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________________ ४०४ पुत्रवर्गविहार-पुत्रोत्पत्तिव्रत हेमाद्रि में विद्यामंत्र भी लिखा गया है। दे० हेमाद्रि, कर्पूर प्रतिमा को अर्पण कर पुष्पादि से षोडशोपचार पूजन २.२२०-२३३ । हो। तब पुरुषसूक्त के मंत्रों से हवन करना चाहिए । पुत्रवर्गविहार-प्राचीन विद्यापीठों में गुरुस्थल दो वर्गों में तदनन्तर पुत्राभिलाषी या पुत्रीकामी फलों का खाद्य विभाजित थे : (१) शिष्यवर्ग एवं ( २) पुत्रवर्ग। पदार्थ बनाकर पुल्लिङ्ग अथवा स्त्रीलिङ्ग नाम लेकर उसे गुरुकुलों में गुरु का परिवार तथा शिष्यवर्ग दोनों रहते थे, दान कर दे । एक वर्ष तक ऐसा करना चाहिए। इससे परन्तु दोनों के निवासस्थान एक दूसरे से भिन्न होते थे। व्रती की समस्त कामनाएं पूर्ण होती है। जिस स्थान में गु: का परिवार रहता था उसको पुत्रवर्ग- पुत्रीयसप्तमी-मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी को इस व्रत का विहार कहा जाता था। अनुष्ठान होता है। इस दिन सूर्य का पूजन विहित है। पुत्रवत-(१) दे० 'पुत्रकामव्रत', हेमाद्रि, २,१७१-७२।। उस दिन व्रती को 'हविष्यान्न' ग्रहण करना चाहिए । (२) प्रातः ब्राह्म मुहूर्त में स्नानादि से निवृत्त होकर दुसरे दिन गन्धाक्षत-पुष्पादि से सूर्य का पूजन कर नक्त तारों के मन्द प्रकाश में पीपल वृक्ष का स्पर्श करना पद्धति से आहार करना चाहिए । एक वर्ष तक यह व्रत चाहिए । तदनन्तर तिलों से परिपूर्ण पात्र का दान किया चलता है । यह व्रत पुत्रप्राप्ति के लिए है। जाय । इससे समस्त पापों से मुक्ति होती है। पत्रीयानन्तवत-इस व्रत को मार्गशीर्ष मास में प्रारम्भ पुत्रसप्तमी-(१) माघ शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी कर एक वर्ष तक प्रतिमास उस नक्षत्र के दिन, जिससे को इस व्रत का अनुष्ठान होता है। दोनों सप्तमियों को मास का नाम पड़ता है, उपवास करते हुए विष्णु भगवान् तथा षष्ठी को उपवाग तथा हवन करने के पश्चात् सूर्य का पूजन करना चाहिए। विशेष रूप से भगवान के बारहों के पूजन का विधान है। यह एक वर्ष तक चलता है। अवयवों का पूजन होना आवश्यक है। प्रति मास एक इससे पुत्र, धन, यश तथा सुन्दर स्वाथ्य की प्राप्ति अवयव का क्रमशः पूजन करना चाहिए । यथा बायाँ होती है। घुटना मार्गशीर्ष में, कटि का वाम पार्श्व पौष में तथा (२) भाद्र शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की षष्ठी को संकल्प इसी प्रकार ब्रमशः । प्रति चार मास के एक भाग में तथा सप्तमी को उपवासपूर्वक विष्णु का नामोच्चारण विभिन्न वर्ण के पुष्प प्रयुक्त हों। गोमूत्र, गोदुग्ध तथा करते हुए उनका पूजन करना चाहिए । अष्टमी के दिन गोदधि का प्रति चार मासों के विभाग में स्नान, अनन्त गोपालमन्त्रों से विष्णु भगवान् का पूजन तथा तिलों से भगवान् के नाम का जप सम्पूर्ण महीनों में किया जाय हवन करने का विधान है । यह एक वर्ष पर्यन्त होता है । तथा उन्हीं के नाम लेते हुए हवन हो । व्रत के अन्त में वर्ष के अन्त में श्यामा गौ का जोड़ा दान दिया जाय । ब्राह्मणों को भोजन तथा दक्षिणा देनी चाहिए। इससे इससे समस्त पापों का क्षय तथा पुत्रलाभ होता है। व्रती की समस्त पुत्र, धन, जीविका आदि कामनाएँ पूर्ण पुत्रिका-परवर्ती साहित्य में इस शब्द का व्यवहार 'पुत्र- होती हैं। हीन मनुष्य की पुत्री' के अर्थ में हुआ है। ऐसी पुत्री पुत्रेष्टि-पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाने वाला यज्ञ 'पुत्रेष्टि' का विवाह इस करार के साथ किया जाता था कि उसका कहलाता है । पुत्रोत्पत्ति में जिस दम्पती को विलम्ब होता पुत्र अपने नाना का श्राद्ध करेगा तथा उसकी सम्पत्ति था वह पुष्टि यज्ञ करता था। दत्तक पुत्र के संग्रह के का उत्तराधिकारी होगा। यास्क के निरुक्त ( ३.५ ) में समय भी 'दत्तहोम' के साथ यह यज्ञ (पुष्टि ) किया भी इसे ऋग्वेद के आधार पर इसी अर्थ में लिया गया जाता था, क्योंकि जिस पुत्र का संग्रह किया जाता था, है । किन्तु ऋग्वेदीय परिच्छेदों का स्पष्ट अर्थ नहीं ज्ञात वह जिस कुल से आता था उससे उसका सम्बन्ध पृथक् होता तथा इस प्रथा के द्योतक वे नहीं जान पढ़ते । किया जाता था। इस यज्ञ का प्रयोजन यह दिखाना था पुत्रीयनत-भाद्रपद मास की पूर्णिमा के पश्चात् कृष्ण पक्ष कि दत्तक पुत्र का जन्म संग्रह करने वाले परिवार में की अष्टमी को इस व्रत का अनुष्ठान होता है । उस दिन हुआ है। उपवास का विधान है। एक प्रस्थ घृत में गोविन्द की पुत्रोत्पत्तिव्रत-यह नक्षत्रव्रत है। पुत्र प्राप्ति के लिए एक प्रतिमा को स्नान कराया जाय । तत्पश्चात् चन्दन, केसर, वर्ष तक प्रति श्रवण नक्षत्र को यमुना में स्नान करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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