SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५० राधास्वामी मत-राम ग्रन्थ । यह संस्कृत का पद्यात्मक मधुर काव्य है जिसमें राधा- उदासीनता अवश्य है । यह सुधारवादी सम्प्रदाय है । जी की प्रार्थना की गयी है । दे० 'राधावल्लभीय'। राधास्वामी पन्थ केवल निर्गुण योगमार्ग का साधक कहा राधास्वामी मत-उपनाम 'सन्तमत' । इसके प्रवर्तक हुजूर जा सकता है । राधास्वामी दयाल थे, जिन्हें आदरार्थ स्वामीजी महाराज राम-विष्णु के भक्तों को वैष्णव कहते हैं, साथ ही विष्णु कहा जाता था। जन्मनाम शिवदयालुसिंह था। इनका के दो अवतारों ( राम तथा कृष्ण ) के प्रति भक्ति रखने जन्म खत्री वंश में आगरा के महल्ला पन्नीगली में विक्रम वाले भी वैष्णव धर्मावलम्बी ही माने जाते हैं । राम सम्प्रसं० १८७५ की भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को १२॥ बजे रात दाय आधुनिक भारत के प्रत्येक कोने में व्याप्त हो रहा है। में हुआ । छः सात वर्ष की अवस्था से ही ये कुछ विशेष वाल्मीकि रामायण में राम का ऐश्वर्य स्वरूप तथा चरित्र लोगों को परमार्थ का उपदेश देने लगे। इन्होंने किसी बहुत ही उच्च तथा आदर्श नैतिकता से भरपूर है । परगुरु से दीक्षा नहीं ली, हृदय में अपने आप परमार्थज्ञान __वर्ती कवियों, पुराणों और विशेष कर भवभूति ( आठवीं का उदय हुआ। १५ वर्षों तक लगातार ये अपने घर की __शताब्दी का प्रथमार्द्ध) के दो संस्कृत नाटकों ने राम के भीतरी कोठरी में बैठकर 'सुरत शब्दयोग' का अभ्यास करते चरित्र को और अधिक व्याप्ति प्रदान की। इस प्रकार रहे । बहुत से प्रेमी सत्संगियों के अनुरोध और बिनती पर रामायण के नायक को भारतीय जन ने विष्णु के अवतार आपने संवत् १९१७ की वसन्तपञ्चमी से सार्वजनिक उप- की मान्यता प्रदान की। इस बात का ठीक प्रमाण नहीं देश देना प्रारम्भ किया और तब से १७ वर्ष तक लगातार है कि राम को विष्णु का अवतार कब माना गया, किन्तु सत्सङ्ग जारी रहा । इस अवधि में देश-देशान्तर के बहुत कालिदास के रघुवंश काव्य से स्पष्ट है कि ईसा की आरसे हिन्दू, कुछ मुसलमान, कुछ जैन, कोई-कोई ईसाई, सब म्भिक शताब्दियों में यह मान्यता हो चुकी थी। वायुमिलकर लगभग ३००० स्त्री-पुरुषों ने सन्तमत या राधा- पुराण में राम के दैवी गुणों का वर्णन है। १०१४ ई० में स्वामी पंथ का उपदेश लिया। इनमें दो-तीन सौ के अमितगति नामक जैन लेखक ने राम का सर्वज्ञ, सर्वव्याप्त लगभग साधु थे। स्वामीजी महाराज ६० वर्ष की अव- और रक्षक रूप में वर्णन किया है। स्था में सं० १९३५ वि० में राधास्वामी लोक को पधारे । यद्यपि राम का देवत्व मान्य हो चुका था परन्तु रामआप का स्थान 'हुजूर महाराज' राय सालिगराम बहा उपासक कोई सम्प्रदाय इस दीर्घ काल में था, इस बात दुर माथुर ने लिया, जो पहले उत्तर-प्रदेश के पोस्टमास्टर का प्रमाण नहीं मिलता। किन्तु यह मानना पड़ेगा कि जनरल थे। इन्हीं के गुरुभाई जयमलसिंह ने ब्यास ११वीं शताब्दी के बाद रामसम्प्रदाय का आरम्भ हो (पंजाब ) में, बाबा बग्गासिंह ने तरनतारन में और चुका था। तेरहवीं शताब्दी में उत्पन्न मध्व, जो एक बाबा गरीबदास ने दिल्ली में अलग-अलग गद्दियाँ स्थपित वैष्णव सम्प्रदाय के स्थापक थे, हिमालय के बदरिकाश्रम की । परन्तु मुख्य गद्दी आगरे में तब तक रही जब तक से राम की मूर्ति लाये, तथा अपने शिष्य नरहरितीर्थ को हुजूर महाराज सद्गुरु रहे। इनके बाद महाराज साहब उड़ीसा की जगन्नाथ पुरी से राम की आदि मूर्ति लाने को पंडित ब्रह्मशंकर मिश्र गद्दी के उत्तराधिकारी हुए। इनके भेजा (लगभग १२६४ ई० में)। हेमाद्रि (तेरहवीं शताब्दी के पश्चात् श्री कामताप्रसाद सिन्हा उपनाम सरकार साहब उत्तरार्द्ध ) ने रामजन्मोत्सव का वर्णन करते हुए उसकी गाजीपुर में रहे और बुआजी साहिबा स्वामीबाग की देख तिथि चैत्र शुक्ल नवमी का उल्लेख किया है। आज भारत रेख करती रहीं। सरकार साहब के उत्तराधिकारी सर के प्रत्येक नागरिक की जिह्वा पर रामनाम व्याप्त है, आनन्दस्वरूप 'साहबजी महाराज' हए जिन्होंने आगरा चाहे वह किसी भी वर्ग, जाति या सम्प्रदाय का हो । जब में दयालबाग की स्थापना की। दो व्यक्ति मिलते हैं तो एक-दूसरे का स्वागत 'राम राम' इस प्रकार पन्थ की स्थापना के ७० वर्षों के भीतर कहकर करते हैं। बच्चों के नामों में 'राम' का सर्वाधिक मुख्य गद्दी के अतिरिक्त सात गद्दियाँ और चल पड़ी। इस प्रयोग भारत में हुआ है। मृत्युकाल तथा दाहसंस्कार पर पन्थ में जाति-पाति का बन्धन नहीं है । हिन्दू संस्कृति का राम का ही स्मरण होता है । विरोध अथवा बहिष्कार तो नहीं है, परन्तु उसकी ओर से रामभक्ति से सम्बन्ध रखनेवाला साहित्य परवर्ती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy