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________________ सोमविक्रयो-सौदायिक ६८३ सोमविक्रयी-सोमलता अथवा उसके रस को बेचने वाला। भाग में चन्दन का प्रलेप तथा कर्पूर तथा वाम भाग में ऐसा करना पाप माना जाता था। सोमविक्रयी को दान केसर तथा तुरुष्क (लोवान धूप) लगाया जाय । देवीजी के देने वाला भी पापी माना जाता है । दे० मनु ३. १८०। शिरोभाग पर नीलम तथा शिवजी के सिर पर मुक्ता सोमवत-(१) यदि मास के किसी भी पक्ष में सोमवार स्थापित किया जाय । ततः श्वेत तथा अरुणाभ पुष्पों से को अष्टमी पड़ जाय तो व्रती को उस दिन शिव की पूजन होना चाहिए। सद्योजात नाम से तिलों का प्रयोग आराधना करनी चाहिए। प्रतिमा का दक्षिण पार्श्व शिव करते हुए होम करना चाहिए । वामदेव, सद्योजात, अघोर, का तथा वाम पार्श्व हरि तथा चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व तत्पुरुष और ईशान भगवान् शिव के पाँच मुख या रूप करता है। सर्वप्रथम शिवलिङ्ग को पञ्चामृत से स्नान हैं । दे० तैत्तिरीय आरण्यक १०.४३-४७ । कराकर चन्दन तथा कपूर दक्षिण पार्श्व में तथा केसर, सोरों ( सूकरक्षेत्र अथवा वाराहक्षेत्र)-उत्तर प्रदेश में अगर, उशीर वाम पार्श्व में लगाकर २५ दीपकों से देव एटा कासगंज से नौ मील गङ्गातट पर सोरों तीर्थ है । तथा देवी की नीराजना करनी चाहिए । तदनन्तर ब्राह्मणों वाराह क्षेत्र के नाम से भारत में कई स्थान हैं। उनमें से को सपत्नीक बुलाकर भोजन कराना चाहिए। एक वर्ष- एक स्थान सोरों भी है। प्राचीन समय में यह तीर्थ गङ्गा पर्यन्त इस व्रत का आचरण होना चाहिए। के तट से लगा हुआ था । कालक्रम से अब गङ्गाधारा (२) माघ शक्ल चतुर्दशी को उपवास करके पणिमा कुछ मील दूर हट गयी है । पुराने प्रवाह का स्मारक एक के दिन शिवजी के ऊपर एक कम्बल में घी भरकर शिखा ___ लंबा सरोवर घाटों के किनारे रह गया है जिसे 'बूढ़ो की ओर से वेदी की ओर टपकाया जाय। तदनन्तर एक गङ्गा' कहा जाता है। इसके किनारे अनेक घाट और जोड़ी श्यामा गौएँ दान में दी जाँय । रात्रि को गीत मन्दिर बने हुए हैं। मुख्य मन्दिर में श्वेतवाराह की चतुवाद्यादि सहित नृत्य का आयोजन होना चाहिए। भुज मूर्ति है । सोरों की पवित्र परिक्रमा ५ मील है। यहाँ (३) मार्गशीर्ष मास अथवा चैत्र मास के प्रथम पुराण प्रसिद्ध चार बटों में 'गृद्धबट' नामक वृक्ष स्थित सोमवार को अथवा किसी भी अन्य सोमवार को जब है । उसके नीचे, बटुकनाथ का मन्दिर है । 'हरिपदो गङ्गा' पूजा की तीव्र लालसा उत्पन्न हो, शिवजी की पूजा श्वेत (बूढ़ी गङ्गा) नामक कुण्ड में दूर दूर के कई प्रान्तों से लोग पुष्पों ( जैसे मालती, कुन्द इत्यादि ) से करनी चाहिए। अस्थिविसर्जन करने के लिए यहाँ आते रहते हैं। कुछ चन्दन का प्रलेप लगाया जाय । तत्पश्चात नैवेद्यार्पण होना लोग इसे तुलसीदासजी की जन्मभूमि मानते हैं ( 'सो मैं चाहिए । होम भी विहित है। सोमवार के दिन नक्तविधि निज गुरु सन सुनी कथा सु सूकर खेत' के अनुसार )। यहीं अष्टछाप के कवि नन्ददास द्वारा स्थापित बलदेव जी से आहारादि करने पर महान् पुण्यफल प्राप्त होता है का मन्दिर है। योगमार्ग नामक स्थान तथा सूर्यकुण्ड सोमायनवत-एक मास तक इस व्रत का अनुष्ठान होता यहाँ के विख्यात तीर्थ हैं । दे० 'शकर क्षेत्र' । है । व्रती सात दिनों तक लगातार गौ के चारों स्तनों के । सौत्रामणी-एक प्रकार का वैदिक यज्ञ । इस के देवता सुत्रामा दूध का आहार कर प्राण धारण करता है । तत्पश्चात् सात दिनों तक केवल तीन स्तनों के दूध को पीकर तथा पुनः (इन्द्र) हैं, इस लिए यह सौत्रामणी कहलाता हैं । यजुर्वेद की काण्वशाखा के तीन अध्यायों (२१,२२,२३) में इसकी सात दिन तक केवल एक स्तन का दूध पीने के पश्चात् प्रक्रिया बतलायी गयी है। इसमें सुरा का सन्धान होता अन्त में तीन दिनों तक निराहार रहता है। इससे व्रती है । इस याग में ब्राह्मण सुरा पीकर पतित नहीं होता। के समस्त पाप क्षय हो जाते हैं । दे० मार्कण्डेय पुराण । सोमाष्टमी-यह तिथिव्रत है। शिव तथा उमा इसके सौत्रामण्यां कुलाचारे ब्राह्मणः प्रपिबेत् सुराम् । अन्यत्र कामतः पीत्वा पतितस्तु द्विजो भवेत् ॥ देवता है । यदि सोमवार के दिन नवमी हो तो शिव तथा उमा का रात्रि को पूजन किया जाय। पञ्चगव्य से कात्यायनसूत्रभाष्य में इसका सविस्तर वर्णन है। प्रतिमाओं को स्नान कराया जाय । शिवजी का वामदेव सौदायिक-स्त्रीधन का एक प्रकार । पिता, माता, पति के आदि नामों से पूजन करना चाहिए। प्रतिमा के दक्षिण कुल, सम्बन्धियों से जो धन स्त्री को प्राप्त होता है उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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