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________________ सूर्य आदि में बड़े विस्तार से वर्णन है, जहाँ सूर्य सम्बन्धी पुरा कथाओं और पूजा विधियों के रूप में विवरण पाया जाता है । सूर्य के विवाह आदि इतिवृत्त का मनोरंजक वर्णन मार्कण्डेय पुराण में पाया जाता है। इसके अनुसार विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री संज्ञा का विवाह विवस्वान् के साथ किया। परन्तु संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर सकी, अतः उनके पास अपनी छाया को छोड़कर पितृगृह लौट गयी। विश्वकर्मा ने खराद पर चढ़ाकर सूर्य के तेज को थोड़ा कम किया जिससे संज्ञा उसको सहन कर सके। सूर्य की चार पत्नियां हैं -संज्ञा, राजी, प्रभा और छाया संज्ञा से मुनि की उत्पत्ति हुई । राज्ञी से यम, यमुना और रेवन्त उत्पन्न हुए । प्रभा से प्रभात, छाया से सावर्णि, शनि और तपती का जन्म हुआ। सूर्य परिवार के अन्य देवताओं और नवग्रहों की उत्पत्ति सूर्य से कैसे हुई, इसका विस्तृत वर्णन पुराणों में मिलता हैं । उपर्युक्त भावनाओं तथा विश्वासों के कारण धीरे-धीरे सूर्य सम्प्रदाय का उदय हुआ । ईसापूर्व तथा ईसा पश्चात् की शताब्दियों में ईरान के साथ भारत का घनिष्ठ सम्बन्ध होने से ईरानी मित्र- पूजा (मिश्र - पूजा) का सूर्य पूजा ( मंदिर की मूर्ति पूजा) से समन्वय हो गया । भविष्य पुराण तथा वाराह पुराण में कथा है कि कृष्ण के पुत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया। सूर्य पूजा से ही इस रोग की मुक्ति हो सकती थी। इसलिए सूर्य मन्दिर की स्थापना और मूर्तिपूजा के लिए शकद्वीप (पूर्वी ईरान, सीस्तान) से मग ब्राह्मणों को निमंत्रित किया गया । चन्द्रभागा ( चिनाव ) के तटपर मूलस्थानपुर ( मुलतान ) में सूर्य मन्दिर की स्थापना हुई मूलस्थान (मुलतान) के सूर्य मंदिर का उल्लेख चीनी यात्री ह्व ेनसांग तथा अरव लेखक अल्-इद्रिसी अबूदशाक, अल्-इस्तरवी आदि ने किया है। कुछ पुराणों के अनुसार शाम्ब ने मथुरा में शाम्बादित्य नामक सूर्य मंदिर की स्थापना की थी। इस समय से लेकर तेरहवीं शती ई० तक भारत में सूर्य पूजा का काफी प्रचार था । कुमारगुप्त ( प्रथम ) के समय में दशपुर ( मंदसौर) के बुनकरों की एक श्रेणी (संघ) ने भव्य सूर्य मंदिर का निर्माण किया था। स्कन्दगुप्त का एक स्मारक इन्द्रपुर ( इन्दौर, बुलन्दशहर, उ०प्र०) में सूर्य मन्दिर के निर्माण का उल्लेख करता है । मिहिरकुल के ग्वालियर प्रस्तर लेख में मातृ पेट द्वारा सूर्य मन्दिर के Jain Education International ६७७ निर्माण का वर्णन है । बलभी के मैत्रक राजा सूर्योपासक थे । पुष्यभूतिवंश के प्रथम चार राजा आदित्य भक्त थे ( बांसखेरा तथा मधुवन ताम्रपत्र ) । परवर्ती गुप्त राजा द्वितीय जीवितगुप्त के समय में आरा जिले (मगध ) में सूर्यमन्दिर निर्मित हुआ था (फ्लीट गुप्त अभिलेख पृ०७०, ८०,१६२,२१८) । बहराइच में बालादित्य का प्रसिद्ध और विशाल सूर्यमंदिर था जिसका ध्वंस सैयद सालार मसऊद गाजी ने किया। सबसे पीछे प्रसिद्ध सूर्यमंदिर चन्द्रभागा तटवर्ती मूलस्थान वाले सूर्यमंदिर को स्मृति में उड़ीसा के चन्द्रभागा तीर्थ कोण्डार्क में बना जो आज भी करवट के बल लेटा हुआ है । सूर्य पूजा में पहले पूजा के विषय प्रतीक थे मानवकृति मूर्तियाँ पीछे व्यवहार में आयीं। प्रतीकों में चक्र, वृताकार सुवर्णवाल, कमल आदि मुख्य थे। व्यवहार में । सूर्य मूर्तियों के दो सम्प्रदाय विकसित हुए (१) औदीच्य (२) दाक्षिणात्य औदीच्य में पश्चिमोत्तरीय देशों का बाह्य प्रभाव विशेषकर वेश में परिलक्षित होता है । दाक्षिणात्य में भारतीयता की प्रधानता है परन्तु मूर्तिविज्ञान की दृष्टि से दोनों में पूरी भारतीयता है। मूर्तियां भी दो प्रकार की हैं। एक रथारूढ़ और दूसरी खड़ी । रथारूढ़ मूर्तियों में एक चक्र वाला रथ होता है जिसको एक से लेकर सात अश्व खींचते हैं। आगे चलकर सात अश्व ही अधिक प्रचलित हो गए। अरुण सारवि (जिसके पाँव नहीं होते) रथ का संचालन करता है । रथ तम के प्रतीक राक्षसों के ऊपर से निकलता हुआ दिखाया जाता है। सूर्य के दोनों पाप से उपा और प्रत्युषा ( उषा के दो रूप ) धनुष से आकाश पर बाण फेंकती हुई अंकि की जाती हैं । दोनों ओर दो पार्षद दण्डी (दण्ड लिए हुए) और पिङ्गल अथवा कुण्डी (मसि पात्र और लेखनी लिए हुए) भी दिखाए जाते हैं । किन्हीं - किन्हीं मूर्तियों में सूर्य की पत्नियों और पुत्रों का भी, जो सभी प्रकाश के प्रतीक है, अंकन मिलता है। औदीच्य सूर्य मूर्तियों के पाँवों में भरकम ऊँबे जूते ( उपानह चुश्त पाजामा, भारी अंगा, चौड़ी मेखला, किरीट (मुकुट) और उसके पीछे प्रभामण्डल पाया जाता है। कहीं कहीं कन्धे से दोनों ओर दो पंख भी जुड़े होते हैं जो सूर्य के वैदिक गरुत्मान् रूप के अवशेष हैं। हाथों में दाहिने में कमल (अथवा कमलदण्ड) और बायें में खड्ग मिलता है । दाक्षिणात्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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