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________________ ४१८ प्रगाथ-प्रणव करना चाहिए। व्रती को घी तथा दूध का ही आहार उत्पत्ति की तथा उसमें बीजारोपण किया। यह एक स्वर्णकरना चाहिए । एक वर्ष पर्यन्त इसका अनुष्ठान होता है। अण्ड बन गया, जिससे वे स्वयं ही ब्रह्मा अथवा हिरण्यगर्भ इससे व्रती की सभी सांसारिक इच्छाएँ पूर्ण होती हैं तथा के रूप में उत्पन्न हुए। किन्तु दूसरे मतानुसार (ऋग्वेद, अन्त में वह मोक्ष मार्ग का अधिकारी होता है। पुरुषसूक्त १०.८०) प्रारम्भ में पुरुष था तथा उसी से प्रगाथ-ऋग्वेदीय अष्टम मण्डल की विशिष्ट छन्दोबद्ध विश्व उत्पन्न हुआ। वह पुरुष देवता नारायण कहलाया, जो शतपथ ब्राह्मण में पुरुष के साथ उद्धृत है। इस रचना। ऐतरेय आरण्यक में यह नाम ऋग्वेद के उक्त प्रकार नारायण मनु के उपर्युक्त उद्धरण के ब्रह्मा के सदृश मण्डल के रचनाकारों को दिया गया है। कारण यह है कि प्रयाथ छन्द उनको अत्यन्त प्रिय था। है। किन्तु साधारणतः नारायण तथा विष्णु एक माने वस्तुतः प्रगाथ वैदिक छन्द का नाम है, जिसकी प्रथम जाते हैं। पंक्ति में बृहती अथवा ककुप और फिर सतोबृहती की फिर भी सृष्टि एवं भाग्य की रचना ब्रह्मा द्वारा हुई, मात्राएँ रखी जाती हैं। ऐसा विश्वास अत्यन्त प्राचीन काल से अब तक चला आया है। प्रजापति-वैदिक ग्रन्थों में वर्णित एक भावात्मक देवता, प्रजापतिव्रत-नियमपूर्वक सन्तानोत्पत्ति ही प्रजापतिव्रत जो प्रजा अर्थात् सम्पूर्ण जीवधारियों के स्वामी हैं । ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव का हिन्दू धर्म में महत्त्वपूर्ण उच्च स्थान है । प्रश्नोपनिषद् (१.१३ तथा १५) में यह कथन है : 'दिवस ही प्राण है, रात्रि प्रजापति का भोजन है। जो है । इन तीनों को मिलाकर विमूर्ति कहते हैं। ब्रह्मा सृष्टि करने वाले, विष्णु पालन करने वाले तथा शिव (रुद्र) लोग दिन में सहवास करते हैं, वे मानो प्राणों पर ही संहार करने वाले कहे जाते हैं । वास्तव में एक ही शक्ति आक्रमण करते है और जो लोग रात में सहवास करते हैं, वे मानो ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं। जो लोग प्रजाके ये तीन रूप है। इनमें ब्रह्मा को प्रजापति, पितामह, हिरण्यगर्भ आदि नामों से वेदों तथा ब्राह्मणों में अभिहित पतिव्रत का आचरण करते हैं, वे (एक पुत्र तथा एक किया गया है। इनका स्वरूप धार्मिक की अपेक्षा काल्प पुत्री के रूप में) सन्तानोत्पादन करते हैं।' निक अधिक है। इसी लिए ये जनता के धार्मिक विचारों प्रज्ञा–प्रकृष्ट ज्ञान या बुद्धि । अनुभूति अथवा अन्तर्दृष्टि को विशेष प्रभावित नहीं करते। यद्यपि प्रचलित धर्म में से वास्तविक सत्ता-आत्मा अथवा परमात्मा के सम्बन्ध विष्णु तथा शिव के भक्तों की संख्या सर्वाधिक है, किन्तु में जो ज्ञान उत्पन्न होता है, वास्तव में वही प्रज्ञा है। तीनों देवों; ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव को समान पद प्राप्त है, प्रज्ञान-प्रखर बुद्धि अथवा चेतना । दे० 'प्रज्ञा' । जो त्रिमूर्ति के सिद्धान्त में लगभग पांचवीं शताब्दी से ही प्रणव-पवित्र घोष अथवा शब्द (प्र + णु स्तवने + अप्) । मान्य हो चुका है। ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार प्रजापति की इसका प्रतीक रहस्यवादी पवित्र अक्षर 'ॐ' है और इसका कल्पना में मतान्तर है; कभी वे सृष्टि के साथ उत्पन्न पूर्ण विस्तार 'ओ३म्' रूप में होता है। यह शब्द ब्रह्म का बताये गये है, कभी उन्हीं से सष्टि का विकास कहा गया बोधक है; जिससे यह विश्व उत्पन्न होता है, जिसमें स्थित है। कभी उन्हें ब्रह्मा का सहायक देव बताया गया है । रहता है और जिसमें इसका लय हो जाता है। यह विश्व परवर्ती पौराणिक कथनों में भी यही (द्वितीय) विचार नाम-रूपात्मक है, उसमें जितने पदार्थ हैं इनकी अभिपाया जाता है। ब्रह्मा का उद्भव ब्रह्म से हुआ, जो प्रथम व्यक्ति वर्णों अथवा अक्षरों से होती है । जितने भी वर्ण कारण है, तथा दूसरे मतानुसार ब्रह्मा तथा ब्रह्म एक ही हैं वे अ (कण्ठ्य स्वर) और म् (ओष्ठ्य व्यञ्जन) के बीच हैं, जबकि ब्रह्मा को · 'स्वयम्भू' या अज ( अजन्मा) उच्चरित होते हैं । इस प्रकार 'ओम्' सम्पूर्ण विश्व की कहते हैं। अभिव्यक्ति, स्थिति और प्रलय का द्योतक है । यह पवित्र सर्वसाधारण द्वारा यह मान्य विचार, जैसा मनु (१.५) और माङ्गलिक माना जाता है इसलिए कार्यारम्भ और में उद्धृत है, यह है कि स्वयम्भू की उत्पत्ति कार्यान्त में यह उच्चारित अथवा अङ्कित होता है । वाजप्रारम्भिक अन्धकार से हुई, फिर उन्होंने ने जल की सनेयी संहिता, तैत्तिरीय संहिता, मुण्डकोपनिषद् तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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