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________________ भावनाविवेक भास्कराचार्य भावनाविवेक महान कर्मकाण्डी] मण्डन मिश्र द्वारा विरचित पूर्वमीमांसा का एक ग्रन्थ भावप्रकाशिका विवरणटीका अद्वैत सम्प्रदाय के विद्वान् नृसिंहाश्रम द्वारा रचित भावप्रकाशिका प्रकाशात्मयतिकृत 'पञ्चपादिकाविवरण' की टीका है । भावानन्द - नाभादासजी के 'भक्तमाल' में वर्णित सन्त व भक्तों में भावानन्द का उल्लेख है। किन्तु केवल एक पथ में उनकी रामभक्ति के उल्लेख के सिवा उनका और कुछ वर्णन प्राप्त नहीं होता । भावार्थ रामायण - सोलहवीं सत्रहवीं शती के मध्य उत्पन्न एक महाराष्ट्रीय भक्त ने इस ग्रन्थ की रचना की थी । भाषापरिच्छेद न्याय-वैशेषिक दर्शन विषयक एक पद्यात्मक प्रसिद्ध ग्रन्थ । इसकी रचना १७वीं शताब्दी के प्रारम्भ में वंगदेशीय विश्वनाथ पञ्चानन द्वारा हुई थी। इसके पद्य अनुष्टुप् छन्द में हैं, इसलिए व्यवहार में इसका नाम 'कारिकावली' प्रसिद्ध है । भाषावृत्ति यह पाणिनि मुनि की अष्टाध्यायी पर अवलम्बित एक व्याकरण ग्रन्थ है । इसके रचयिता पुरुषोत्तमदेव नामक एक वैयाकरण थे। पुरुषोत्तम द्वारा रचित एक उपयोगी कोशग्रन्थ 'हारावली' नाम से प्रसिद्ध हैं । भाष्य- धार्मिक, दार्शनिक या सैद्धान्तिक सूत्रग्रन्थों पर जो समालोचनात्मक अथवा व्याख्यात्मक ग्रन्थ लिखे गये हैं। उनको भाष्य कहते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है कहने लायक अथवा स्पष्ट करने लायक : सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र वाक्यैः सूत्रानुसारिभिः । स्वपदानि च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदो विदुः ॥ भाष्याचार्य स्वामी रामानुज के परम गुरु और यामुनाचार्य के गुरु का (गुणवाचक) नाम भाष्याचार्य है। भासवंश-त्याय दर्शन के एक आचार्य इन्होंने न्यायसार नामक ग्रन्थ लिखा जिसके ऊपर अष्टादश टीकाएँ रची गयी हैं । भास्कर - काश्मीर शैव मत के एक आचार्य, जो ११वीं शताब्दी में उत्पन्न हुए । इन्होंने 'शिवसूनवार्तिक' लिखा है यह ग्रन्थ वसुगुप्त रचित 'शिवसूत्र' पर वार्तिकों के रूप में प्रस्तुत हुआ है । भास्करपूजा - सूर्य भगवान् विष्णु के दक्षिण नेत्र हैं । इसलिए विष्णु के रूप में सूर्य का पूजन करना चाहिए। रथ के Jain Education International पहिये के समान मण्डल बनाकर उसमें सूर्य की पूजा की जाती है। सूर्य पर चढ़ाये हुए फूल प्रतिमा से हटाने के बाद व्रती को अपने शरीर पर धारण नहीं करने चाहिए। तिथितत्त्व ३६ पु० नि० १०४ । बृहत्संहिता ( ५७.३१-५७ ) में इस बात का निर्देश मिलता है कि किसी देवता की प्रतिमा फँसी बनायी जाय। मूर्ति निर्माण एक बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि मूर्ति के चरणों से वक्ष तक का भाग नग्न न रहने पाये, अपितु किसी वस्त्र से आच्छादित रहे । में ४७७ भास्करप्रियासप्तमी - जब सूर्य सप्तमी को एक राशि से संक्रमण कर द्वितीय राशि पर पहुंचते हैं तब वह सप्तमी महाजया कहलाती है। यह तिथि, सूर्य को बहुत प्रिय है। उस दिन स्नान, दान, जप, होम, देवपूजा, पितृतर्पण इत्यादि करने से करोड़ों गुना पुण्य प्राप्त होता है । भास्कर मिश्र - यजुर्वेद की तैत्तिरीय संहिता का एक छोटा भाष्य भास्कर मिश्र ने लिखा है। इन्होंने तैतिरीय आरयक का भी एक भाष्य रचा है । भास्करराय अठारहवीं शताब्दी का प्रारम्भ इनका स्थितिकाल कहा जाता है। मे दक्षिणमार्गी शाक्त तथा देवी के परम उपासक थे नृसिंहानन्दनाथ भास्करानन्दनाथ तथा उमानन्दनाथ ने मिलकर एक छोटी सी गुरुपरम्परा स्थापित की । भास्करानन्दनाथ इनमें सबसे महान् थे। वे ही भास्करराय के नाम से अभिहित किये जाते हैं। ये तर नरेश के सभापण्डित थे। शाक्त साधनाप्रणाली को इन्होंने आर्या छन्दों में विद्वत्तापूर्ण ढंग से लिखा है, जिसका नाम है 'वरिवस्यारहस्य' । इस पर स्वयं इनका एक भाष्य भी है। इन्होंने वामकेश्वर तन्त्र, त्रिपुरा, कौल एवं भावना (शाक्त) उपनिषद्, ललिता सहस्रनाम, महा एवं जाबाल उपनिषद् तथा ईश्वरगीता की व्याख्याएँ भी रची हैं । भास्करव्रत -कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह सूर्य का व्रत किया जाता है । यह तिथिव्रत है। इसके अनुसार षष्ठी को उपवास तथा सप्तमी को 'सूर्यः प्रसीदतु' वचन के साथ विधिपूर्वक पूजन होना चाहिए । इस कृत्य से व्रती समस्त रोगों से मुक्त होकर स्वर्ग प्राप्त करता है । भास्कराचार्य – नवीं दसवीं शताब्दी के मध्य में वेदान्तसूत्रों का एक उल्लेखनीय भाष्य रचा गया, जिसके कर्त्ता थे - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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