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________________ मन्दार सप्तमी-मराठा भक्त ४९७ दिया जाता है । स्वर्ग के पाँच वृक्षों में से एक मन्दार भी दूर-दूर तक फैली । इस नघे देवता सम्बन्धी एक महत्त्वहै। अन्य है पारिजात, सन्तान, कल्पवृक्ष तथा हरिचन्दन । पूर्ण साहित्य की उत्पत्ति प्रारम्भिक बंगला में हुई। इस मन्दार सप्तमी-माघ शुक्ल सप्तमी को इस व्रत का अनुष्ठान सम्प्रदाय से सम्बन्धित 'शून्य पुराण' ( रामाई पण्डित होता है । पञ्चमी को हलका आहार किया जाता है। कृत-११ वीं शताब्दी) एवं लाउसेन नामक मैन अग्रिम दिन ब्राह्मणों को मन्दार के आठ पुष्प खिलाये (बंगाल) के राजा का नाम आता है, जिसने धर्म की पूजा जाते हैं। इसके देवता सूर्य है। शेष क्रिया पूर्वोक्त व्रत के ही की और जिसके वीरतापूर्ण कार्यों की प्रसिद्धि-गा समान होती है। हई । इन कथाओं के आधार पर 'धर्ममङ्गल' आदि नामों मन्वन्तर-सृष्टि की आयु के माप के लिए हिन्दू मान्यता में से बंगला की मङ्गल काव्य माला का प्रारम्भ हुआ, जो युग, मन्वन्तर एवं कल्प तीन मुख्य मान उल्लिखित १२ वीं शताब्दी से लिखी जाने लगी। मंगल काव्य के हैं । कल्प के वर्णन में युगों ( चार ) का भी वर्णन किया सबसे प्रथम लेखक मयूर भट्ट माने जाते हैं। जा चुका है । यहाँ मन्वन्तर के बारे में लिखा जा रहा है। मराठा भक्त-महाराष्ट्र देश के वैष्णव भागवत उपनाम से चार युगों । कृत, वेता, द्वापर एवं कलि ) का एक जाने जाते है, किन्तु यह ज्ञात नहीं है कि भागवत पुराण महायुग ( ४,३२०००० वर्ष ), ७१ महायुगों का एक का व्यवहार यहाँ कब आरंभ हुआ। चौदहवीं शताब्दी में मन्वन्तर एवं १४ मन्वन्तरों का एक कल्प होता है ! भागवत धर्म का प्रचलन यहाँ अधिक विस्तृत हो गया। मन्वादि तिथि-कुल १४ मन्वन्तर हैं । चार युगों को यहाँ का तत्कालीन समस्त लोक साहित्य स्थानीय भाषा मिलाकर ४३२०००० वर्षों का एक महायुग बनता है। ( मराठी ) में है। अतएव महाराष्ट्र के भागवतों और प्रत्येक मन्वन्तर में ७१ महायुगों से कुछ अधिक वर्ष होते तमिल तथा कन्नड भागवतों में बड़ा अन्तर है। यहाँ हैं। वर्ष के अन्तर्गत उक्त मन्वन्तरों का आरम्भ जिन भक्ति-आन्दोलन का प्रारंभ ज्ञानेश्वर नामक सन्त कवि से तिथियों को होता है वे मन्वादि तिथि के नाम से प्रसिद्ध हुआ । एक परम्परा के अनुसार इनका उल्लेख भक्तमाल में है। चूंकि ये तिथियाँ अत्यन्त पुनीत हैं, उन दिनों हुआ है । ये विष्णुस्वामी के शिष्य थे । श्राद्धादि का अनुष्ठान किया जाना चाहिए। दे० मन्वादि ज्ञानेश्वर ने भगवद्गीता पर आधारित मराठी कविता तिथियों के लिए तथा चौदह मन्वन्तरों के नाम तथा उनके में १०,००० पद्यों का एक ग्रन्थ लिखा जिसे 'ज्ञानेश्वरी' वर्णन के लिए विष्णुधर्मोत्तर. अध्याय प्रथम, श्लोक कहते हैं (१३४७ वि०)। इससे अद्वैत ज्ञान की १७-१८९ । ध्वनि निकलती है, किन्तु यह योग साधना का भी उपदेश मयूर-सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में उत्पन्न एक कवि जो देता है। लेखक अपने को गोरखनाथी शिष्य परंपरा के महाराज हर्षवर्धन के राजकवि बाण के विपक्षी थे। . संत निवृत्तिनाथ का शिष्य बतलाते हैं। ज्ञानेश्वर ने २८ इनका 'सूर्यशतक' संस्कृत काव्य का अनूठा ग्रन्थ अभंगों के एक संग्रह 'हरिपाठ' की भी रचना की। है। यह स्रग्धरा छन्द एवं गौडीय रीति में रचा गया है। ये मराठी पद्य में रचित अद्वैत शैवदर्शन की कृति 'अमृताएक परिपक्व कवि की रचना होने के साथ ही यह नुभव' के भी लेखक हैं। इस प्रकार संत ज्ञानेश्वर सूर्य देवता के तत्कालीन ईश्वरत्व का पूर्णतया दिग्दर्शन भागवत होने के साथ, शिव तथा विष्णु की भक्ति करने कराता है। कहा जाता है कि मयूर कवि को कुष्ठ रोग वाले तथा शङ्कराचार्य के भी दार्शनिक अनुयायी थे। हो गया था, जो सूर्यशतक की रचना और पाठ करने से ज्ञानेश्वर के बाद दूसरा प्रसिद्ध नाम भक्त नामदेव का छूट गया। अतएव यह काव्य साहित्यिक और धार्मिक आता है। परम्परानुसार दोनों कम से कम एक बार दोनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। मिले थे। भक्त माल के अनुसार नामदेव ज्ञानेश्वर के मयूर भट्ट-तान्त्रिक बौद्ध धर्म के अवसान ने बङ्गाल शिष्य थे। किन्तु रामकृष्ण भण्डारकर दोनों के समयों में तथा उड़ीसा के हिन्दू धर्म पर पर्याप्त प्रभाव डाला । बौद्ध १०० वर्ष का अन्तर बतलाते हैं। नाम देव के कुछ पदों त्रिरत्न-बुद्ध, धर्म एवं संघ-से एक नये हिन्दू देवता की का 'गुरु ग्रन्थ साहब' में उद्धरण यह प्रकट करता है कि कल्पना हुई, जिसका नाम धर्म पड़ा । धर्म ठाकुर की भक्ति इनका मराठा देश तथा पञ्जाब में समान आदर था ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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