SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 647
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शून्य-३ प- शैवमत उसका विशेष कार्य है। इस प्रकार शूद्र स्वतंत्र श्रमिक है, भृत्य अथवा दास नहीं, जो किसी भी वर्ण का व्यक्ति हो सकता है । शूद्रान्न तथा शूद्र का दिया हुआ दान परवर्ती ग्रन्थों में प्रायः वर्जित है किन्तु कई शास्त्रकारों ने इसका अपवाद स्वीकार किया है : कन्दुपक्वानि तैलेन पायसं दधिसकयः । द्विजैरेतानि भोज्यानि शूद्रगेहकृतान्यपि ॥ शूद्रों के सम्बन्ध में विशेष विवरण के लिए कमलाकर भट्ट का शूद्रकमलाकर नामक निबन्ध ग्रन्थ देखिए । शून्य - श्वान के सोने योग्य, एकान्त का स्थान (शुने हितम् शुनः संप्रसारणं यच्च) चाणक्यनीतिशास्त्र में शून्य के विषय में कथन है : अविद्यजीवनं शून्यं दिक् शून्या चेदबान्धवा | पुत्रहीनं गृहं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता || एक (२) दर्शन शास्त्र तथा गणित में भाव और अभाव से विलक्षण स्थिति का नाम शून्य है । शून्यवाद --- अनात्मवादी बौद्ध दार्शनिकों की शाखा। इसके अनुसार संसार को 'सर्व शून्यम्' माना जाता है। इसी अभिप्राय से यह मत 'वैनाशिक' भी कहलाता है । शृङ्गवेरपुर - रामायणवर्णित निषादराज गृह की गङ्गा तीरस्व राजपानी यह प्रयाग से प्रायः दस कोस दूर पश्चिम में है । भगवान् श्री राम ने वनवास के समय निषादराज के कहने से यहां रात्रि में निवास किया था। यहाँ शृङ्गी (प) ऋषि तथा उनकी पत्नी दशरथसुता शान्ता देवी का मन्दिर है। गङ्गाजी में ऋष्यशृङ्ग के पिता के नाम पर विभाण्डककुण्ड है। रामचौरा ग्राम में गङ्गा के किनारे एक मन्दिर में रामचन्द्रजी के चरणचिह्न हैं। पास में रामनगर स्थान है, जहाँ प्रत्येक पूर्णिमा और अमावस्या को मेला लगता है । रामचन्द्रजी यहीं गङ्गा पार उतरकर प्रयाग गये थे । शृङ्ग ेरी शङ्कराचार्य का दक्षिण प्रदेशस्य मुख्य पीठ स्थान यह तुङ्गभद्रा नदी के किनारे बसा हुआ है। घाट के ऊपर ही शङ्कराचार्यमठ, शारदा देवी और विद्यातीर्थ महेश्वर का मन्दिर है। यहां विभाण्डकेश्वर शिवलिङ्ग है । शृङ्गी ऋषि के पिता विभाण्डक ऋषि का यहाँ ८० Jain Education International ६३३ आश्रम या यह क्षेत्र भी पुराना विभाण्डकाश्रम है। यहाँ के जगद्गुरु शङ्कराचार्य का देश में सबसे अधिक आदर है। शेष - (१) नागराज अनन्त, जिनके ऊपर विष्णु भगवान् शयन करते हैं । प्रलय काल में नयी सृष्टि से पूर्व जो विश्व का शेष अथवा मूल ( अव्यक्त ) रूप रह जाता है उसी का यह प्रतीक है । शेष का ध्यान निम्नलिखित प्रकार से भविष्यपुराण में बतलाया गया है : फणासहस्रसंयुक्तं चतु किरीटिनम् । नवपल्लवाकारं पिङ्गलमधुलोचनम् ॥ भगवान् की एक मूर्ति ( तामसी ) का नाम भी ( कूर्मपुराण, ४८ अध्याय) शेष है एका भगवतो मूर्तिर्ज्ञानरूपा मूर्तिर्ज्ञानरूपा शिवामला । वासुदेवाभिधाना सा गुणातीता सुनिष्कला || द्वितीया ज्ञानसंज्ञान्या तामसी शेषसंज्ञिता । निहन्ति सकलांश्चान्ते वैष्णवी परमा तनुः ॥ (२) लक्ष्मण और बलराम का एक नाम शेष है । वे शेष के अवतार माने जाते हैं । शैवमत - भारत के धार्मिक सम्प्रदायों में शैवमत प्रमुख है । वैष्णव, शाक्त आदि सम्प्रदायों के अनुयायियों से इसके मानने वालों की संख्या अधिक है। शिव त्रिमूर्ति में से तीसरे हैं, जिनका विशिष्ट कार्य विश्व का संहार करना है । शैव वह धार्मिक सम्प्रदाय है जो शिव को ही ईश्वर मानकर आराधना करता है। शिव का शाब्दिक अर्थ है। 'शुभ', 'कल्याण', 'मङ्गल', 'श्रेयस्कर' आदि, यद्यपि शिव का कार्य, जैसा कि कहा जा चुका है, संहार करना है । शैवमत का मूल रूप ऋग्वेद में रुद्र की कल्पना में मिलता है । रुद्र के भयङ्कर रूप की अभिव्यक्ति वर्षा के पूर्व झंझावात के रूप में होती थी। रुद्र के उपासकों ने अनुभव किया कि झंझावात के पश्चात् जगत् को जीवन प्रदान करने वाला शीतल जल बरसता है और उसके पश्चात् एक गम्भीर शान्ति और आनन्द का वातावरण निर्मित हो जाता है । अतः रुद्र का ही दूसरा सौम्य रूप शिव जनमानस में स्थिर हो गया। शिव के तीन नाम शम्भु, शङ्कर और शिव प्रसिद्ध हुए। इन्हीं नामों से उनकी प्रार्थना होने लगी । यजुर्वेद के शतरुद्रिय अध्याय, तैत्तिरीय आरण्यक और श्वेताश्वतर उपनिषद में शिव को ईश्वर माना गया है। उनके पशुपति रूप का संकेत सबसे पहले अथर्वशिरस् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy