SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 607
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विष्णुदेवकीव्रत-विष्णुप्राप्तिव्रत से आराधक स्वर्ग प्राप्त कर लेता है। यदि वह लगातार करना चाहिए। श्रवण अथवा उत्तराषाढ़ नक्षत्र काल में तीन वर्षों तक इस व्रत का आचरण करे तो वह ५००० भगवान् गोविन्द तथा भगवान् विष्णु के तीन पगों की वर्षों तक स्वर्ग में वास करता है । आराधना करनी चाहिए, किन्तु दान और भोजन में विष्णुदेवकीव्रत-कार्तिक मास की प्रतिपदा से आरम्भ अन्तर हो जायगा । भाद्र मास में पूर्वाषाढ़ नक्षत्र के कर एक वर्ष तक यह व्रत करना चाहिए। पंचगव्य से समय, फाल्गुन मास में पूर्वाफाल्गुनी तथा चैत्र में उत्तराभगवान् वासुदेव को स्नान कराकर उसी को उस अवसर फाल्गुनी नक्षत्रों के समय उसी प्रकार की पूजा की जाय । पर प्रसाद रूप में ग्रहण करना चाहिए । बाण के फूलों, इन आचरणों से व्रती स्वास्थ्य, समृद्धि का लाभ करके चन्दन के प्रलेप तथा अत्यन्त स्वादिष्ठ नैवेद्य से पूजा अन्त में विष्णुलोक प्राप्त कर लेता है। करनी चाहिए। एक मास तक किसी भी प्राणी को (यहाँ विष्णुपुराण-जैसा इसके नाम से ही प्रकट है, यह वैष्णव तक कि पशु को भी) किसी प्रकार की क्षति न पहुँचायी पुराण है । प्रमुख पुराणों में इसकी गणना है । श्रीमद्भागवत जाय । इस अवसर पर असत्य भाषण, चौर्य, मांस तथा के पश्चात् लोकप्रियता में इसका दूसरा स्थान है। वैष्णव मधु-भक्षण एकदम निषिद्ध हैं। केवल भगवान् के ध्यान दर्शन के मौलिक सिद्धान्तों का इसमें प्रतिपादन हुआ है। में मग्न रहना चाहिए। शास्त्रों, यज्ञों तथा देवों की निन्दा आचार्य रामानुज ने ब्रह्मसूत्र के ऊपर रचित श्रीभाष्य में का परित्याग करना चाहिए। प्रति दिन मौन रहकर विष्णुपुराण से अनेक उद्धरण दिये हैं। इससे इसका नैवेद्य ग्रहण करना चाहिए। मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा दार्शनिक महत्त्व प्रकट होता है । यह छः खण्डों में विभक्त अन्य मासों में भी यही विधान रहेगा, केवल पुष्प, धूप है जिनको अंश कहते हैं। इसमें अध्यायों की संख्या १२६ तथा नैवेद्य ही परिवर्तित होते रहेंगे। देवकी एक सुन्दर है । आकार में यह श्रीमद्भागवत पुराण का एक तिहाई है। पुत्र चाहती थीं। अतएव विष्णु की पूजा करने के लिए प्रथम अंश में सृष्टिवर्णन, द्वितीय अंश में भूगोलवर्णन, इस व्रत का अनुष्ठान उन्होंने किया था । तृतीय अंश में आश्रम और वैदिक शाखावर्णन, चतुर्थ में विष्णुपञ्चक-कार्तिक मास के अन्तिम पाँच दिन विष्णु- इतिहास, पञ्चम में कृष्ण चरित्र और षष्ठ अंश में प्रलय पञ्चक कहलाते हैं। उन दिनों विष्णु तथा राधा की। और भक्ति का वर्णन पाया जाता है। इस पुराण में ज्ञान पञ्चोपचारों (गन्धाक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) से पूजा और भक्ति का सुन्दर समन्वय मिलता है । विष्णु और करनी चाहिए। इससे समस्त पापों का नाश होता है शिव के अभेद का प्रतिपादन भगवान् कृष्ण के मुख से और व्रती सीधा विष्णुलोक जाता है। पूजा को कुछ कराया गया है-- विभिन्न पद्धतियों का यहाँ वर्णन किया जा रहा है, यथा योऽहं स त्वं जगच्चेदं सदेवासुरमानुषम् । एकादशी को पूजन, द्वादशी को गोमूत्रपान, त्रयोदशी को मत्तो नान्यदशेषो यत् तत् त्वं ज्ञातुमिहार्हसि ॥ दुग्धाहार, चतुर्दशी को दही का आहार तथा पूर्णिमा को अविद्यामोहितात्मानः पुरुषा भिन्नदर्शिनः । केशव की आराधना करके सायंकाल पञ्चगव्य प्राशन वदन्ति भेदं पश्यन्ति चावयोरन्तरं हर ॥ करना चाहिए अथवा तुलसीदलों से हरि का पूजन करना (विष्णुपुराण, ५,३३,४८-४९) चाहिए । दे० पद्मपुराण, ३.२३,१-३३ । विष्णुप्रबोध-कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी विष्णुपद अथवा विष्णुपदी-यह चार राशियों का नाम को भगवान् शय्या त्याग कर जाग जाते हैं। इस कारण है। यथा वृषभ, सिंह, वृश्चिक तथा कुम्भ । दे० कालनिर्णय, इस दिन को विष्णुप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। ३३२ । संध्या को सुसज्जित मण्डप में पत्र-पुष्प-फलों की प्रथम विष्णुपदवत-आषाढ़ मास म पूर्वाषाढ़ नक्षत्र क समय व्रत उपज से पूजन करते हुए विष्णु को जगाया जाता है। आरम्भ करना चाहिए। इस अवसर पर दुग्ध अथवा घृत दीपमाला जलायी जाती है। इसका नाम 'देवदीपावली' में रखे हुए भगवान् विष्णु के तीन पगों की पूजा करनी भी है। चाहिए। व्रती को केवल रात्रि के समय हविष्यान्न ग्रहण विष्णुप्राप्तिव्रत-इस व्रत में द्वादशी के दिन उपवास का ७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy