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________________ शक्तितन्त्र-शङ्कराचार्य लक्ष्मीनारायण, उमामहेश्वर, गौरीगणेश इत्यादि नाम वेद प्रकट किये गये है। जगत्तारिणी देवी चतुर्वेदमयी और इसी प्रभाव के सूचक है। सचमुच सारी आर्य जनता कालिका देवी अथर्ववेदाधिष्ठात्री है, काली और तारा के किसी समय शाक्त थी और इसके दो दल थे; एक दल विना अथर्ववेदविहित कोई क्रिया नहीं हो सकती । केरल में शैव, वैष्णव, सौर, गाणपत्य आदि वैदिक सम्प्रदायों के देश में कालिका देवी, कश्मीर में त्रिपुरा और गौड देश में दक्षिणाचारी थे और दूसरी ओर बौद्ध, जैन और अवैदिक तारा ही पश्चात् काली रूप में उपास्य होती है।" तान्त्रिक सम्प्रदायों के शाक्त वामाचारी थे। इतना __ इस कथन से पता चलता है कि इनसे पहले के साम्प्रव्यापक प्रचार होने के कारण ही शायद शाक्तों का कोई दायिकों में, जिनमें शाक्त भी शामिल हैं; और ये अवश्य मठ या गद्दी नहीं बनी। इनके पाँच महापीठ या ५१ ही वैदिक शाक्त हैं-यह तान्त्रिक शाक्तधर्म अथवा पीठ ही इनके मठ समझे जाने चाहिए। दे० 'वैदिक वामाचार बाद में प्रचलित हुआ। शाक्तमत'। शङ्करजय-माधवाचार्य विरचित इस ग्रन्थ में आचार्य शङ्कर शक्तितन्त्र-आगमतत्त्वविलास में उद्धृत तन्त्रों की सूची । की जीवन सम्बन्धी घटनाओं का सङ्कलन संक्षिप्त रूप में में शक्तितन्त्र भी उल्लिखित है। हुआ है । परन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से इसको कोई प्रामाणिशक्तिविशिष्टाद्वैत-श्रीकण्ठ शिवाचार्य ने वायवीय संहिता कता नहीं है । यह उत्तम काव्य ग्रन्थ है। के आधार पर सिद्ध किया है कि भगवान् महेश्वर अपने को उमा शक्ति से विशिष्ट किये रहते हैं। इस शक्ति शङ्करदिग्विजय -स्वामी आनन्द गिरि कृत शङ्करदिग्विजय में जीव और जगत्, चित् और अचित्, दोनों का बीज शङ्कराचार्य की जीवन घटनाओं का काव्यात्मक संकलन उपस्थित रहता है। उसी शक्ति से महेश्वर चराचर सृष्टि है। यह ऐतिहासिक दृष्टि से प्रामाणिक नहीं है । 'शङ्करकरते हैं। इस सिद्धान्त को शक्तिविशिष्टाद्वैत कहते हैं। दिग्विजय' और भी कई विद्वानों ने लिखे हैं। इनमें माधवावीर शैव अथवा लिङ्गायत इस शक्तिविशिष्टाद्वैत चार्य एवं सदानन्द योगीन्द्र के नाम मुख्य हैं। सिद्धान्त को अपनाते हैं । शाक्तों के अनुसार शक्ति परि- शङ्कर मिश्र-शङ्कर मिश्र का नाम भी उन चार पण्डितों णामी है, विवर्त नहीं है । शाक्तों का वेदान्तमत शक्ति- में है, जिन्होंने न्याय-वैशेषिक दर्शनों को एक में युक्त करने विशिष्टाद्वैत है। के लिए तदनुरूप ग्रन्थों का प्रणयन किया । शङ्कर मिश्र ने शक्तिसंगमतन्त्र नेपाल प्रदेश में एक लाख श्लोकों वाला इस कार्य को वैशेषिकसूत्रोपस्कार की रचना द्वारा र पूरा किया। यह ग्रन्थ १५वीं शती में रचा गया था। शक्तिसङ्गमतन्त्र प्रचलित है। इस महातन्त्र में शाक्त सम्प्रदाय का वर्णन विस्तार से मिलता है । इसके उत्तर शङ्कराचार्य-वेदान्त दर्शन के अद्वैतवाद का प्रचार भारत भाग, पहले खण्ड, आठवें पटल के तीसरे से लेकर पचीसवें में यों तो बहुत प्राचीन काल से था, परन्तु आगे इसका श्लोकों का सार यहाँ दिया जाता है : अधिक ठोस प्रचार शङ्कराचार्य के द्वारा ही हुआ । इस "सृष्टि की सुविधा के लिए यह प्रपञ्च रचा गया है। मत के समर्थक प्रधान ग्रन्थ इन्हीं के रचे हुए हैं। इसी शाक्त, सौर, शैव, गाणपत्य, वैष्णव, बौद्ध आदि यद्यपि से शङ्कराचार्य अद्वैतमत के प्रवर्तक कहे जाते हैं और अद्वैतभिन्न नाम है, भिन्न सम्प्रदाय हैं, परन्तु वास्तव में ये एक मत को शाङ्कर मत अथवा शाङ्कर दर्शन भी कहते हैं । ही वस्तु है । विधि के भेद से भिन्न दीखते हैं। इनमें पर- ब्रह्मसूत्र पर आज जितने भाष्य उपलब्ध हैं उनमें सबसे स्पर निन्दा, द्वेष इस प्रपञ्च के लिए ही है। निन्दक की प्राचीन शाङ्करभाष्य ही है और उसी का सबसे अधिक सिद्धि नहीं होती । जो ऐक्य मानते हैं उन्हीं को उनके आदर भी है । शङ्कर के जो ग्रन्थ मिलते हैं तथा यत्र-तत्र सम्प्रदाय से सिद्धि मिलती है। काली और तारा की उनकी जीवन सम्बन्धी जो घटनाएँ ज्ञात होती हैं, उनसे उपासना इसी ऐक्य की सिद्धि के लिए की जाती है । यह स्पष्ट है कि वे अलौकिक प्रतिभा के व्यक्ति थे। उनमें महाशक्ति भले, बुरे; सुन्दर और क्रूर दोनों को धारण प्रकाण्ड पाण्डित्य, गम्भीर विचार शैली, प्रचण्ड कर्मकरती है। यही मत प्रकट करने के लिए शास्त्र का कीर्तन शीलता, अगाध भगवद्भक्ति, सर्वोत्तम त्याग, अद्भुत किया गया है । इस एकत्व प्रतिपादन के लिए ही चारों योगैश्वर्य आदि अनेक गुणों का दुर्लभ समुच्चय था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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