SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बद्ध-बराकुम्बा हैं । वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का इस सम्प्रदाय का साधुवर्ग पाँच शाखाओं में विभक्त हैगोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है । बदरी- (१) खालसा (२) नागा (३) उत्तराडी (४) विरक्त तथा नाय की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा (५) खाकी । इनमें से तीसरी शाखा की स्थापना पंजाब में में हैं । कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड बनवारीदास द्वारा हुई। इस वर्ग के साधु विद्याव्यसनी से निकालकर स्थापित की थी । सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके होते हैं जो अन्य साधुओं को पढ़ाते हैं, कुछ वैद्य होते हैं प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने जो चिकित्सा व्यवसाय करते हैं। इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की । शङ्कराचार्य बन्ध-संसार में लिप्त रहना । यह मोक्ष अथवा 'मुक्ति' की की प्रचारयात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति विलोम दशा है । बन्ध अज्ञान और आसक्तिमूलक होता को अलकनन्दा में फेंक गये। शङ्कराचार्य ने अलकनन्दा है। जब सदसत् का विवेक हो जाता है और साधक से पुनः बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर संसार से ( राग-द्वेष से ) निलिप्त होता है तब बन्ध से मूर्ति पुनः स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड छुटकारा मिल जाता है। से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की। बन्धन-(१) संसार में आसक्ति और आवागमन का चक्र । ___ मन्दिर में बदरीनाथजी की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति (२) अपराधों के लिए दण्ड का एक प्रकार, बन्धनागार है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बरफ जमने पर जोशीमठ अथवा कारागार । दे० 'बन्ध' । में ले जायी जाती है । उद्धवजी के पास ही चरणपादुका बन्ध-(१) धर्मशास्त्र के अनुसार पितृसम्बन्ध से समस्त हैं । बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप सगोत्रियों को बन्धु कहा जाता है । ये दायाद से भिन्न ही श्रीदेवी और भूदेवी हैं। होते हैं। दोनों में अन्तर यह है कि दायाद पैतृक सम्पत्ति बद्ध-पुनर्जन्म के सिद्धान्तानुसार आत्मा जन्म तथा मरण और पिण्डदान का अधिकारी होता है, परन्तु दायाद के की श्रृंखला में बँधा रहता है। जब तक ज्ञान अथवा भक्ति रहते हुए बन्धु इसका अधिकारी नहीं होता। द्वारा वह मुक्त न किया जाय । दैवी व्यक्तियों का आत्मा (२) तीन प्रकार के बन्धु बतलाये गये हैंतो नित्यमुक्त होता है, किन्तु साधारण मानवों के आत्मा १. आत्मबन्धु, २. पितृबन्धु और ३. मातृबन्धु । को चार भागों में विभक्त किया गया है-(क) बद्ध, जो जीवन सम्बन्धी वासनाओं से बँधे हुए हैं । ( ख ) मुमुक्षु, (३) सामान्यतः मित्र के अर्थ में भी ‘बन्धु' का प्रयाग मुक्ति की इच्छा वाले। (ग) केवल अनन्य भक्त, ईश्वर होता है। की भक्ति में तल्लीन रहने वाले और (घ) मक्त. जन्म- बभ्रुवाहन-नागकन्या चित्रांगदा से उत्पन्न अर्जुन का पुत्र, कर्म के बन्धनों से रहित । __जो मणिपूर का शासक था। यह अर्जन से भी अधिक बनजात्रा-महाप्रभु चैतन्य के तिरोधान के कुछ वर्ष पूर्व ही महात्मा रूप तथा सनातन कुछ शिष्यों के साथ बरसाना-व्रज को अधिष्ठाता देवता राधा का निवासस्थान । वृन्दावन में बस गये थे। इन्होंने भक्तिसिद्धान्त सम्बन्धी यह मथुरा से पैंतीस मील दूर है। इसका प्राचीन नाम अनेक ग्रन्थों की रचना के साथ ही व्रज के सभी पवित्र बृहत्सानु, ब्रह्मसानु अथवा वृषभानुपुर है । राधा श्री कृष्ण स्थानों को खोज निकाला । वे सब मथरा और वन्दावन के की ह्लादिनी शक्ति एवं निकुजेश्वरी मानी जाती है । आस-पास थे तथा उनका वर्णन वराहपुराण के 'मथरा- इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अति प्रिय माहात्म्य' में किया गया है । यही सब भक्त ऐसे व्यक्ति थे तीर्थ है। यहाँ भाद्र शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी जिन्होंने व्रजमण्डल के कृष्णलीला सम्बन्धी पवित्र स्थानों तक बहुत सुन्दर मेला होता है । इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल की यात्रा प्रचलित की। ८४ कोस तक विस्तृत उन ग्राम, अष्टमी, नवमी एवं दशमी को होली की आकर्षक लीला पर्वत, वन-उपवनों की यात्रा ही बनजात्रा कहलाती है। होती हैं। बनवारीदास-दादूपन्थ की एक संन्यासी शाखा के प्रवर्तक। बराकुम्बा-एक ग्रामीण भूमिदेवता। पृथ्वी माता की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy