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________________ ६२४ शाक्त संन्यासी मूलतः कोलसाधना यौगिक उपासना थी । कालान्तर इससे स्पष्ट है कि तारा की उपासना चीन से भारत में में कुछ ऐसे लोग इस साधना में घुस आये जो आचार के आयी । नेपाली बौद्ध ग्रन्थ साधनमाला का तन्त्र के जटानिम्न स्तर के अभ्यासी थे । इन लोगों ने पञ्च मकारों का साधन प्रसंग में निम्नांकित कथन भी इस तथ्य की पुष्टि भौतिक अर्थ लगाया और इनके द्वारा भौतिक मद्य, मांस, करता है: मत्स्य, मुद्रा और मैथुन का खुलकर सेवन होने लगा। ___"आर्य नागार्जुनपादैर्भोटदेशात् समुद्धृता।" वामाचार के पतन और दुर्नाम का यही कारण था । [ तारा देवी की मूर्ति आर्य नागार्जुनाचार्य द्वारा भोट शाक्त दर्शन में छत्तीस तत्त्व माने गये हैं जो तीन वर्गों देश (तिब्बत) से लायी गयी । ] स्वतन्त्रतन्त्र नामक में विभक्त हैं-(१) शिवतत्त्व (२) विद्यातत्त्व और ग्रन्थ में भी तारा देवी की विदेशी उत्पत्ति का उल्लेख है : (३) आत्मतत्त्व । शिवतत्त्व में दो तत्त्वों, शिव और मेरोः पश्चिमकोणे तु चोलनाख्यो ह्रदो महान् । शक्ति का समावेश है। विद्यातत्त्व में सदाशिव, ईश्वर तत्र जज्ञे स्वयं तारा देवी नीलसरस्वती ।। और शुद्ध विद्या सम्मिलित है। आत्मतत्त्व में इकतीस शाक्तों के पाँच वेदों, पांच योगियों और पांच पीठों तत्त्वों का समाहार है, जिनकी गणना इस प्रकार है का उल्लेख कुलालिकातन्त्र में पाया जाता है। इनमें माया, कला, विद्या, राग, काल, नियति, पुरुष, प्रकृति, उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और ऊर्ध्व ये पाँच आम्नाय बुद्धि, अहंकार, मन, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, अथवा वेद हैं । महेश्वर, शिवयोगी आदि पाँच योगी पाँच विषय (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध) और पाँच हैं। उत्कल में उडियान, पंजाब में जालन्धर, महाराष्ट्र में महाभूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी)। पूर्ण, श्रीशैल पर मतङ्ग और कामरूप में कामाख्या ये शिव-शक्तिसंगम में शाक्त मत के अनुसार परा शक्ति की ही प्रधानता होती है । परम पुरुष के हृदय में सृष्टि पाँच पीठ हैं । आगे चलकर शाक्तों के इकावन पीठ हो गये और इस मत में बहुसंख्यक जनता दीक्षित होने की इच्छा उत्पन्न होते ही उसके दो रूप, शिव और शक्ति प्रकट हो जाते है । शिव प्रकाशरूप हैं और शक्ति लगी । इसका सबसे बड़ा आकर्षण यह था कि (भैरवी) विमर्शरूप । विमर्श का तात्पर्य है पूर्ण और शद्ध अहंकार चक्रपूजा में सभी शाक्त (चाहे वे किसी वर्ण के हों) ब्राह्मण की स्फूर्ति । इसके कई नाम हैं-चित्, चैतन्य, स्वातन्त्र्य, माने जाने लगे । धार्मिक संस्कारों के मंडल, यन्त्र और चक्र जो शक्तिपूजा के अधिष्ठान थे, वैदिक और स्मार्त कर्तत्व, स्फुरण आदि । प्रकाश और विमर्श का अस्तित्व संस्कारों में भी प्रविष्ट हो गये। शाक्त मत का विशाल युगपत् रहता है। प्रकाश को संवित् और विमर्श को युक्ति भी कहा जाता है । शिव और शक्ति के आन्तर साहित्य है जिसका बहुत बड़ा अंश अभी तक अप्रकाशित निमेष को सदाशिव और बाह्य उन्मेष को ईश्वर कहते है। इसके दो उपसम्प्रदाय हैं-(१) श्रीकुल और (२) है। इसी शिव-शक्तिसंगम से सम्पूर्ण सृष्टि उत्पन्न कालीकुल । प्रथम उपसम्प्रदाय के अनेक ग्रन्थों में अगस्त्य होती है। का शक्तिसूत्र तथा शक्तिमहिम्नस्तोत्र, सुमेधा का त्रिपुरारहस्य, गौडपाद का विद्यारत्नसूत्र, शंकराचार्य के शाक्त मत में वामाचार के उद्गम और विकास को सौन्दर्यलहरी और प्रपश्चसार एवं अभिनवगुप्त का तन्त्रालेकर कई मत प्रचलित हैं। कुछ लोग इसका उद्गम लोक प्रसिद्ध है । दूसरे उपसम्प्रदाय में कालज्ञान, कालोभारत के उस वर्ग से मानते हैं, जिसमें मातृशक्ति की त्तर, महाकालसंहिता आदि मुख्य हैं । पूजा आदि काल से चली आ रही थी, परन्तु वे लोग स्मातं आचार से प्रभावित नहीं थे। दूसरे विचारक इस सम्प्र- शाक्त संन्यासी-शाक्त संन्यासी देश के कोने-कोनेमें दाय में वामाचार के प्रवेश के लिए तिब्बत और चीन का छिटपुट पाये जाते हैं । रामकृष्ण परमहंस के गुरु तोतापुरी, प्रभाव मानते हैं । बौद्ध धर्म का महायान सम्प्रदाय इसका स्वयं रामकृष्ण तथा विवेकानन्द शाक्त संन्यासी थे। माध्यम था। चीनाचार आदि कई आगम ग्रन्थों में इस रामकृष्ण मिशन के अन्य स्वामी लोग भी शाक्त संन्यासियों बात का उल्लेख है कि वसिष्ठ ऋषि ने बद्ध के उपदेश से के उदाहरण हैं तथा शङ्कराचार्य के दसनामियों की पूरी चीन देश में जाकर तारा देवी का दर्शन किया था। शाखा से सम्बद्ध हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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