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________________ रामानुज ज्ञान थोड़े समय में ही इतना बढ़ गया कि कभी-कभी इनके ही नाम पर 'रामानुज दर्शन' के नाम से विख्यात होगा। तर्कों का उत्तर देना यादवप्रकाश के लिए कठिन हो जाता मैसूर के राजा विट्टिदेव की सहायता से रामानुज ने था। इनकी विद्या की ख्याति धीरे-धीरे बढ़ने लगी। श्रीवैष्णव मत का प्रचार करने के लिए ७४ शिष्य नियत यामुनाचार्य इन्हीं दिनों गुप्त रूप से आकर इन्हें देख गये किये । इस प्रकार सारा जीवन भजन-साधन तथा धर्मऔर इनकी प्रतिभा से बड़े प्रसन्न हुए। यामुनाचार्य की प्रचार में व्यतीत कर आचार्य ने ११९४ वि० में दिव्यधाम तीन इच्छाएँ जीवन में अपूर्ण रह गयी थीं जिन्हें वे अपनी को प्रस्थान किया। मृत्यु के पहले रामानुज को बताना चाहते थे, किन्तु इनके यतिराज रामानज ने अपने मत की पुष्टि के लिए पहुँचने के पूर्व ही वे दिवंगत हो गये थे। उनकी तीन 'श्रीभाष्य' के अतिरिक्त वेदान्तसंग्रह, वेदान्तदीप, वेदान्तउँगलियाँ मुड़ी रह गयी थीं। लोगों ने इसका कारण वे सार, वेदान्ततत्त्वसार, गीताभाष्य, गद्यत्रय, भगवदाराधनतीनों प्रतिज्ञाएँ बतायीं, जो इस प्रकार थीं-(१) ब्रह्मसूत्र क्रम की भी रचना की। इसके अतिरिक्त अष्टादशरहस्य, का भाष्य लिखना, (२) दिल्ली के तत्कालीन सुलतान के कण्टकोद्धार, कूटसन्दोह, ईशावास्योपनिषद्भाष्य, गुणरत्नयहाँ से श्रीराममूर्ति का उद्धार करना तथा (३) दिग्वि कोश, चक्रोल्लास, दिव्यसूरिप्रभावदीपिका, देवतास्वारस्य, जयपूर्वक विशिष्टाद्वैत मत का प्रचार करना। रामानुज ने न्यायरत्नमाला, नारायणमन्त्रार्थ, नित्यपद्धति, नित्याज्यों ही इन्हें पूरा करने का वचन दिया त्यों ही उनकी राधनविधि, न्यायपरिशुद्धि, न्यायसिद्धान्ताञ्जन, पञ्चपटल, उँगलियाँ सीधी हो गयीं । यामुनाचार्य का अन्तिम संस्कार पञ्चरात्ररक्षा, प्रश्नोपनिषद् व्याख्या, मणिदर्पण, मतिमानुष, कर वे सीधे काञ्ची चले आये । यहाँ महापूर्ण स्वामी से मुण्डकोपनिषद् व्याख्या, योगसूत्रभाष्य, रत्नप्रदीप, रामव्यासकृत वेदान्तसूत्रों के अर्थ के साथ तीन हजार गाथाओं पटल, रामपद्धति, रामपूजापद्धति, राममन्त्र पद्धति, का उपदेश भी प्राप्त किया। वैवाहिक जीवन से ऊबकर वे रामरहस्य, रामायणव्याख्या, रामार्चापद्धति, वार्तामाला, संन्यासी हो गये थे। विशिष्टाद्वैत भाष्य, विष्णुविग्रहशंसनस्तोत्र, विष्णुसंन्यास लेने पर रामानुज स्वामी की शिष्यमण्डली सहस्रनाम भाष्य, वेदार्थसंग्रह, वैकुण्ठगद्य, शतदूषणी, बढ़ने लगी। उनके बचपन के गुरु यादवप्रकाश ने भी शरणागति गद्य, श्वेताश्वतरोपनिषद् व्याख्या, संकल्पउनका शिष्यत्व ग्रहण कर लिया तथा यतिधर्मसमुच्चय सूर्योदय टीका, सच्चरित्र रक्षा, सर्वार्थसिद्धि आदि ग्रन्थों नामक ग्रन्थ की रचना की। अनेक शिष्य उनके पास की भी रचना की। किन्तु यह पता नहीं लगता कि कौन आकर वेदान्त का अध्ययन करते थे । उन्हीं दिनों यामुना- सा ग्रन्थ कब लिखा गया। उन्होंने अपने ग्रन्थों में शाङ्कर चार्य के पुत्र वरदरङ्ग काञ्ची आये तथा आचार्य से श्री- मत का जोरदार खण्डन करने की चेष्टा की है। रङ्गम् चलकर वहाँ का अध्यक्षपद ग्रहण करने की प्रार्थना रामानुज ने यामुनाचार्य के सिद्धान्त को और भी की। रामानुज उनकी प्रार्थना स्वीकार कर श्रीरङ्गम् में विस्तृत करके सामने रखा है। ये भी तीन ही मौलिक रहने लगे। उन्होंने यहाँ फिर गोष्ठीपूर्ण से दीक्षा ली। पदार्थ मानते हैं-चित ( जीव ). अचित ( जड समह ) गोष्ठीपूर्ण ने योग्य समझ कर उन्हें मन्त्ररहस्य बता दिया और ईश्वर या पुरुषोत्तम । स्थूल-सूक्ष्म, चेतन-अचेतनऔर आज्ञा दी कि वे किसी को मन्त्र न दें। रामानुज को विशिष्ट ब्रह्म ही ईश्वर है। अनन्त जीव और जगत् जब यह ज्ञात हुआ कि इस मन्त्र के सुनने से मनुष्य मुक्त उसका शरीर है । वही इस शरीर का आत्मा है। ब्रह्म हो सकता है तो वे मन्दिर की छत पर चढ़कर चिल्ला- सगुण और सविशेष है। उसकी शक्ति माया है । ब्रह्म चिल्लाकर सैकड़ों नर-नारियों के सामने मन्त्र का उच्चारण अशेष कल्याणकारी गुणों का आलय है। उसमें निकृष्ट करने लगे। गुरु ने इससे क्रुद्ध हो उन्हें नरक जाने का कुछ भी नहीं है। सर्वेश्वरत्व, सर्वशेषित्व, सर्वकर्माशाप दिया। इस पर रामानुज ने कहा कि गुरुदेव, यदि राध्यत्व, सर्वफलप्रदत्व, सर्वाधारत्व, सर्वकार्योत्पादकत्व, मेरे नरक जाने से हजारों नर-नारियों की मुक्ति हो जाय। समस्त द्रव्यशरीरत्व आदि उसके लक्षण हैं। वह सूक्ष्म तो मुझे वह नरक स्वीकार है । रामानुज की इस उदारता चिदचिद्विशेष रूप में जगत् का उपादान कारण है, सङ्कल्पसे प्रसन्न हो गरुने कहा-'आज से विशिष्टाद्वैत मत तुम्हारे विशिष्ट रूप में निमित्त कारण है । जीव और जगत उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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