SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 632
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१८ शतभिषास्नान-शनिव्रत बृहदारण्यक उपनिषद् का भाष्य लिखा वह काण्व शाखा शतयातु-सौ मायाशक्ति वाला । ऋग्वेद (७.१८.२१) में के अन्तर्गत है। यह एक ऋषि का नाम है। इनका उल्लेख पराशर के इसमें प्रथम से नवम काण्ड तक वाजसनेयी संहिता के पश्चात् तथा वसिष्ठ के पूर्व हुआ है। कुछ विद्वान् इन्हें प्रथम अठारह अध्यायों के यजुष की व्याख्या और विनि- वसिष्ठ का पुत्र कहते हैं। योग है । दशम काण्ड में अग्निरहस्य का विवेचन किया शतरुद्रसंहिता-शिवपुराण के सात खण्डों में तीसरा खण्ड गया है। एकादश काण्ड में आठ अध्याय हैं। इनमें पूर्व शतरुद्रसंहिता के नाम से ज्ञात है। वर्णित क्रियाओं के ऊपर आख्यान हैं । द्वादश काण्ड में सौत्रा- शतरुद्रिय---यजुर्वेद का रुद्र सम्प्रदाय संबन्धी एक प्रसिद्ध मणी तथा प्रायश्चित्त कर्म वर्णित हैं । तेरहवें काण्ड में अश्व- सूक्त । वैदिक काल में रुद्र (शिव) के क्रमशः अधिक मेध, सर्वमेध, पुरुषमेध और पितृमेध का वर्णन है। चतु- महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त करने का यह द्योतक है । इसको दश काण्ड आरण्यक है। इसके प्रथम तीन अध्यायों में रुद्राध्याय भी कहते हैं। प्रवर्ग क्रियाओं का उल्लेख है । इसके अतिरिक्त संहिता के शतश्लोकी-शङ्कराचार्य विरचित ग्रन्थों में से एक ग्रन्थ इकतीस से लेकर उन्तालीस अध्याय तक की सभी शतश्लोकी है । इसमें वेदान्तीय ज्ञान के एक सौ श्लोक कथाओं के उद्धरण है। इसमें प्रतिपादित किया गया है संग्रहीत हैं। कि विष्णु सभी देवताओं में श्रेष्ठ हैं। शेष अध्याय बृह- शत्रुञ्जय (सिद्धाचल)-गुजरात प्रदेश का प्रसिद्ध जैन तीर्थ। . दारण्यक उपनिषद् के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहाँ आठ करोड़ मुनि मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं। यह सिद्धक्षेत्र है। जैनों में पांच पर्वत पवित्र माने __ ऐतिहासिक दृष्टि से शतपथ ब्राह्मण का बहुत बड़ा जाते हैं : (१) शत्रुञ्जय (सिद्धाचल) (२) अर्बुदाचल महत्त्व है। इसके एक मन्त्र में इतिहास को कला माना (आबू) (३) गिरनार (सौराष्ट्र) (४) कैलास और (५) गया है। महाभारत को अनेक कथाओं के स्रोत इसके सम्मेत शिखर (पारसनाथ, बिहार में)। आख्यानों में पाये जाते हैं, यथा रामकथा, कद्रू-सुपर्णा की शनिप्रदोषव्रत-शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी जिस किसी शनिकथा, पुरूरवा-उर्वशीप्रेमाख्यान, अश्विनीकुमारों द्वारा वार के दिन पड़े उसी दिन इस व्रत का अनुष्ठान करना च्यवन को यौवनदान आदि । इस प्रकार संस्कृत साहित्य चाहिए । यह सन्तानार्थ किया जाता है । इसमें शिवाराधन के काव्य, नाटक, चम्पू प्रभृति अनेक विधाओं के सूत्र तथा सूर्यास्तोपरान्त भोजन विहित है। इस ब्राह्मण में वर्तमान है । वास्तव में यह विशाल विश्व शनिवारव्रत-श्रावण मास में प्रति शनिवार को शनि की कोशात्मक ग्रन्थ है। लौहप्रतिमा को पञ्चामृत से स्नान कराकर पुष्पों तथा शतभिषास्नान-शतभिषा नक्षत्र के समय यजमान तथा फलों का समर्पण करना चाहिए। इस दिन शनि के नामों परोहित दोनों उपवास करें। यजमान भद्रासन से बैठे का उच्चारण विभिन्न शब्दों में किया जाय, यथाऔर सहस्र कलशों के जल से मोतियों के साथ शंख द्वारा कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्र, अन्तक, यम, सौरि जल भर-भरकर उसको स्नान कराया जाय। तदुपरान्त (सूर्यपुत्र), शनैश्चर तथा मन्द (शनि मन्दगामी है)। चारों नवीन वस्त्र धारण कर वह केशव, वरुण, चन्द्र, शतभिषा शनिवारों को क्रमशः चावल तथा उरद की दाल, खीर, नक्षत्र की (जिसका स्वामी वरुण देवता है) गन्धाक्षत, अम्बिली (मटे में पकाया हुआ चावल का झोल) पुष्पादि से पूजा करे । व्रत के अन्त में यजमान अपने तथा पूड़ी समर्पित करनी चाहिए और व्रती को स्वयं खाना आचार्य को तरल पदार्थ, गौ तथा कलश का दान करे चाहिए। उक्त शनैश्चरस्तोत्र स्कन्दपुराण से ग्रहण किया और अन्यान्य ब्राह्मणों को दक्षिणा प्रदान करे। यजमान गया है। स्वयं एक रत्न धारण करे जो शमी वृक्ष, सेमल की पत्तियों शनिव्रत-(१) शनिवार के दिन तैलाभ्यंग के साथ स्नान तथा बाँस के अग्रभाग से आवृत हो । । इससे समस्त रोग करके किसी ब्राह्मण (या भड्डरी को) तैल दान करना दूर होते हैं। यह नक्षत्रवत है। इसके विष्णु तथा वरुण चाहिए। इस दिन गहरे श्याम पुष्पों से शनि का पुजन देवता हैं। करना चाहिए। एक वर्षपर्यन्त इस व्रत का आचरण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy