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________________ महायोगी-महालक्ष्मीपूजा ५०७ रहने वाले का जीवन व्यर्थ है । अध्ययन और दैवकर्म में प्रवृत्त रहने वाला व्यक्ति चराचर विश्व का धारणकर्ता बन सकता है। देवयज्ञ की अग्न्याहुति सूर्यलोक को जाती है जिससे वर्षा होती है, वर्षा से अन्न उत्पन्न होता है और अन्न से प्रजा का उद्भव होता है । अतएव मनुष्य को ऋषि, देवता, पित, भूत और अतिथि सभी के प्रति निष्ठवान् होना चाहिए, क्योंकि ये सब गृहस्थ से कुछ-नकुछ चाहते हैं । अतः गृहस्थ को चाहिए कि वह वेदशास्त्रों के स्वाध्याय से ऋषियों को, देवयज्ञ द्वारा देवताओं को, श्राद्ध रूप पिण्ड-जलदान के द्वारा पितरों को, अन्नद्वारा मनुष्यों को और बलिवैश्वदेव द्वारा पशु-पक्षी आदि भूतों को तृप्ति प्रदान करे। इन पञ्च महायज्ञों को नित्य करने वाला गहस्थ अपने सभी धार्मिक सामाजिक, सांस्कृतिक कतव्यों को पूर्ण करता है एवं समस्त विश्व से अपनी एकात्मता का अनुभव करता है। महायोगी-ध्यान, योग और तपस्या-भारत की ये प्राचीन साधनाएँ सभी धार्मिक सम्प्रदायों को मान्य रही हैं । शिव इनके प्रतीक है, अतः वे महायोगी माने जाते हैं। सिन्धु घाटी के प्राचीन सभ्यतास्मारकों में शिव का ध्यानयोगी के रूप में मूर्त आकार प्राप्त हुआ है। उनका योगी रूप बुद्ध से बहुत कुछ मिलता-जुलता है। एलिफैण्टा गुहा में शिव के महायोगी रूप का पाया जाना इस बात का प्रमाण है कि ब्राह्मणों और बौद्धों की, जहाँ तक योग और ध्यान का सम्बन्ध है, समान परम्पराएं थीं। महार-हिन्दुओं के अस्पृश्य वर्ग की एक जाति का, जो चर्मकार कहलाती है, महाराष्ट्र में प्रचलित नाम । विठ्ठल या विढोबा (विष्णु) के पण्ढरपुर स्थित मन्दिर में महार लोगों का प्रवेश निषिद्ध था। इस मन्दिर के ठीक सामने सड़क को दूसरी ओर महार लोगों का मन्दिर है, जिसे चोखा मेला नामक एक महार भक्त ने बनवाया था। उसकी कविता आज भी सजीव है तथा उसके कुछ अंश अति सुन्दर हैं। महाराजवत-शुक्ल या कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आर्द्रा नक्षत्र को अथवा पूर्वाभाद्रपद तथा उत्तराभाद्रपद को आती हो तो वह भगवान् शिव को अत्यन्त आनन्ददायिनी हो जाती है । पूर्ववर्ती त्रयोदशी को संकल्प कर चतुर्दशी को मृत्तिका, पञ्चगव्य, तदनन्तर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। तदुपरान्त १००० बार शिवसंकल्प सूक्त (यज्जाग्रतो दूरम्० ) का प्रथम तीन वर्ण वाले लोग तथा 'ओम् नमः शिवाय' मंत्र का शूद्र लोग जप करें। भगवान शिव तथा पार्वती की प्रतिमाओं को पञ्चामृत, पञ्चगव्य, गन्ने के रस से स्नान कराने के बाद कस्तूरी, केसर आदि सुगन्धित पदार्थों का उन पर प्रलेप किया जाय । दीपों को प्रज्ज्वलित कर उन्हें पंक्तिबद्ध रख देना चाहिए । एक सहस्र बिल्व पत्रों से शिव संकल्प मंत्र अथवा 'त्र्यम्बकं यजामहे'" "का पाठ करते हए होम करना चाहिए। तदनन्तर शिव जी को निश्चित मंत्रों से अर्घ्य दान करना चाहिए। व्रती रात भर जागरण तथा पाँच, दो या कम से कम एक गौ का दान करे । पंचगव्य प्राशन के बाद व्रती को मौन रखकर भोजन करन चाहिए। इस व्रत के आचरण से समस्त विघ्न-बाधाएँ दूर होती है तथा व्रती श्रेष्ठ लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। महारामायण-ऐसा एक प्रवाद है कि वाल्मीकीय रामायण आदि रामायण नहीं है। आदि रामायण भगवान शङ्कर की रची हुई बहुत बड़ी पुस्तक थी जो अब उपलब्ध नहीं है। इसका नाम महारामायण बतलाया जाता है । इसको सतयुग में भगवान् शङ्कर ने पार्वती को सुनाया था। इसमें तीन लाख पचास हजार श्लोक हैं और सात काण्डों में विभक्त है । विलक्षणता यह है कि साथ ही साथ उसमें वेदान्त वर्णन है और नवरसों में उसका विकास दिखाया गया है। महारौरव-तप्त घोर नरकों में से एक नरक। इसमें 'रुरु' के काटने से रुदन और क्रन्दन की प्रधानता रहती है। गरुडपुराण में इसका विस्तृत वर्णन पाया जाता है। महालक्ष्मी पूजा-इस व्रत के विषय में मतभेद है। 'कृत्यसारसमुच्चय', पृ० १९ तथा 'अहल्याकामधेनु' कहते हैं कि भाद्र शुक्ल अष्टमी को इस व्रत का प्रारम्भ कर आश्विन कृष्ण अष्टमी को ( पूर्णिमान्त ) समाप्त करना चाहिए। यह व्रत १६ दिनों तक चलना चाहिए। इसमें प्रतिदिन लक्ष्मी जी की पूजा तथा कथा सुनी जाती है । महाराष्ट्र में महालक्ष्मी की पूजा आश्विन शुक्ल अष्टमी को मध्याह्न के समय मुवती नवोढाओं द्वारा होती है तथा रात्रि समस्त विवाहिता नारियाँ एक साथ इकट्ठी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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