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________________ अनसूया-अनिरुद्ध २९ शुद्धि के लिए की जाती है। व्रत अथवा अनुष्ठान में अनशन किया जाता है। बहुत-से लोग मरने के कुछ दिन पूर्व से अनशन करते हैं। मरणान्त अनशन को 'प्रायोपवेशन' भी कहते हैं । यह जैन सम्प्रदाय में अधिक प्रचलित है। (२) पुरुषसूक्त के चौथे मन्त्र में (ततो विश्वङ् व्यक्रामत्, अर्थात् यह नाना प्रकार का जगत् उसी पुरुष के सामर्थ्य उत्पन्न हआ है) इस शब्द का उल्लेख है एवं इस जगत के दो विभाग किये गये हैं : 'साशन' (चेतन) जो भोजनादि के लिए चेष्टा करता है और जीव से युक्त है और दूसरा 'अनशन' (जड़) जो अपने भोजन के लिए चेष्टा नहीं सोना करता और स्वयं दूसरे का अशन (भोजन) है। (३) आजकल राजनीतिक अथवा सामाजिक साधन के रूप में भी इसका उपयोग होता है । अपनी बात अथवा आग्रह मनवाने के जब अन्य साधन असफल हो जाते हैं तब इसका प्रयोग किया जाता है। अनसूया-(१) एक धार्मिक गुण, असूया का अभाव । इसका लक्षण बृहस्पति ने दिया है : न गुणान् गुणिनो हन्ति स्तौति मन्दगुणानपि । नान्यदोषेषु रमते सानसूया प्रकीर्तिता ॥ (एकादशी तत्त्व) [ गुणियों के गुणों का विरोध न करना, अल्प गुण वालों की भी प्रशंसा करना, दूसरों के दोषों को न देखना अनसूया है।] (२) अत्रि मुनि की पत्नी का नाम भी अनसूया है। भागवत के अनुसार ये कर्दम मुनि की कन्या थीं। वाल्मीकिरामायण में सीता और अनसूया का अत्रि-आश्रम में संवाद पाया जाता है। अन्नकूटोत्सव-कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा या द्वितीया को यह उत्सव मनाया जाता है। यह गोवर्धन पूजन का ही एक अङ्ग है । इस दिन मिष्ठान्न अथवा विविध पकवानों का कूट (पर्वत) प्रस्तुत कर उसका भगवान् को समर्पण किया जाता है। अनादि-आदिरहित (अन् + आदि) । प्रकृति और पुरुष दोनों को अनादि कहा गया है : प्रकृति पुरुषञ्चैव विद्धयनादी उभावपि । (गीता) अनामा (अनामिका)-ब्रह्मा का सिर छेदन कर देने पर भी जिसका नाम निन्दित नहीं है उसे अनामा कहते हैं। पुराणों के अनुसार इस अंगलि से शिव ने ब्रह्मा का शिरश्छेद किया था। यह पवित्र मानी जाती है, धार्मिक कृत्य करते समय इसी अंगुलि में पवित्री धारण की जाती है। अनाहत-(१) जिस वस्त्र का खण्ड, धुलना और भोग नहीं हुआ है, कोरा । धार्मिक कृत्यों में ऐसे ही वस्त्र को धारण करने का विधान है। (२) तन्त्रोक्त छः चक्रों के अन्तर्गत चतुर्थ चक्र, जो हृदय में स्थित, क से लेकर ठ तक के वर्षों से युक्त, उदित होते हुए सूर्य के समान प्रकाशमान, बारह पंखुड़ियों वाले कमल के आकार वाला, मध्य में हजारों सूर्यों के तुल्य प्रकाशमान और ब्रह्मध्वनि से शब्दायमान है : शब्दो ब्रह्ममयः शब्दोऽनाहतो यत्र दृश्यते । अनाहताख्यं तत्पद्मं मुनिभिः परिकीर्तितम् ।। [ जहाँ पर शब्द ब्रह्ममय है और अनाहत दिखाई देता है, उस पद्म को मुनियों ने अनाहत कहा है। ] हठयोग में जब साधक कुण्डलिनी को जागृत कर उसे ऊर्ध्वमुखी कर लेता है, उसके उद्गमन के समय जो विस्फोट होता है वह नाद कहलाता है । यह नाद अनाहत रूप से समस्त विश्व में व्याप्त है। यह पिण्ड में भी वर्तमान रहता है, किन्तु मूढ अज्ञानी पुरुष उसको सुन नहीं सकता । जब हठयोग की क्रिया से सुषुम्ना नाड़ी का मार्ग खुल जाता है तब यह नाद सुनाई पड़ने लगता है जो कई प्रकार से सुनाई देता है, जैसे समुद्रगर्जन, मेघगर्जन, शङ्खध्वनि, घण्टाध्वनि, किङ्किणी, वंशी, भ्रमरगुञ्जन आदि । उपाधि युक्त होने के कारण यह नाद सात स्वरों में विभक्त हो जाता है, जिनके द्वारा जगत् के विविध शब्द सुनाई पड़ते हैं । यह निरुपाधि होकर 'प्रणव' अथवा 'ओंकार' का रूप धारण करता है । इसी को शब्दब्रह्म भी कहते हैं । सन्तों ने इसको 'सोहं' कहा है। अनिरुद्ध-(१) प्रद्युम्न (कामदेव) का पुत्र । इसका पर्याय है उषापति । यह भगवान् के चार व्यूहों के अन्तर्गत एक व्यूह है । इससे सृष्टि होती है : तमसो ब्रह्मसम्भूतं तमोमूलामृतात्मकम् । तद् विश्वभावसंज्ञान्तं पौरुषों तनुमाश्रितम् ।। सोऽनिरुद्ध इति प्रोक्तस्तत् प्रधानं प्रचक्षते । तदव्यक्तमिति ज्ञेयं त्रिगुणं नृपसत्तम ।। विद्यासहायवान् देवो विष्वक्सेनो हरिः प्रभुः । अप्स्वेव शयनञ्चक्रे निद्रायोगमुपागतः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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