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________________ सद्विद्याविजय-सनातनगोस्वामी ६५५ कर्मपुराण (उपविभाग, अध्याय २२), आदिपुराण एवं सनत्कुमार-(१) सनत् (ब्रह्मा) के पुत्र होने से अथवा सनत कई स्मतियों में सद्यःशौच वाले लोगों की लम्बी सूचियाँ (सदा) कुमार रहने के कारण इनका नाम सनत्कुमार पायी जाती हैं । कुछ कर्मों का अनुष्ठान प्रारम्भ हो जाने पड़ा । हरिवंश में इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार की पर अशौच नहीं होता : व्रतयज्ञविवाहेषु श्राद्धहोमार्चने जपे। यथोत्पन्नस्तथैवाहं कुमार इति विद्धि माम् । तस्मात् सनत्कुमारेति नामैतन्मे प्रतिष्ठितम् ।। आरब्धे सूतकं न स्यादनारब्धे तु सूतकम् ।। (विष्णुस्मृति) वामन पुराण (अ० ५७-५८) के अनुसार धर्म की अहिंसा नामक पत्नी से चार पुत्र उत्पन्न हुए जिनमें एक [व्रत, यज्ञ और विवाह में, इसी प्रकार श्राद्ध, होम, __ सनत्कुमार थे । इन पुत्रों को ब्रह्मा ने दत्तकरूप में ग्रहण अर्चन और जप में भी आरम्भ हो जाने पर सूतक नहीं किया : होता; अनारम्भ में होता है । ] दे० सद्यःशुद्धि । धर्मस्य भार्याऽहिंसाख्या तस्यां पुत्रचतुष्टयम् । सद्विद्याविजय-दोद्दय महाचार्य रामानुजदास कृत एक सम्प्राप्तं मुनिशार्दूल योगशास्त्रविचारकम् ।। ग्रन्थ । इसका रचनाकाल सोलहवीं शती है। इसमें श्री ज्येष्ठः सनत्कुमारोऽभूद् द्वितीयश्च सनातनः । वैष्णव वेदान्तमत का प्रतिपादन हुआ है । तृतीयः सनको नाम चतुर्थश्च सनन्दनः ।। सधर्मचारिणी-एक साथ धर्म का आचरण करने वाली । (२) छान्दोग्य उपनिषद (७.१-१;२६.२) में एक ज्ञानी यह भार्या का पर्याय है। ऋषि का नाम । पौराणिक पुराकथा के अनुसार ये वैष्णव सधवा--धव = पति के, स = साथ विद्यमान । जिस स्त्री परम्परा के नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे। ब्रह्मा के चार पुत्रों में का पति जीवित होता है उसे सधवा कहते हैं । में से ये एक थे। सनक--(१) ब्रह्मा के चार मानस पत्रों में से प्रथम । सनत्कुमारउपपुराण-यह उन्तीस उपपुराणों में से एक है। श्रीमद्भागवतपुराण (३.१२) में इनका वर्णन है। सनत्कुमारतन्त्र-आगमतत्त्वविलास में अनुसूचित चौसठ (२) जैमिनीय ब्राह्मण (३.२३३) के अनुसार सनक दो तन्त्रों में से एक तन्त्र। काप्यों में से एक का नाम है ( दूसरा नवक है । ) इन्होंने ___ सनन्दन-ब्रह्मा के चतुर्थ पुत्र (दे० सनत्कुमार) । स्कन्द विभिन्दकीयों के यज्ञ में भाग लिया था। ऋग्वेद के एक पुराण के काशी खण्ड के अनुसार ये जनलोक वासी हैं स्थल (३.१४७) पर इनको यज्ञ से उदासीन के रूप में और दिव्य मनुष्य माने जाते हैं। इसीलिए पितरों के चचित किया गया है। संभवतः इनकी भक्तिवादी प्रवृत्ति समान इनका तर्पण किया जाता है। के कारण । सनातन--(१) ब्रह्मा के द्वितीय पुत्र । काशी खण्ड के अनुसार सनकसंप्रदाय-आचार्य शङ्कर के पश्चात् जिन वैष्णव ये जनलोकवासी किन्तु अग्निपुराण के अनुसार तपोलोकसम्प्रदायों का विकास हुआ, उनमें एक सनक सम्प्रदाय भी वासी थे। ब्रह्मा, विष्णु और शिव का पर्याय भी 'सनातन' है । मुख्य वैष्णव सम्प्रदाय थे-(१) श्रीसम्प्रदाय (२) है। हेमचन्द्र के अनुसार सनातन पितरों के अतिथि ब्रह्मसम्प्रदाय (३) रुद्रसम्प्रदाय और (४) सनकसम्प्रदाय । हैं । दे० 'सनत्कुमार'। अब इनमें से निम्बार्क के अनुयायिओं का सम्प्रदाय सनक (२) तैत्तिरीय संहिता (४.३.३.१) में एक ऋषि अथवा सनकादि राम्प्रदाय कहलाता है। इन सभी सम्प्र- का नाम । बृहदारण्यक उपनिषद् की (२.५.२२:४.५.२८) दायों का आधार श्रुति (वेद) है और दर्शन वेदान्त । दो वंशसूचियों में इनका उल्लेख सनग नामक ऋषि के इनकी साहित्यिक परम्परा भी प्रायः एक है। केवल शिष्य और सनारु के गुरु के रूप में हुआ है। व्याख्या करने की पद्धति भिन्न-भिन्न हैं । बाहरी आचारों सनातन गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख शिष्य । रूप में भेद होने से इनमें सम्प्रदायभेद उत्पन्न हो गया। गोस्वामी और सनातन गोस्वामी दोनों महाप्रभु के पट्ट सनकादिसम्प्रदाय-दे० 'सनकसम्प्रदाय' । शिष्य एवं भाई थे। ये पहले बंगाल के नवाब के यहाँ उच्च Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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