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________________ वैरागी-वैशेषिक ६०९ दशा में एक बैल भी देने का निर्देश किया है। यह अर्थ- को बाहर निकाला था। वैशाख शुक्ल सप्तमी को भगवान् दान 'वैरनिर्यातन' के लिए होता था। बुद्ध का जन्म हुआ था, अतएव सप्तमी से तीन दिन तक ऋग्वेद में (२.३२.४) एक व्यक्ति के बदले में १०० उनकी प्रतिमा का पूजन किया जाना चाहिए । यह विशेष गौओं के दान का निर्देश है। इसे शतदाय कहते थे ।। रूप से उस समय होना चाहिए जब पुष्य नक्षत्र हो । वैशाख निस्सन्देह यह मूल्य घटता-बढ़ता था। किन्तु ऐतरेय ब्राह्मण शुक्ल अष्टमी को दुर्गाजी, जो अपराजिता भी कहलाती में शुनःशेप के क्रय के बदले १०० गौओं का दाय वणित __ है, की प्रतिमा को कपूर तथा जटामांसी से सुवासित जल है । यजुर्वेद में पुनः ‘शतदाय' उद्धृत हुआ है । परवर्ती से स्नान कराना चाहिए । इस समय व्रती स्वयं आम के काल में हत्या के लिए दण्ड और प्रायश्चित्त दोनों का रस से स्नान करे।। विधान था। वैशाखी पूर्णिमा को ब्रह्माजी ने श्वेत तथा कृष्ण तिलों वैरागी-स्वामी रामानन्द ने जो सम्प्रदाय स्थापित किया का निर्माण किया था। अतएव उस दिन दोनों प्रकार के उसके संन्यासियों के लिए उन्होंने सरल अनुशासन तिलों से युक्त जल से व्रती स्नान करे, अग्नि में तिलों की (पवित्रता और आचार के सात्त्विक नियम ) निश्चित आहुति दे, तिल, मधु तथा तिलों से भरा हुआ पात्र दान किये। ये संन्यासी रामानन्दी वैष्णव वैरागी कहलाते हैं। में दे । इसी प्रकार के विधि-विधान के लिए दे० विष्णुये विरक्त साधु होते हैं तथा इनके मठ काशी, अयोध्या धर्म०, ९०.१० । भगवान् बुद्ध की वैशाखपूजा 'दत्थ चित्रकूट, मिथिला तथा अन्य स्थानों में हैं। गामणी' (लगभग १००-७७ ई० पू०) नामक व्यक्ति ने लंका वैशम्पायन-वेदव्यास के चार वैदिक शिष्यों में यजुर्वेद के में प्रारम्भ करायी थी । दे. वालपोल राहुल ( कोलम्बो, मुख्य अध्येता । महीधर ने अपने यजुर्भाष्य में लिखा है कि १९५६ ) द्वारा रचित 'बुद्धिज्म इन सीलोन', पृ० ८० । वैशम्पायन ने याज्ञवल्क्य आदि शिष्यों को वेदाध्ययन वैशालाक्षनीतिशास्त्र-राजनीति शास्त्र भारत का अति कराया । पीछे किसी कारण उन्होंने क्रुद्ध होकर याज्ञवल्क्य प्राचीन ज्ञान है। इस पर सर्वप्रथम प्रजापति ने दण्डसे अपना पढ़ाया हुआ वेद वापस माँगा । योगी याज्ञवल्क्य ने नीति नामक बृहदाकार पुस्तक लिखी, जो अब दुर्लभ है। विद्या को मूर्तिमती करके वमन कर दिया। वैशम्पायन ने उसी का संक्षिप्तीकरण वैशालाक्षनीतिशास्त्र है। यह भी अपने अन्य शिष्यों को इन वान्त यजुओं को ग्रहण करने प्राप्त नहीं है। पुनः इसका संक्षिप्तीकरण बाहुदन्तक की आज्ञा दी। उन्होंने तीतर बनकर उनको चुन लिया। नामक ग्रन्थ में हुआ जो भीष्म पितामह के समय में बाहइसीलिए इसका नाम 'तैत्तिरीय संहिता' पड़ा। प्राचीन स्पत्य शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध था। मानवता के विकास काल के दो धनुर्वेद ग्रन्थों का उद्धरण बहुत प्राप्त होता है, के साथ जीवन में व्यस्तता बढ़ने लगी तथा व्यस्त जीवन वे हैं वैशम्पायन का धनुर्वेद तथा वृद्ध शाङ्गधर का धनुर्वेद। को देखते हुए क्रमशः ये ग्रन्थ संक्षिप्त होते ही गये । अष्टाध्यायी के सूत्रों में पाणिनि ने जिन पूर्व वैयाकरणों वैशालाक्ष ( विशाल आँखों वाले अर्थात शिव ) का नीतिका नामोल्लेख किया है उनमें वैशम्पायन भी एक हैं। शास्त्र शिवप्रणीत कहा जाता है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र वैशाखकृत्य-इस मास के कुछ महत्त्वपूर्ण व्रत, जैसे अक्षय- में वैशालाक्ष सिद्धान्तों को बहुधा उद्धृत किया है। तृतीया आदि का पृथक् वर्णन किया जा चुका है। कुछ वैशेषिक-वैशेषिक दर्शन का अस्तित्व विक्रम की पहली छोटे-मोटे तथ्यों का यहाँ वर्णन किया जा रहा है। इस शताब्दी में था। यह इससे भी प्राचीन हो सकता है । मास में प्रातः स्नान का विधान है। विशेष रूप से इस वैशेषिक सूत्रों के रचयिता कणाद काश्यप कहे जाते हैं। अवसर पर पवित्र सरिताओं में स्नान की आज्ञा दी गयी वैशेषिक तथा न्याय दर्शन साथ ही साथ विकसित हुए है । इस सम्बन्ध में पद्मपुराण (४.८५.४१-७०) का कथन तथा दोनों सूत्र एक दूसरे के बहुत ही निकट प्रसंग को है कि वैशाख मास में प्रातः स्नान का महत्त्व अश्वमेध ध्यान में रखते हुए लिखे गये हैं। वैशेषिक दर्शन पारयज्ञ के समान है। इसके अनुसार शुक्ल पक्ष की सप्तमी माणविक (अणुविज्ञानी) यथार्थवाद है। द्रव्यों के नव को गंगाजी का पूजन करना चाहिए, क्योंकि इसी तिथि प्रकार यहाँ माने गये हैं। पहले चार प्रकारों के परमाणु को महर्षि जह्न ने अपने दक्षिण कर्ण से गंगाजी कहे गये हैं। प्रत्येक परमाणु परिवर्तनहीन, नित्य, फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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