कन्यया वापि पत्युः पितृगृहेऽथवा । भर्तुः सकाशात् पित्रोर्वा लब्धं सौदायिकं स्मृतम् ॥ सौदायिकं धनं प्राप्य स्त्रीणां स्वातन्त्रमिष्यते । यस्मात्तवानृशंस्यार्थ तैर्वतं तत् प्रजीवनम् ॥ सौदायिके सदा स्त्रीणां स्वातन्त्र्यं परिकीर्तितम् । विक्रये चैव दाने च यथेष्टं स्वावरेष्वपि ॥ किन्तु नारद ने स्थावर पर प्रतिबन्ध लगाया है भर्त्रा प्रीतेन हतं स्त्रियं तस्मिन्मृतेऽपि तत् । सा यथा काममश्नीयादचाहा स्वावरादृते ।। [ जो धन प्रीतिपूर्वक पति द्वारा स्त्री को दिया जाता है उस धन को पति के मरने पर भी स्त्री इच्छानुसार उपभोग में ला सकती है, अचल सम्पत्ति को छोड़ कर । ] कात्यायन के अनुसार किन्हीं परिस्थितियों में, स्त्री स्त्रीधन से वञ्चित की जा सकती है अपकार क्रियायुक्ता निर्लज्जा चार्थनाशिनी । व्यभिचाररता या च स्त्रीधनं न च सार्हति ॥ [ अपकार क्रिया में रत निलज्जा, अर्थ का नाश करनेवाली, व्यभिचारिणी स्त्री स्त्रीधन की अधिकारिणी नहीं होती । ] सामान्य स्थिति में पति आदि सम्बन्धियों का For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy