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________________ अन्धक-अन्नम्भट्ट के अन्त्येष्टिसंस्कार में कई अपवाद अथवा विशेष क्रियाएँ काशी में अन्नपूर्णा का प्रसिद्ध मंदिर है। ऐसा विश्वास होती है। आहिताग्नि, अनाहिताग्नि, शिशु, गभिणी, है कि अन्नपूर्णा के आवास के कारण काशी में कोई नवप्रसूता, रजस्वला, परिव्राजक-संन्यासी-वानप्रस्थ,प्रवासी व्यक्ति भूखा नहीं रहता।। और पतित के संस्कार विभिन्न विधियों से होते हैं। अन्नप्राशन-एक संस्कार, जिसमें शिशु को प्रथम बार अन्न हिन्दुओं में जीवच्छ्राद्ध की प्रथा भी प्रचलित है। चटाया जाता है । छठे अथवा आठवें महीने में बालक का, धार्मिक हिन्दू का विश्वास है कि सद्गति (स्वर्ग अथवा पाँचवें अथवा सातवें महीने में बालिका का अन्नप्राशन मोक्ष) की प्राप्ति के लिए विधिपूर्वक अन्त्येष्टिसंस्कार होता है । प्रायः इसी समय शिशु को दाँत निकलते हैं, जो आवश्यक है। यदि किसी का पुत्र न हो, अथवा यदि इस बात के द्योतक हैं कि अब वह ठोस अन्न खाकर पचा उसको इस बात का आश्वासन न हो कि मरने के पश्चात् सकता है । सुश्रुत (शारीर स्थान, १०.६४) के अनुसार छठे उसकी सविधि अन्त्येष्टि क्रिया होगी, तो वह अपने जीते- महीने में शिशु को लघु (हलका) तथा हित (पोषणकारी) जी अपना श्राद्धकर्म स्वयं कर सकता है। उसका पुतला अन्न खिलाना चाहिए। मार्कण्डेय पुराण (वीरमित्रोदय, बनाकर उसका दाह होता है । शेष क्रियाएँ सामान्य रूप संस्कार काण्ड में उद्धृत) के अनुसार प्रथम बार शिशु को से होती है। बहुत से लोग संन्यास आश्रम में प्रवेश के पूर्व मधु-घी से युक्त खीर सोने के पात्र में खिलाना चाहिए अपना जीवच्छ्राद्ध कर लेते हैं । (मध्वाज्यकनकोपेतं प्राशयेत् पायसन्तु तम् ।) । संभवतः अन्धक-(१) एक यदुवंशी व्यक्ति का नाम । यादवों के एक श्रीमन्तों के लिए यह विधान है। राजनीतिक गण का भी नाम अन्धक था । वृष्णिएक गण अन्नप्राशन संस्कार के दिन सबसे पहले यज्ञीय पदार्थ संघ था : वैदिक मन्त्रों के साथ पकाये जाते हैं । उनके तैयार होने पर अग्नि में एक आहुति निम्नांकित मन्त्र से डाली सुदंष्ट्र' च सुचारुञ्च कृष्णमित्यन्धकास्त्रयः । (हरिवंश) जाती है : [सुदंष्ट्र, सुचारु और कृष्ण ये तीन अन्धक गण के "देवताओं ने वाग्देवी को उत्पन्न किया है। उससे सदस्य कहे गये हैं । ] बहुसंख्यक पशु बोलते हैं। यह मधुर ध्वनि वाली अति (२) एक असुर का नाम, जिसका वध शिव ने किया प्रशंसित वाणी हमारे पास आये । स्वाहा था। (पारस्कर गृह्यसूत्र, १.१९.२) अन्धकरिपु-अन्धक दैत्य के शत्रु अर्थात् शिव । श्लेष द्वितीय आहति ऊर्जा (शक्ति) को दी जाती है : आदि अलंकारों में अन्धकार का नाश करने वाले सूर्य, “आज हम ऊर्जा प्राप्त करें।" अग्नि, चन्द्रमा को भी अन्धकरिपु कहा गया है। इन आहुतियों के पश्चात् शिशु का पिता चार आहुतियाँ अन्नकूट-कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट और गोवर्धन निम्नलिखित मन्त्र से अग्नि में छोड़ता है : पूजा होती है । घरों और देवालयों में छप्पन प्रकार (अनेकों "मैं उत्प्राण द्वारा भोजन का उपभोग कर सकँ, भाँति) के व्यञ्जन बनते हैं और उनका कूट (शिखर या स्वाहा ! अपान द्वारा भोजन का उपभोग कर सकूँ, स्वाहा ! ढेर) भगवान् को भोग लगता है । यह त्यौहार भारतव्यापी नेत्रों द्वारा दृश्य पदार्थों का उपभोग कर सकू, स्वाहा ! है । दूसरे दिन यमद्वितीया होती है । यमद्वितीया को सबेरे श्रवणों द्वारा यश का उपभोग कर सकूँ, स्वाहा !" चित्रगुप्तादि चौदह यमों की पूजा होती है। इसके बाद ही (पारस्कर गृह्यसूत्र, १.१९.३) बहिनों के घर भाइयों के भोजन करने की प्रथा भी है जो इसके पश्चात् 'हन्त' शब्द के साथ शिशु को भोजन कराया बहुत प्राचीन काल से चली आती है। जाता है। अन्नपूर्णा-शिव की एक पत्नी अथवा शक्ति, जो अपने अन्नम् भट्ट-न्याय-वैशेषिक का मिश्रित बालबोध ग्रन्थ उपासकों को अन्न देकर पोषित करती है। इसका रचनेवालों में अन्नम् भट्ट का नाम सादर लिया जाता है। शाब्दिक अर्थ है 'अन्न अथवा खाद्यसामग्री से पूर्ण ।' इनके द्वारा रचित ग्रन्थ 'तर्कसंग्रह' बहुत प्रसिद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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