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________________ सत्ययुग-सत्यार्थप्रकाश प्रकार हैं : है । वहाँ बसने वालों की पुनः मृत्यु नहीं होती, वह अष्टौ महिष्यस्ताः सर्वा रुक्मिण्याद्या महात्मनः । सत्यलोक और ब्रह्मलोक कहलाता है । ] रुक्मिणी सत्यभामा च कालिन्दी च शचिस्मिता ।। सत्यवती-(१) व्यास की माता का नाम । यह धीवरकन्या मित्रविन्दा जाम्बवती नाग्नजिती सुलक्षणा । थी । पराशर ऋषि ने इसके साथ संसर्ग किया, जिससे सुशीला नाम तन्वङ्गी महिष्यश्चाष्टमाः स्मृताः ।। व्यास का जन्म हुआ। सत्ययुग-चार युगों में से प्रथम युग । इसका कृत नाम इस (२) हरिवंश पुराण (२७,१८) के अनुसार ऋचीक कारण हुआ कि समस्त प्रजा इस काल में कृतकृत्य या मुनि की पत्नी । यथा : कृतार्थ रहती थी : 'कृतकृत्य प्रजा यत्र तन्नाम्ना मां कृतं विदुः ॥' गाधेः कन्या महाभागा नाम्ना सत्यवती शुभा । तां गाधिः काव्यपुत्राय ऋचीकाय ददौ प्रभुः ।। (कल्कि पुराण, अध्याय १९) [गाधि की कन्या नाम से सत्यवती महाभागा और कृतयुग (सत्ययुग) की दशा का वर्णन निम्नांकित शुभा थी। उसको गाधि ने काव्यपुत्र ऋचीक को विवाह पाया जाता है : में दिया।] धर्मश्चतुष्पादभवत् कृ पूर्णे जगत्त्रयम् । सत्यवतीसुत-(१) सत्यवती के पुत्र ध्यास । वास्तव में देवा यथोक्तफलदाश्चरन्ति भुवि सर्वतः ।। इनका नाम कृष्ण था । पराशर द्वारा अविवाहित सत्यवती सर्वसस्या वसुमती हृष्टपुष्टजनावृता। से ये उत्पन्न हए थे। सत्यवती ने लज्जा के मारे इनको शाठ्यचौर्या नतींना आविव्याधिविजिता ।। एक द्वीप में छिपा दिया, इसीलिए आगे चलकर ये द्वैपायन विप्रा वेदविदः सुमङ्गलयुता नार्यस्तु चर्याततैः भी कहलाये । जब इन्होंने वेदों का संकलन और सम्पादन पूजाहोमपरा पतिव्रतधरा यागोद्यताः क्षत्रियाः ।। किया तो इनकी प्रसिद्ध उपाधि व्यास हई । सर्वाधिक वैश्या वस्तूष धर्मतो विनिमयः श्रीविष्णुपूजापराः इसी नाम से ये प्रसिद्ध हुए । शूद्रास्तु द्विजसेवनाद् हरिकथालापाः सपर्यापराः ॥ (२) जमदग्नि ऋषि भी सत्यवतीसुत कहलाते हैं, (कल्कि पुराण, अध्याय १८) क्योंकि उनकी माता का नाम भी सत्यवती था। वैशाख शुक्ल तृतीया रविवासर को सत्य युग की उत्पत्ति हुई थी। इसमें विष्णु के चार अवतार हुए सत्यवान् केकय देश के राजा अश्वपति की कन्या सावित्री के पति । ये साल्व देश (पूर्वी राजस्थान, अलवर ) के १. मत्स्य २. कूर्म ३. वराह तथा ४ नृसिंह । इसमें पुण्य निवासी थे । महाभारत (३,२९३.१२) में इनके नाम की पूर्ण था, पाप का अभाव था, मुख्य तीर्थ कुरुक्षेत्र था, व्युत्पत्ति इस प्रकार बतलायी गयी है : ब्राह्मण ग्रहांश थे, प्राण मज्जागत थे, मृत्यु इच्छानुसार थी। इसमें बलि, मान्धाता, पुरूरवा, धुन्धमारिक, सत्यं वदत्यस्य पिता सत्यं माता प्रभाषते । कार्तवीर्य ये छः चक्रवर्ती राजा हुए थे। इसका लक्षण ततोऽस्य बाह्मणाश्चक्रु मैतत् सत्यवानिति ।। निम्नांकित है : [ इनके पिता सत्य बोलते थे, माता सत्य भाषण करती सत्यधर्मरता नित्यं तीर्थानाञ्च सदाश्रयम् । थी, इसलिए ब्राह्मणों ने इनका नाम सत्यवान् ही नन्दन्ति देवताः सर्वा सत्ये सत्यपरा नराः ।। रखा । ] सावित्री-सत्यवान् की प्रसिद्ध था महाभारत (दे० भागवत, १२,४,२ पर श्रीधर स्वामी की टीका) (३.२९२ और आगे) में विस्तार से दी हुई है। सत्यलोक-सात लोकों के अन्तर्गत एक लोक । विष्णु- सत्यार्थप्रकाश-आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द पुराण (२.७) में इसका निम्नांकित लक्षण दिया हुआ है : सरस्वती द्वारा लिखित प्रसिद्ध ग्रन्थ । यह आर्य समाज का षड्गुणेन तपोलोकात् सत्यलोको विराजते । सर्वमान्य ग्रन्थ है । इसके अधिकांश प्रारंभिक अध्यायों अपुनर्मारका यत्र ब्रह्मलोको हि स स्मृतः ॥ (समल्लासों) में आर्य समाज के सिद्धान्तों का मण्डन और [ तप लोक से छ: गुना सत्यलोक अधिक विराजमान समाजसुधारक विचारों का प्रतिपादन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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