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________________ शिवरथव्रत-शुक्र ६३१ जन्म में व्यापारी था तथा सर्वदा उसकी माल चुराने शील-धर्म के मल आचरणों में एक शील भी है । की प्रवृत्ति रहती थी (स्कन्दपुराण)। मनुस्मृति (अ० २) में कथन है : शिवरथवत-हेमन्त (मार्गशीर्ष-पौष) में एकभक्त विधि से वेदोऽखिलो धर्ममूलं स्मृतिशीले च तद्विदाम् । व्रत करना चाहिए। इसके अनुसार एक रथ बनवाकर आचारश्चैव साधूनामात्मनः तुष्टिरेव च ॥ उसे रंग-बिरंगे कपड़ों से सजाकर उसमें चार श्वेत वृषभ इसके अनुसार वेदज्ञों के आचरण को शील कहते हैं। जोते जाँय । चावलों के आटे की शिवप्रतिमा बनाकर उसे हारीत के अनुसार ब्रह्मण्यता आदि त्रयोदश (तेरह) प्रकार रथ में विराजमान करके रात्रि में सार्वजनिक सड़कों पर के गुणसमूह को शील कहते हैं । यथा--- हाँकते हुए रथ को शिवमन्दिर तक लाया जाय । रात्रि में "ब्रह्मण्यता, देवपितृभक्तता, सौम्यता, अपरोपतापिता. दीपों को प्रज्वलित करते हुए जागरण तथा नाटक आदि का आयोजन विहित है । दूसरे दिन शिवभक्तों, अन्धों, निर्धनों अनसूयुता, मृदुता, अपारुष्य, मैत्रता, प्रियवादिता, कृतज्ञता, शरण्यता, कारुण्य, प्रशान्तिः । इति त्रयोदशविधं शीलम् ।" तथा दलितों-पतितों को भोजन कराया जाय। इसके बाद शिवजी को रथ समर्पित कर दिया जाय। यह ऋतु- गोविन्दराज के अनुसार राग-द्वेषपरित्याग को शील व्रत है। कहते हैं । दे० महाभारत का शील निरूपणाध्याय । शिवरात्रि-फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को 'शिव- शुक्र-(१) व्यास के पुत्र (शुकदेव) जिन्होंने राजा परीक्षित रात्रि' कहते हैं। इसी दिन शिव और पार्वती का विवाह को श्रीमदभागवत की कथा सुनायी थी। हरिवंश तथा हुआ था। इस दिन महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता वायुपुराण में इनकी कथा मिलती है। अग्निपुराण के है। इस व्रत को करने का अधिकार सभी को है। प्रजापतिसर्ग नामक अध्याय में भी शुक की कथा पायी शिवशक्तिसिद्धि-महाकवि श्रीहर्ष द्वारा रचित एक दार्श जाती है । देवीभागवत (१.१४.१२३) में एक दूसरे प्रकार निक ग्रन्थ । इसमें शिव और शक्ति के अद्वयवाद का विवे से शुक की कथा दी हुई है। चन हुआ है। (२) शुक पक्षी-विशेष का नाम है। इससे शुभाशुभ शीतलाषष्ठी--बंगाल में माघ शुक्ल षष्ठी को, गुजरात में का ज्ञान होता है। वसन्तराजशाकुन (वर्ग ८) में श्रावण कृष्ण अष्टमी को शीतला व्रतविधि मनायी जाती लिखा है : है । उत्तर भारत में चैत्र कृष्ण अष्टमी को शीतलाष्टमी मनायी जाती है। इसमें शीतला देवी की विधिवत पूजा वामः पठन् राजशुकः प्रयाणे की जाती है। शुभं भवेद्दक्षिणतः प्रवेशे । शीतलाष्टमी-चैत्र कृष्ण अष्टमी को इस व्रत का अनुष्ठान वनेचरा काष्ठशुकाः प्रयातुः स्युः सिद्धिदाः संमुखमापतन्तः ।। होता है। चेचक से मुक्ति के लिए शीतला (माता अथवा चेचक की देवी के नाम से विख्यात) देवी की पूजा की शुक्र--एक चमकीला ग्रह । इसके पर्याय हैं दैत्यगुरु, काव्य, जाती है। इस अवसर पर आठ घी के दीपक रात-दिन उशना, भार्गव, कवि, सित, आस्फुजित, भृगुसुत, भग देवी के मन्दिर में प्रज्वलित किये जाने चाहिए। साथ आदि । वामनपुराण (अ०६६) में शुक्र के नामकरण की ही गौ का दूध तथा उशीर मिश्रित जल छिड़का जाय। अद्भुत कथा दी हुई है। ये दैत्य राजा बलि के पुरोहित इसके उपरान्त एक गदहा, एक झाड़ तथा एक सूप का थे । इनकी पत्नी का नाम शतपर्वा था। कन्या देवयानी पृथक्-पृथक् दान किया जाय । शीतला देवी का वाहन का विवाह सोमवंश के राजा ययाति से हुआ था। शुक्र गदहा है । देवी को नग्नावस्था में एक हाथ में झाड़ एवं को उशना भी कहते हैं जो राजशास्त्रकार माने जाते हैं। कलश तथा दूसरे में सुप लिये हुए चित्रित किया जाता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र (विद्यासमुद्देश) में ये दण्डनीति के (शीतला देवी के लिए देखिए फॉर्ब की रसमाला, जिल्द एक सम्प्रदाय (औशनस) के प्रवर्तक कहे गये है, जिसके २, पृ० ३२२-३२५ तथा शीतला-मंगला के लिए ए० सी० अनुसार दण्डनीति हो एक मात्र विद्या है । 'शुक्र नीतिसार' सेन की 'बंगाली भाषा तथा साहित्य', पृ० ३६५-३६७)। शुक्र की ही परम्परा में लिखा गया ग्रन्थ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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