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________________ सिप्रा सुकुलत्रिरात कराकर गन्धाक्षतपुष्प, धूप, दीप नैवेद्यादि से 'गणाध्यक्ष, विनायक, उमासुत, रुद्रप्रिय, विघ्ननाशन' आदि नामोच्चारणपूर्वक पूजन करना चाहिए। पूजन में २१ दूर्वादल तथा २१ लड्डू गणेशप्रतिमा के सम्मुख रखे जाँय जिनमें एक लड्डू गणेश जी के लिए, १० पुरोहित तथा १० व्रती के स्वयं के लिए होंगे। इस आचरण से विद्या प्राप्ति, घनार्जन तथा युद्ध में सफलता (सिद्धि) की उपलब्धि होती है। सिप्रा (शिप्रा क्षिप्रा ) - भारत की एक प्रसिद्ध नदी । यह मालवा में बहती है। इसके तट पर अवन्तिका ( महाकाल की मोक्षदायिनी नगरी उज्जैन) स्थित है। कालिका पुराण (अध्याय २३) में इसकी उत्पत्ति का वर्णन पाया जाता है । सीता-लाल पद्धति (हल के फल से खेत में बनी हुई रेखा) । राजा जनक की पुत्री का नाम सीता इसलिए था कि वे जनक को हल कथित रेखाभूमि से प्राप्त हुई थीं। बाद में उनका विवाह भगवान् राम से हुआ। वाल्मीकिरामायण (१.६६.१३-१४ ) में जनक जी सीता की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार कहते हैं : अथ मे कृषतः क्षेत्र लाङ्गलादुत्थिता ततः । क्षेत्र शोषयता लब्धा नाम्ना सीतेति विश्रुता ।। भूतलादुरियता सा तु व्यवर्द्धत ममात्मजा । वीर्यशुक्लेति मे कन्या स्थापितेयमयोनिजा ।। यही कथा पद्मपुराण तथा भविष्यपुराण (सीतानवमी व्रत माहात्म्य) में विस्तार के साथ कही गयी है । (२) सीता एक नदी का नाम है । भागवत ( पञ्चमस्कन्ध) के अनुसार वह भद्राश्व वर्ष (चीन) की गंगा है : "सीता तु ब्रह्मसदनात् केशवाचलादि गिरशिखरेभ्योपोषः प्रसवन्ती गन्धमादनमूर्द्धसु पतित्वाऽन्तरेण भद्राश्वं वर्ष प्राच्यां दिशि क्षारसमुद्रं अभिप्रविशति । " 'शब्दमाला' में सीता के सम्बन्ध में निम्नांकित कथन है : पाटला । गङ्गायान्तु भद्रसोमा महाभद्राय तस्याः स्रोतसि सीता च वसुर्भद्रा च कीर्तिता ॥ तदभेदेऽलकनन्दापि शारिणी स्वल्पनिम्नगा ॥ सीतापूजा - ( १ ) सीता शब्द का अर्थ है कृषि कार्य में जोती हुई भूमि ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि नारद के द्वारा 1 + Jain Education International ६७३ आग्रह करने पर दक्ष के पुत्रों ने फाल्गुन कृष्ण अष्टमी को पृथ्वी की नाप-जोल की थी। अतएव देवगण तथा पितृगण इसी दिन अपूपों का श्राद्ध पसन्द करते हैं । (२) भगवान् राम की धर्मपत्नी सीता का पूजन इस व्रत के दिन होता है, जो फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को उत्पन्न हुई थीं । सीतामढ़ी सीताजी के प्रकट होने का स्वल। यह प्राचीन मिथिला में (नेपाल राज्य) के अन्तर्गत है । लखनदेई नदी के पश्चिम तट पर सीतामढ़ी बस्ती है । घेरे के भीतर सीता जी का मन्दिर है। पास में ही राम, लक्ष्मण, शिव, हनुमान् तथा गणेश के मन्दिर हैं यहाँ से एक मील पर पुनउड़ा गाँव के पास पक्का सरोवर है । यहीं जानकी जी पृथ्वी से उत्पन्न हुई थीं। पास में ठाकुरबाड़ी है। निमिवंशज राजा सीरध्वज अकाल पड़ने पर सोने के हल से यज्ञ भूमि जोत रहे थे। तभी हलान के लगने से दिव्य कन्या उत्पन्न हुई। यहाँ उर्विजा नामक प्राचीन कुण्ड है। स्त्रियों में यह तीर्थ बहुत लोकप्रिय है । सीमन्तोन्नयन -- सोलह शरीर-संस्कारों में से एक संस्कार । गर्भाधान के छठे अथवा आठवें महीने में इसका अनुष्ठान किया जाता है। इसमें पति पत्नी के सीमन्त ( शिर के ऊपरी भागों के बालों को सँभाल कर उठाते हुए उसके तथा गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की कामना करता है । इस संस्कार के साथ गर्भिणी स्त्री और उसके पति के कर्तव्यों का विस्तृत वर्णन पाया जाता है । सुकलत्रप्राप्तिव्रत-कन्याओं, संघवाओं तथा विधवाओं के लिए भी इस व्रत का आचरण विहित है। यह नक्षत्र व्रत है । इसके नारायण देवता हैं। कोई कन्या तीन नक्षत्रों, यथा उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद को जगन्नाथ का पूजन कर माधव के नाम का कीर्तन करे तथा प्रियङ्ग फल (लाल फूल अर्पित करें मधु तथा शोधित नवनीत से हवन तथा 'माधवाय नमः' कहते हुए प्रणामाञ्जलि अर्पित करे तो इससे उसे अच्छा पति प्राप्त होता है। भगवान शिव ने भी पार्वती को उस व्रत का महत्त्व बताया था । सुकुलत्रिरात्रव्रत - मार्गशीर्ष मास में उस दिन इस व्रत का प्रारम्भ होना चाहिए जिस दिन त्र्यहः स्पृक् (तीन दिन वाली तिथि) हो, इस व्रत में तीन दिन उपवास For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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