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________________ स्कन्दपुराण है । वह शत्र का वधकर फिर वापस आ जाता है । उनका वाहन मयूर है, उनका लांछन (ध्वजचिह्न) मुर्गा है । ध्वज अग्निप्रदत्त तथा प्रलयाग्नि के समान लाल है, जो उनके रथ के ऊपर प्रज्वलित रूप में फहराता है। स्कन्द का सम्प्रदाय बहुत प्राचीन है। पतञ्जलि के महाभाष्य में स्कन्द की मूर्तियों का उल्लेख है। कतिपय कुषाण मुद्राओं पर उनका नाम अंकित है । गुप्तकाल में, विशेषकर, उत्तर भारत में, स्कन्द पूजा का बहुत प्रचार था। स्कन्द चालुक्य वंश के इष्टदेव थे। आजकल उत्तर भारत में स्कन्द पूजा का प्रचार कम और दक्षिण भारत में अधिक है। कुमार (ब्रह्मचारी) होने के कारण स्त्रियाँ उनकी पूजा नहीं करतीं । सुदूर दक्षिण के कई देवताओं मुरुगन (बालक), वेलन (शक्तिधर), शेय्यान (रक्तवर्ण) आदि से स्कन्द का अभेद स्थापित किया गया है। भारत में कई नामों से स्कन्द अभिहित होते हैं-कुमार, कार्तिकेय, गुह, रुद्रसुनु, सुब्रह्मण्य (ब्राह्मणत्व की रक्षा करने वाले), महासेन, सेनापति, सिद्धसेन, शक्तिधर, गङ्गापुत्र, शरभू, तारकजित्, षड्मुख, षडानन, पावकि आदि । योगमार्ग की साधना में स्कन्द पवित्र शक्ति के प्रतीक हैं । तपस्या और ब्रह्मचर्य के द्वारा जिस शक्ति (वीर्य) का संरक्षण होता है वही स्कन्द और कुमार है। योग में जब तक पूर्ण संयम नहीं होता तब तक शक्ति (-कुमार) का जन्म नहीं होता । सृष्टि विज्ञान में स्कन्द सूर्य की वह शक्ति है जो वायुमण्डल के ऊपर स्थित होती है और जिससे संवत्सराग्नि (वर्ष उत्पन्न करनेवाली अग्नि) का उदय होता है। स्कन्द का प्रथम उल्लेख मैत्रायणी संहिता में मिलता है । छान्दोग्योपनिषद् में स्कन्द को सनत्कुमार से अभिन्न माना गया है । गृह्यसूत्रों में भी स्कन्द का उल्लेख उनके घोर रूप में है । महाभारत और शिवपुराण में जो कथा स्कन्द की पायी जाती है वही कालिदास द्वारा कुमारसंभव में ललित रूप में कही गयी है । तन्त्रों में भी स्कन्द पूजा का विधान है। स्कन्दपुराण स्कन्द के नाम से ही प्रसिद्ध है, जो सबसे बड़ा पुराण है। स्कन्द के उपदेश इसमें वर्णित हैं। स्कन्द पुराण-कार्तिकेय अथवा स्कन्द ने इस पुराण में शिवतत्त्व का विवेचन किया है। इसीलिए इसको 'स्कन्द पुराण' कहते है । आकार में यह सबसे बड़ा पुराण है। इसमें छः संहितायें (सूत संहिता, २०.१२ के अनुसार), सात खण्ड (नारद पुराण के अनुसार) और ८१००० श्लोक हैं। इसमें निम्नांकित संहितायें हैं : १. सनत्कुमार संहिता (३६००० श्लोक) २. सूत संहिता (६००० श्लोक) ३. शङ्कर संहिता (३०००० श्लोक) ४. वैष्णव संहिता (५००० श्लोक) ५. ब्राह्म संहिता (३००० श्लोक) ६. सौर संहिता (१००० श्लोक) संहिताओं में केवल तीन ही इस समय उपलब्ध है(१) सनत्कुमार संहिता, (२) सूत संहिता (३) शङ्करसंहिता । शैव उपासना की दृष्टि से सूत संहिता का बड़ा महत्त्व है। इसमें वैदिक तथा तान्त्रिक दोनों प्रकार की पूजाओं का विस्तृत वर्णन पाया जाता है। इस पर माधवाचार्य की 'तात्पर्यदीपिका' नामक एक विशद व्याख्या है । इस संहिता के चार खण्ड है-(१) शिव माहात्म्य, (२) ज्ञानयोग खण्ड, (३) मुक्तिखण्ड और (४) यज्ञवैभव खण्ड । अंतिम खण्ड सबसे बड़ा है। उसके दो भाग हैं-पूर्वभाग और उत्तर भाग । यह खण्ड दार्शनिक दृष्टि से भी महत्त्व का है। इसके उत्तर भाग में दो गीतायें सम्मिलित है-ब्रह्म गीता और सूत गीता । इनका विषय भी दार्शनिक है। इसमें यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि मुक्ति और भक्ति सब कुछ शिव के प्रसाद से ही संभव है । शङ्कर संहिता कई भागों में विभक्त है । इसके प्रथम खण्ड को 'शिवरहस्य' कहते हैं। इसमें सात काण्ड और १३००० श्लोक है। इसके सात काण्ड इस प्रकार हैं-(१) संभव काण्ड (२) आसुर काण्ड (३) माहेन्द्रकाण्ड (४) युद्ध काण्ड (५) देवकाण्ड (६) दक्षकाण्ड और (७) उपदेश काण्ड । सनत्कुमार संहिता में केवल बाईस अध्याय हैं । स्कन्दपुराण के खण्डों का विवरण निम्नांकित है : १. माहेश्वर खण्ड के दो उपखण्ड हैं-केदार खण्ड और कुमारिका खण्ड । इन दोनों में शिव-पार्वती की लीलाओं एवं तीर्थ व्रत, पर्वत आदि के सुन्दर वर्णन है। २. वैष्णव खण्ड के अन्तर्गत उत्कल खण्ड है जिसमें जगन्नाथ जी के मन्दिर का वर्णन पाया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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