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________________ प्रकाशकीय नीति, सदाचार, शील तथा अध्यात्म सम्बन्धी मान्यताओं के समुदाय को धर्म की संज्ञा प्रदान की गयी है। हिन्दू धर्म का क्षेत्र बहत ही विस्तत है। इसमें व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, पारिवारिक, सभी जीवन-व्यवहारों को केंद्रित किया गया है । विचार अथवा चिंतन की व्यापकता और स्वतंत्रता का समग्ररूपेण समावेश हिन्दू धर्म में पाया जाता है। विभिन्न दर्शनों तथा उनके अनेक भेदों-विभेदों, शाखाओं, उपशाखाओं तथा इनसे अनुप्राणित स्वतन्त्र मत-मतान्तरों की व्यापकता भी इस धर्म में परिलक्षित होती है। बौद्धिक उदारता हिन्दू धर्म की अपनी अलग विशिष्टता है। जीवन के आचार की सुदीर्घ आस्थाओं और मान्यताओं से देश अथवा जाति की संस्कृति और ज्ञानचेतना के विविध आयामों का मापन किया जा सकता है। इस दृष्टि से भारत की धर्मपरम्परा का आभास प्रागैतिहासिक काल से ही होने लगता है। फिर क्रमशः वेद, वेदोत्तर ग्रन्थ, वेदांग, रामायण-महाभारत, स्मृति, पुराण, तन्त्र, आगम, त्रिपिटक स्याद्वाद कृतियाँ, सन्तवाणी, आदिग्रन्थ, वचनामृत, साखी, दोहरा आदि के माध्यम से भी धार्मिक वर्गीकरण की स्पष्ट झलक मिलती है। इस प्रकार पूर्वोक्त वाङमय की अथाह रचना और विपुल अनुष्ठानपद्धति का समुदाय इसमें दृष्टिगत होता है । इन सबमें पारंगत होना तो दूर, किसी एक पद्धति को समझना भी आज के व्यस्त जीवन में अशक्य प्रतीत होता है । सम्मान्य आचार्य तथा भारतीय संस्कृति, इतिहास एवं कला के सफल प्राध्यापक डॉ० राजबली पाण्डेय ने प्रस्तुत हिन्दू धर्मकोश के माध्यम से धर्म की इसी विशालता से परिचित कराने का उत्तम प्रयास किया है । उन्होंने हिन्दू धर्म के सभी अंगों, सम्प्रदायों, शाखाओं, मत-मतान्तरों का परिचयात्मक विवरण तो इसमें दिया हो है, इसकी पुष्टि और प्रामाणिकता के लिए सभी प्रवर्तक आचार्यों, ग्रन्थकारों, व्याख्याताओं, सिद्धांतनिरूपकों, अनुष्ठाताओं, अनुयायी शिष्यों और भक्तों का समीक्षात्मक परिचय भी सन्निहित किया है। साथ ही समस्त आधारभूत ग्रन्थरचनाओं, पुण्यस्थलों, तीर्थों, पूजाविधियों, भजन-ध्यान, जप, तप, व्रत, दान, उपासना आदि के सांगोपांग विवेचनात्मक संदर्भ भी प्रस्तुत किये हैं। संस्थान के हिन्दी समिति प्रभाग द्वारा इस अनन्यतम ग्रन्थ को प्रकाशित कर हिन्दी जगत् के समक्ष प्रस्तुत करने में हमें अत्यधिक प्रसन्नता और गौरव का अनुभव हो रहा है। डॉ० राजबली पाण्डेय आज हमारे बीच नहीं रहे, अन्यथा इस कोश का स्वरूप उनके सान्निध्य में और अधिक परिष्कृत एवं संस्कृत होता, ऐसा हमारा विश्वास है। कोश के सम्पादन और मद्रण में काशी विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यापक डॉ. विशुद्धानन्द पाठक और हिन्दी समिति के भूतपूर्व सहायक सम्पादक श्री चिरंजीवलाल शर्मा ने पूर्ण निष्ठा के साथ अथक श्रम किया है। उनके इस योगदान का ही प्रतिफल है कि इस कृति के माध्यम से, जिसमें हिन्दू धर्म की सुविस्तृत जानकारी सन्निहित है, स्वर्गीय डॉ० राजबली पाण्डेय की पवित्र स्मृति को उजागर करने में हम सफल हो सके हैं । विश्वास है, प्रस्तुत ग्रन्थ का सर्वत्र स्वागत और समादर होगा तथा हिन्दू धर्म के अध्येता, जिज्ञासू एवं अन्य सम्मान्य जन इसके माध्यम में अपेक्षित रूप से लाभान्वित हो सकेंगे। . . . हजारीप्रसाद द्विवेदी कार्यकारी उपाध्यक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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