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________________ ५२० ११. २), "मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम् ।" ( यजु० ३६.१८ ) आदि वचनों के प्रकाश में धार्मिक दृष्टि से मांसभक्षण की अनुज्ञा नहीं है। कुछ तथाकचित सुधारक या पंडितमन्य आलोचक ऋग्वेद की दुहाई देकर गोवध और तन्मासभक्षण को वैध ठहराते हैं । ऐसे लोग वैदिक रहस्यार्थ से वंचित और अबोध हैं । ऋग्वेद में प्रातः शान्तिपाठ के ए गोसूक्त का उदात्त निर्देश है "दुहामश्विभ्यां पयो अन्ये वर्धतां सौभगाय ।" ( १.१६,४२७ )" "अद्धि तृणमध्ये विश्वेदानीं पिव शुद्धमुदकमाचरन्ती ।" ( १.१६४.४० ) । प्रत्येक विवाह विधि में यह मंत्र वर की ओर से पढ़ा जाता है "माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्याममृतस्य नाभिः । मा गामनागामदिति वधिष्ट ।” ( ८.१०१.१५ ) । ऋग्वेद की उक्त स्पष्ट गो आदि पशुवध तथा मांसभक्षणविरोधी आज्ञाओं के होते हुए यह कहना कि वैदिक काल के हिन्दुओं में धर्मविहित गोवध या मांसभक्षण प्रचलित था, सरासर दुःसाहस और अनैतिहासिक है। संभवतः यह एक षडयन्त्र था जिसमें विधर्मी शासकों द्वारा स्वार्थसिद्धि के लिए कुछ पाश्चात्य लेखकों को फुसलाकर उनसे वेदमन्त्रों की ऐसी अनर्थकारी व्याख्यायें लिखवायी गयीं । कुछ वैदिक कूट पहेलियों जैसे वाक्यों ने इन लोगों की व्यामोहित भी कर डाला। मांसभक्षण और पशुवध के सम्बन्ध में वेद का यह कठोर आदेश है : यः पौरुषेयेण ऋविधा समङ्क्ते यो अश्वेन पशुना यातुधानः । यो अनाया भरति क्षीरमने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्च ॥ (ऋ. १०.८७.१६ ) या आमं मांसमदन्ति पौरुषेयं च ये ऋषिः । गर्भान् ( अण्डान् ) खादन्ति केशवास्तान् इतो नाशयामसि || ( अथर्व ० ८.६.२३ ) सुरा मत्स्या मधु मांसमासवं कृशरौदनम् । पूर्तेः प्रवर्तितं तद् नैतद् वेदेषु दृश्यते ॥ ( महा० शान्ति० २६५.९ ) मित्र - आदित्य वर्ग का वैदिक देवता । वरुण के साथ इसका सम्बन्ध इतना घनिष्ठ है कि स्वतंत्र रूप से केवल एक सूक्त (ऋग्वेद ३.५९) में इसकी स्तुति मिलती है। मित्र का सबसे बड़ा गुण यह माना गया है कि वह अपने Jain Education International 4 मित्र शब्दों का उद्घोष करता हुआ ( ब्रुवाणः ) लोगों को एक दूसरे से सम्मिलित करता है ( वातयति) और अनिमेष दृष्टि से ( अनिमिषा ) कृषकों की रखवाली करता है। मित्र मनुष्यों को प्रेरित कर उनको कार्यों में लगाता है, जिन्हें वे मंत्री और सहकारिता द्वारा पूरा करें वह देवी मित्र और सन्धि का देवता है वह अपने गुणों की मानवों में उतारता है। मित्र के बारे में प्रायः वे ही बातें कही गयी हैं जो वरुण के बारे में प्रसिद्ध है। वह स्वर्ग तथा पृथ्वी का धारण करने वाला, लोकदेवता, स्वर्ग और पृथ्वी से बड़ा, निनिमेष मानवों की ओर देखने वाला, राजाओं के समान जिसके व्रतों ( आज्ञाओं) का पालन होना चाहिए, दयालुता का देवता, सहायक, दानी, स्वाथ्यवर्द्धक समृद्धि दाता आदि है। मित्र सूर्योदय अथवा दिन का देवता है, वरुण सूर्यास्त अथवा रात्रि का मित्र दिन के नैतिक जीवन का संरक्षक है, वरुण रात्रि के नैतिक जीवन का । मित्र तथा वरुण के नाम विकलर द्वारा 'बोगाज - कोई' ( लघु एशिया, ईराक ) की तख्ती पर ( १४०० ई० पू० ) लिखित अभी कुछ वर्ष पूर्व प्राप्त हुए हैं। ओल्डेनबर्ग के मतानुसार ये देवता ईरानी हैं । अन्य विद्वानों के अनुसार ये भारतीय हैं। यदि ये वैदिक माने जायें तो इनकी उपर्युक्त स्थिति से प्राचीन काल के भारत तथा लघु एशिया के सम्बन्धों की पुष्टि होती है तथा यह भी पता चलता है कि भारतीय आर्यों की एक शाखा इसी मार्ग ( बोगाज-कोई) से अपने पश्चिमी निवास की ओर अग्रसर हुई थी । बोगा कोई अभिलेख के मित्र एवं वरुण की सहयोगिता का उल्लेख पारसियों के 'अवेस्ता' में 'मिश्र तथा अहुर' के नामों से हुआ है । परवर्ती अवेस्ता के मिश्र अहुर तथा ऋग्वेदीय मित्र वरुण के जोड़े यह सिद्ध करते हैं कि यह मान्यता भारत-ईरानी के पूर्व की है। योगाज कोई अभिलेख भी पुष्टि 'अस्सिल' प्रत्यय द्वारा जोड़े जाने वाले मित्र तथा वरुण से करता है। अवेस्ता में 'मित्र' का अर्थ सिप है तथा ऋग्वेद में यह 'मित्रता' अर्थ का योतक है। एकता टूटने इस बात की जैसे जेनस का अर्थ है " द्वार का मित्र वह देवता है जो सत्य भाषण, स्वीकृतियों, वचनों, सन्धियों में जान पड़ता है कि मित्र प्रारम्भ में सन्धि का देवता था, देवता " । इस प्रकार मनुष्य मनुष्य के बीच सचाई की देख-रेख For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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