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________________ उनके पुत्र का नाम था यह सन्देहास्पद है कि वे प्रवाहण जैवलि के पितामह थे जो ब्राह्मण के बदले राजकुमार था। शान्ति - (१) धार्मिक जीवन की एक बड़ी उपलब्धि । पद्मपुराण (क्रियायोगसार, अध्याय १५ ) में इसकी निम्नलिखित परिभाषा है: यत्किञ्चिद् वस्तु सम्प्राप्य स्वल्पं वा यदि वा बहु । या तुष्टिर्जायते चित्ते शान्तिः सा गद्यते बुधः ॥ [ स्वल्प अथवा अधिक जिस किसी वस्तु को पाकर चित्त में जो संतोष उत्पन्न होता है उसे शान्ति कहते हैं । ] (२) दुर्गा का भी एक नाम शान्ति है । देवीपुराण के देवीनिकाध्याय में कथन है उत्पत्ति-स्थिति-नाशेषु सत्वादित्रिगुणा मता । सर्वज्ञा सर्ववेत्तृत्वाच्छान्तित्वाच्छान्तिरुच्यते ।। शान्तिकर्म - अथर्ववेदीय कर्मकाण्ड तीन भागों में विभक्त है - ( १ ) स्वस्तिक ( कल्याणकारी) (२) पौष्टिक (पोषण करने वाला) और (३) शान्तिक ( उपद्रव शान्त करने वाला)। वे सभी कर्म शान्तिकर्म कहलाते हैं जिनसे आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक उपद्रव शान्त होते हैं। आगे चलकर ज्योतिष की व्यापकता बढ़ जाने पर ग्रहशान्ति कर्मकाण्ड का प्रधान अङ्ग बन गया। यह माना जाने लगा कि दुष्ट ग्रहों के कारण ही मनुष्य पर विपत्तियाँ आती हैं, इसलिए विपत्तियों से बचने के लिए ग्रहशान्ति अथवा ग्रहों की पूजा आवश्यक है । शान्तिकर्मों में अद्भुतशान्ति नामक भी कर्म है । प्रकृतिविरुद्ध अद्भुत आपदाओं की पूर्व सूचना के लिए देवता 'उपसर्ग' उत्पन्न करते हैं। इस सम्बन्ध में शान्तिकर्म करने से भावी आपत्तियों की निवृत्ति होती है (दे० 'अद्भुतसागर' में आथर्वण अद्भुतवचनम् ) । इन उपसर्गों के कारण प्रायः नैतिक होते हैं : अतिलोभावसत्वाद्वा नास्तिक्याद्वाप्यधर्मतः । नरापचारान्नियतमुपसर्गः प्रवर्तते ॥ ततोऽपचारान्नियतमपवर्जन्ति देवताः । ताः सृजन्तांस्तांस्तु दिव्यनाभसभूमिजान् ॥ (गर्गसंहिता) शान्तिकल्प यह अथर्ववेद का एक उपांग है। इस कल्प में पहले विनायकों द्वारा ग्रस्त प्राणी के लक्षण हैं । उनकी शान्ति के लिए द्रव्य एवं सामग्री इकट्ठा करने, पूजा, अभि Jain Education International शान्ति-शारदातिलक , षेक और वैनायक होमादि करने का विधान इस कल्प में बतलाया गया है। आदित्यादि नवग्रहों के जप यज्ञ आदि भी इसी में सन्निविष्ट हैं। शान्तिपञ्चमी - श्रावण शुक्ल पञ्चमी को काले तथा अन्य रंगों से सर्पों की आकृति बनाकर उनकी गन्ध-अक्षतलावा आदि से पूजा करनी चाहिए तथा अग्रिम मास की पञ्चमी को दर्भों से सांप बनाकर उनकी तथा इन्द्राणी की पूजा करनी चाहिए। इससे सर्प सर्वदा व्रतकर्ता के ऊपर प्रसन्न रहते हैं। इसका मन्त्र है 'कुरुकुल्ले हुं फट् स्वाहा शाप - क्रोधपूर्वक किसी के अनिष्ट का उद्घोष 'शाप' कहलाता है। विशेषकर ऋषि, मुनि, तपस्वी आदि के अनिष्ट कथन को शाप कहते है। किसी महान् नैतिक अपराध के हो जाने पर शाप दिया जाता था । इसके अनेक उदाहरण प्राचीन साहित्य में उपलब्ध हैं। गौतम ने पतिव्रत भङ्ग के कारण अपनी पत्नी अहल्या को शाप दिया था कि वह शिला हो जाय। दुर्वासा अपने क्रोधी स्वभाव के कारण शाप देने के लिए प्रसिद्ध थे । शावर भाष्य दे० 'शवर स्वामी ।' शाम्बग्य गृह्यसूत्र मुख्य गृहा ग्रन्थों में शाम्बष्य के सूत्र का नाम भी उल्लेखनीय है। यह ऋग्वेद से सम्बन्धित गृहासूत्र है। शाम्भरायणी व्रत - यह नक्षत्रव्रत है और अच्युत इसके देवता हैं । सात वर्षपर्यन्त इसके आचरण का विधान है । बारह नक्षत्रों, जैसे- कृतिका, मृगशिरा, पुष्प तथा इसी प्रकार के अन्य नक्षत्रों के हिसाब से वर्ष के बारह मासों का नामोल्लेख किया गया है, यथा कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष आदि कार्तिक मास की पूर्णिमा से व्रत का आरम्भ कर विष्णु का पूजन करना चाहिए। कार्तिक मास से अग्रिम चार मासों के लिए कृशरा ( खिचड़ी) नैवेद्य है, फाल्गुन से संया ( हलुआ) तथा आषाढ़ से पायस (खीर) । ब्राह्मणों को भी नैवेद्य के हिसाब से भोजन कराया जाय। शाम्भरायणी नामक ब्राह्मणी स्त्री की चांदी की प्रतिमा की स्थापना की जाय। शाम्भरायणी उस ब्राह्मणी का नाम है जिससे बृहस्पति ने इन्द्र के पूर्वजों के बारे में पूछा था। भगवान् कृष्ण ने भी इस आदरणीय महिला की कथा सुनायी है। (भविष्योत्तरपुराण) शारदातिलक -- शारदातिलक तन्त्र शाक्त मत का अधिकारपूर्ण प्रामाणिक ग्रन्थ है। इसके रचयिता लक्ष्मण For Private & Personal Use Only --- www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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