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________________ मेयकण्डदेव-मैत्रायणीयोपनिषद् ५२७ या कदाचित् स्त्री के रूप में हुआ है। उनके साथ सम्ब- मेरुतन्त्र में कुछ अत्यन्त आधुनिक शब्दों के व्यवहार से जान न्धित कथा का उल्लेख कहीं भी नहीं है । पड़ता है कि तन्त्रों का निर्माण काफी पीछे तक होता रहा है। (२) हिन्दु पराकथा में मेना हिमालय की पत्नी मेषसंक्रान्ति-यह हिन्दुओं के कालविभाजक मुख्य पर्यों में और पार्वती की माता का नाम है। से एक है। इस पर्व पर गङ्गास्नान, जल कलश, पंखा एवं सत्तू आदि का दान और भक्षण किया जाता है । प्राचीन मेयकण्डदेव-तमिल शैव अपने धार्मिक ज्ञानार्थ आगम समय में इस पर्व का महत्त्व विषुव दिन ( समानरात्रिग्रन्थों पर निर्भर रहते थे, किन्तु तेरहवीं और चौदहवीं दिन ) के कारण था। धार्मिक विचार से सूर्य का मेष शती में वहाँ कुछ तीक्ष्ण बुद्धिवाले विचारक हुए, जो राशि में इसी दिन प्रवेश होता है। किन्तु पृथ्वी की तमिल भाषा के कवि भी थे । उन्हीं में एक मेयकण्ड थे जो अयन-गति में प्रति वर्ष अन्तर पड़ते जाने के कारण संप्रति तमिल शैव धर्म के स्रोत समझे जाते हैं । तेरहवीं शताब्दी रात्रि-दिन के समान होने वाली घटना इस संक्रान्ति से के प्रारम्भ में इनका जन्म शूद्र कुल में मद्रास से उत्तर प्रायः २३ दिन पूर्व होने लगी है। इसीलिए सूर्य का पेन्नार नदी के तटपर हुआ था। उन्होंने शैव आगम के उत्तर गोल गमन संबन्धी विभाजन भी इसी समय होने १२ सूत्रों का संस्कृत से तमिल में अनुवाद किया । इस लगा है। इस प्रकार २३ दिन पूर्व होने वाली ऐसी सब ग्रन्थ का नाम 'शिव ज्ञान बोध' था, जिसमें इन्होंने कुछ संक्रान्तियों को "सायन संक्रान्ति" कहते हैं। तमिल में टिप्पणियाँ तथा समानताओं का एक गद्यखण्ड मैत्रायणीय-कृष्ण यजुर्वेद की एक शाखा है। अपने तर्कों की पुष्टि के लिए प्रस्तुत किया । ये प्रसिद्ध मैत्रायणीयगृह्यसूत्र-यजर्वेद के गृह्यसूत्रों में मैत्रायणीय अध्यापक थे तथा इनके अनेक शिष्य थे। इनके सबसे प्रसिद्ध अध्यापक थ तथा इनक अनक शिष्य था इनक सबस प्रासद्ध गृह्यसूत्र भी प्राप्त होता है। शिष्य अरुलनन्दीदेव तथा मनवाचकम् कदण्डान थे। मैत्रायणी ब्राह्मण-बौधायन शुल्बसूत्र में ( ३२१८) उद्अरुलनन्दी के शिष्य मरैज्ञानसम्बन्ध (शूद्र ) थे तथा घत एक वैदिक ग्रन्थ का नाम, जो मैत्रायणी शाखा के उनके ब्राह्मण शिष्य उमापति थे । इस प्रकार मेयकण्ड, अरुलनन्दी, मरैज्ञानसम्बन्ध तथा उमापति मिलकर मैत्रायणीय यजर्वेद पद्धति-यजुर्वेद सम्बन्धी कर्मकाण्ड का 'चार सनातन आचार्य' के नाम से विख्यात हैं। इस नाम का एक ग्रन्थ प्राप्त हुआ है। मेरुतन्त्र-यह सुप्रसिद्ध तन्त्र शिव-पार्वती-संवाद रूप से मैत्रायणी शाखा-यजुर्वेद की मैत्रायणी शाखा भी मिलती ३५ प्रकाशों में पूर्ण हुआ है । शिव द्वारा उपदिष्ट १०८ है। इसके मन्त्रसंकलन में पाँच काण्ड हैं । बहत सम्भव तन्त्रों में इसका स्थान सबसे ऊँचा है ( माला के सुमेरु के है कि ये यजुर्वेद की भिन्न-भिन्न शाखाओं के संहिता समान ), इसलिए इसका नाम मेरुतन्त्र हो गया। यह भी ग्रन्थों से संकलित किये गये हो। कहा गया है कि जलन्धर के भय से मेरु पर्वत पर गये मैत्रायणीसंहिता-यजुर्वेद के मैत्रायणीय शाखा की मंत्राहए देवता और ऋषियों के प्रति शिवजी ने इसका उपदेश यणी संहिता है । इसमें कुछ ब्राह्मण अंश भी प्रस्तुत किया किया था। यह दक्षिण और वाम दोनों मार्ग वालों को गया है। एक समान मान्य है। मैत्रायणीयोपनिषद्-कृष्ण यजुर्वेद की एक उपनिषद् । मेरुतन्त्र ही संस्कृत गंथों में ऐसा ग्रन्थ है जहाँ इसकी रचना सम्भवतः गीता के काल की अथवा भारत के रहने वालों के लिए 'हिन्दू' शब्द का व्यवहार उससे कुछ बाद की है। महाभारत के दो अध्यायों हआ है । यहाँ 'हीन' तथा 'दुष' दो शब्दों से हिन्दू की व्यत्पत्ति बतायी गई है । 'हीन' का अर्थ 'अधम', 'नीच'. मैत्रायणी, माण्डूक्य ये तीनों उपनिषदें अपने ओमनिरू'गो' और 'दुष' निन्दा और नष्ट करने के अर्थ में आता पण के सिद्धान्त के कारण एक-दूसरी के बहुत निकट है। है। "जो कुछ निन्दा के योग्य है उसे नष्ट करने वाला, धार्मिक विचारों की उन्नति या विकास की दृष्टि से अथवा उसकी निन्दा करने वाला हिन्दू है।" यही तन्त्र- अकेली मैत्रायणी ही गंभीर गुण सम्पन्न है । मैत्रायणी में कार का अभिप्राय है जो काफिर कहने वालों का जबाब है। सांख्य तथा योग के पर्याप्त दार्शनिक तत्त्व है। चलिका. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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