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________________ बुधाष्टमी-बुद्ध श्वेत मालाओं तथा गन्ध-अक्षत आदि से उसकी पूजा शुद्धोदन ने सिद्धार्थ का विवाह रामजनपद (कोलिय करनी चाहिए। पूजनोपरान्त उसे किसी ब्राह्मण को दे गण) की राजकुमारी यशोधरा के साथ कर दिया । उन देना चाहिए। इस व्रताचरण से व्रतो की बुद्धि तीव्र हो- को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, उसका नाम राहुल रखकर कर शुद्ध ज्ञान प्राप्त करती है। उन्होंने कहा, 'जीवनशृंखला की एक कड़ी आज और बुधाष्टमी-शुक्ल पक्ष में बुधवार के दिन अष्टमी पड़ने पर गढी गयी।' यह व्रत किया जाता है। एकभक्त पद्धति से आहार करते एक दिन रात को माया और राहुल को सोते छोड़हुए जलपूर्ण आठ कलश, जिनमें सुवर्ण पड़ा हो, क्रमशः कर सिद्धार्थ कपिलवस्तु से बाहर निकल गये। इस आठ अष्टमियों को भिन्न-भिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के घटना को 'महाभिनिष्क्रमण' कहते हैं । ज्ञान और शान्ति साथ दान में दे देने चाहिए। वर्ष के अन्त में बुध की की खोज में सिद्धार्थ बहुत से विद्वानों और पण्डितों से मिले सुवर्णप्रतिमा दान में दी जाय । इस व्रत में प्रत्येक अष्टमी किन्तु उनको सन्तोष नहीं हुआ। आश्रमों, तपोवनों में के दिन ऐल पुरूरवा तथा मिथि एवं उसकी पुत्री उर्मिला घूमते हुए वे गया के पास उरुबेल नामक वन में जाकर की कथाएँ सुनी जाती हैं। घोर तपस्या करने लगे और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि या बुद्ध-बौद्ध धर्म के प्रवर्तक तपस्वी महात्मा । इनका जन्म तो ज्ञान प्राप्त करूँगा, नहीं तो शरीर का त्याग कर हिमालयतराई के शाक्य जनपद (लुम्बिनीवन) में ५६३ दूंगा । छः वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात् उन्हें अनुभव ई०पू० हुआ था। शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु थी । हुआ कि शरीर को कष्ट देने से शरीर के साथ बुद्धि भी इनके पिता शुद्धोदन शाक्यों के गणमुख्य थे। इनकी माता क्षीण हो गयी और ज्ञान और दूर हट गया। अतः का नाम माया देवी था। इनका जन्मनाम सिद्धार्थ था । निश्चय किया कि मध्यम मार्ग का अनुसरण करना ही इनका पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा बहुत उच्च कोटि की उचित है। हुई। बाल्यावस्था से ही ये चिन्तनशील थे, संसार के एक दिन बोधिवृक्ष के नीचे बैठकर जब वे चिन्तन दुःख से विकल हो उठते थे। जीवन की चार घटनाओं कर रहे थे, उन्हें जीवन और संसार के सम्बन्ध में सम्यक का इनके ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा। ज्ञान प्राप्त हुआ । इस घटना को 'सम्बोधि' कहते हैं । इसी एक बार इन्होंने किसी अत्यन्त वृद्ध व्यक्ति को देखा, समय से सिद्धार्थ बद्ध (जिसकी बद्धि जागत हो गयी जो वृद्धावस्था के कारण झुक गया था और लाठी के हो) कहलाये । अन्त में उन्होंने निश्चय किया कि मैं अपने सहारे चल रहा था। पूछा कौन है ? उत्तर मिला वृद्ध, ज्ञान को दुःखी संसार तक पहुँचा कर उसे मुक्त करूँगा। जो सुन्दर बालक और बलिष्ठ जवान था, किन्तु बुढ़ापे बोधगया से चलकर वे काशी के पास ऋषिपत्तन मृगदाव से क्षीण और विकृत हो गया है। इसके पश्चात् एक (सारनाथ) में पहुँचे । यहाँ पर उन्होंने पञ्चवर्गीय पूर्वरुग्ण व्यक्ति मिला जो पीड़ा से कराह रहा था। पूछा शिष्यों को अपने धर्म का उपदेश प्रथम वार दिया । इस कौन है ? उत्तर मिला रोगी, जो कुछ ही क्षण पहले घटना को 'धर्मचक्रप्रवर्तन' कहते हैं। स्वस्थ और सुखी था। तदनन्तर सिद्धार्थ ने मृतक को बुद्ध ने अपने उपदेश में कहा, "दो अतियों का त्याग अर्थी पर लाते हुए देखा । पूछा कौन है ? उत्तर मिला ____ करना चाहिए । एक तो विलास का, जो मनुष्य को पशु मृतक, जो कुछ समय पहले जीवित और विलास में मग्न बना देता है और दूसरे कायक्लेश का, जिससे बुद्धि क्षीण था । अन्त में उन्हें एक गैरिक वस्त्र धारण किये हए हो जाती है । मध्यम भार्ग का अनुसरण करना चाहिए।" पुरुष मिला, जिसके चेहरे पर प्रसन्नता झलक रही थी। इसके पश्चात् उन्होंने उन चार सत्यों का उपदेश किया, और चिन्ता का सर्वथा अभाव था। पूछा कौन है ? जिनको 'चत्वारि आर्य सत्यानि' कहते है। उन्होंने कहा, उत्तर मिला संन्यासी, जो संसार के सभी बन्धनों को "दुःख प्रथम सत्य है । जन्म दुःख है। जरा दुःख है । छोड़कर परिव्राजक हो गया है। त्याग और संन्यास की रोग दुःख है । मृत्यु दुःख है । प्रिय का वियोग दुःख है। भावना सिद्धार्थ के मन पर अपना प्रभाव गहराई तक अप्रिय का संयोग दुःख है। आदि । समुदय दूसरा सत्य डाल गयी। है । दुःख का कारण है तृष्णा । तृष्णा और वाराना से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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