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________________ महाभाष्य ५०५ पाण्डवों का चरित्र लिखा गया है। इसकी रचना के तीन तथ्य है, जो कहानी में बना रहा, यद्यपि स्वाभाविक रूप क्रम कहे जाते हैं : प्रथम क्रम में मूल भारत आख्यान की से यह आगे चलकर अग्रहणीय समझा जाने लगा। इस रचना कृष्ण द्वैपायन व्यास ने ८८०० श्लोकों में की थी। काल ( प्रथम अवस्था ) की एक समस्या कृष्ण का देव इसका परिवर्धित दूसरा संस्करण भारत संहिता नाम से रूप में उत्थान है, जिनका एक विरुद वासुदेव था। कुछ बादरायण व्यास ने २४००० श्लोकों में अपने शिष्यों को विद्वानों का विश्वास है कि आदि ( प्रथम ) भारत में पढ़ाने के लिए किया । आगे चलकर जममेजय और वैश- कृष्ण केवल एक मानव थे तथा परवर्ती काल में ही उन्हें दैवी पायन के संवाद रूप का विस्तृत संकलन महाभारत नाम रूप मिला। दूसरों का मत है कि महाभारत कृष्ण में से एक लाख श्लोकों में सौति ने शौनक आदि ऋषियों को ___सदा देवता रहे हैं। सुनाते हुए संपादित किया । हरिवंश खिलपर्व इसका प्रचलित महाभारत १८ पर्यों में विभक्त है। इन पर्वी परिशिष्ट माना जाता है। के अवान्तर भी एक सौ छोटे पर्व हैं जिन्हें पर्वाध्याय कहते __ आधुनिक आलोचक इस महाग्रन्थ को वेदव्यास और हैं। पर्व निम्नांकित है : उनके शिष्य-प्रशिष्यों की रचना न मानकर बाद के अनेक १. आदिपर्व २. सभापर्व ३. वनपर्व ४. विराटपर्व संशोधक-संपादक पौराणिक विद्वानों का संकलन या संग्रह ५. उद्योग पर्व ६. भीष्म पर्व ७. द्रोण पर्व ८. कर्ण पर्व कहते हैं। उनके विचार में भारत नामक महाकाव्य मूलतः ९. शल्य पर्व १०. सौप्तिक पर्व ११. स्त्री पर्व १२. वीरगाथा रूप में था। कालान्तर में जनसाधारण के धर्म शान्ति पर्व ( आपद्धर्मपर्वाध्याय, मोक्षधर्मपर्वाध्याय ) ज्ञान का प्रमाण होने तथा विविध हिन्दू सम्प्रदायों के । १३. अनुशासन पर्व १४. आश्वमेधिक पर्व १५. आश्रमउत्थान का वर्णन उपस्थित करने के कारण उसकी महत्ता वासिक पर्व १६ कौशल पर्व १७. सहाप्रास्थानिक पर्व बढ़ गयी। विद्वान् इस महाकाव्य के मिश्रण या परिवर्ध और १८. स्वर्गारोहण पर्व । नात्मक तीन कालों पर एकमत हैं । (क) भारत महाकाव्य की साधारण काव्यमय रचना : महाभारत का खिल अथवा परिशिष्ट पर्व हरिवंश दसवीं से पांचवीं अथवा चौथी शताब्दी ई० पू० के बीच । उपपुराण के नाम से ख्यात है जिसमें भगवान् कृष्ण के वंश (ख) इस महाकाव्य का वैष्णव आचार्यों द्वारा साम्प्र का वर्णन है। इसी में विष्णुपर्व भी है और शिवचर्या भी है दायिक काव्य में परिवर्तन : दूसरी शताब्दी ई० पू० ।। और साथ ही साथ अद्भुत भविष्य पर्व भी है जो पर्वा(ग) महाभारत का वैष्णव ईश्वरवाद, धर्म, दर्शन, ध्याय में १० वा पर्व गिना जाता है। विष्णु पर्व में राजनीति, विधि का विश्वकोश बन जाना : ईसा की पहली अवतारों का वर्णन है और कृष्ण द्वारा कंस के मारे तथा दूसरी शताब्दी। जाने की कथा है। इसमें जैनों के तीर्थङ्कर नेमिनाथ वा प्रथम अवस्था में प्रस्तुत महाभारत के विषयों पर । अरिष्टनेमि को कृष्ण की ज्ञाति से सम्बद्ध गिनाया गया दृष्टिपात करने से हम उसकी धार्मिक विशेषताओं को है। इसके भविष्य वर्णन से और जैनियों की चर्चा से बहतों समझ सकते हैं, यद्यपि नये तथ्यों के मेल को उनसे अलग को अनुमान होता है कि महाभारत की एक लाख की करना बड़ा कठिन है। उसमें ईश्वरवाद है, किन्तु देवी संख्या पूरी करने के लिए यह परिशिष्ट बहुत ही बाद में अवतार तथा आत्मा का सिद्धान्त नहीं है। तीन मुख्य मिलाया गया । जैनियों का भी हरिवंश पुराण है देवता, इन्द्र, ब्रह्मा, और अग्नि हैं। धर्म तथा काम देवता जो इस हरिवंश से बिलकुल भिन्न है। इसमें नेमिनाथ की के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं । कृष्ण भी हैं किन्तु मानव या कथा मुख्य है और उसी के प्रसंग में श्री कृष्ण और उनके देवता के रूप में, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। वंश का भी विवरण दिया गया है। है । महाभारत के समाज में जातिवाद का पूर्ण अभाव है। महाभाष्य-पाणिनि मुनि के अष्टाध्यायी नामक व्याकरण स्त्रियों को पर्याप्त स्वाधीनता है । साधारण नियम के ग्रन्थ पर पतञ्जलि का महाभाष्य उस काल की रचना है, विपरीत ब्राह्मण योद्धा का कार्य करते हैं। हिन्दू अभी __ जब शुङ्गों द्वारा बैदिक धर्म का पुनरुद्धार हो रहा था। शाकाहारी नहीं हुए थे । द्रौपदी का बहपतित्व ऐतिहासिक ल्याकरण प्रन्थ होने के साथ-साथ यह ऐतिहासिक, राज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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