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________________ परशुरामजयन्तो-पराशरसंहिता ३८९ ब्रह्मशक्ति के बिना क्षत्रशक्ति पुष्ट नहीं होती और ऋग्वेद में शत्यातु तथा वसिष्ठ के साथ हुआ है जो संभक्षत्रशक्ति के बिना ब्रह्मशक्ति भी नहीं बढ़ सकती। दोनों वतः उनके चाचा तथा पितामह (क्रमशः ) थे। जिन सात को समता से ही संसार का कल्याण संभव है। ऋषियों को ऋग्वेदीय मन्त्रों के सम्पादन का श्रेय है उनमें परशुरामभार्गवसूत्र-इस ग्रन्थ में शानों के कौल सम्प्रदाय पराशर का नाम भी सम्मिलित है। की विभिन्न शाखाओं का विवरण पाया जाता है । कौल (२) पराशर नामक स्मृतिकार भी हुए हैं जिन्होंने मार्ग के अनुसार देवी की पूजा का विधान इसमें विस्तार- पराशरस्मृति की रचना की। वर्तमान युग के लिए यह पूर्वक समझाया गया है। स्मति अधिक उपयोगी मानी जाती है : "कलो पाराशरः परशुरामजयन्ती-वैशाख शवल तृतीया को यह जयन्तीव्रत स्मृतः ।" सम्बन्धी पूजन होता है। (३) महाभारत में भी पराशर की कथा आती है। ये परशुरामदेव-निम्बार्क वैष्णव परम्परा के मध्यकालिक व्यास के पिता थे। इसीलिए व्यास को पाराशर्य अथवा धर्मरक्षक प्रतापी संत, जिन्होंने अपने तपोबल से राज- पाराशरि कहा जाता है। स्थान में फकीरों के हिन्दूविरोधी धर्मोन्माद का पर्याप्त (४) वराहमिहिर के पूर्व पराशर एवं गर्ग प्रसिद्ध ज्योमात्रा में शमन किया। ये वैष्णवाचार्य हरिव्यासदेव के तिविद् हो चुके थे। स्वभरामदेव आदि प्रभावशाली द्वादश शिष्यों में छठे थे। (५) पराशर नामक एक प्राचीन वेदान्ताचार्य भी थे। इनका समय सोलहवीं शताब्दी का मध्यकाल है। इनकी रामानुज स्वामी के शिष्य कूरेश के पुत्र का नाम भी पराअध्यात्मशक्ति से प्रभावित होकर अनेक देशी नरेश धर्मपरायण शर था जिन्होंने रामानुज की आज्ञा से 'विष्णुसहस्रनाम' हो गये, जिनकी आस्था सुफी सन्तों की ओर जाने लगी पर भाष्य लिखा। थी। जयपुर से आगे आमेरमार्ग पर स्थित, भव्य 'परशु- पराशरमाधव--माधवाचार्य द्वारा रचित यह ग्रन्थ पराशररामद्वारा' नामक राजकीय स्मारक इसका प्रमाण है । 'पर- स्मृति के ऊपर एक निबन्ध है। स्मृतिशास्त्र की ऐसी शुरामसागर' नामक उपदेशात्मक रचना में इनकी कृतियों उपयोगी रचना सम्भवतः दूसरी नहीं है। पराशरस्मृति का संग्रह मिलता है जो राजस्थानीप्रभावित हिन्दी में है। में जिन विषयों पर, विशेष कर व्यवहार (न्याय कार्य) पर तीर्थराज पुष्कर में भी इनकी तपोभूमि है। वहाँ से कुछ प्रकाश नहीं डाला गया है उन सबको दूसरी स्मृतियों से दूर किसनगढ़ राज्य के सलीमाबाद स्थान में इन्होंने लेकर पराशरमाधव में जोड़ दिया गया है। किसी फकीर के प्रभाव को कुण्ठित कर वहाँ अपना वर्चस्व धर्मशास्त्र के अनुसार पराशरस्मृति की रचना कलियुग स्थापित किया था, तब से वह स्थान हिन्दू धर्मप्रचार का के लिए हुई, किन्तु आकार और विषय की दृष्टि से यह केन्द्र और परशुरामदेव के भक्तों की गुरुगद्दी हो गया । छोटी स्मृति है। इसका महत्त्व स्थापित करने तथा परआजकल भी इस गद्दी के उत्तराधिकारी वैष्णव रान्त म्परा को उचित सिद्ध करने के लिए माधव ने 'पराशरधर्मप्रचार में अग्रसर रहते हैं। माधवीय' का प्रणयन किया। सुदूर दक्षिण में हिन्दू विधि पराङकुश-विशिष्टाद्वैत संप्रदाय के मान्य लेखक श्रीनिवास- पर यह प्रमाण ग्रन्थ माना जाता है । इसके मुद्रित संस्करण दास ने 'यतीन्द्रमतदीपिका' (पूना सं०, पृ० २) में अनेक में २३०० पृष्ठ पाये जाते हैं । वेदान्ताचार्यों का नामोल्लेख किया है उनमें पराश पराशरसंहिता (स्मृति)-स्मृतिशास्त्र में पराशरस्मृति अथवा आचार्य भी एक हैं। संहिता प्रसिद्ध रचना मानी जाती है। इस संहिता का पराशर-(१) ऋग्वेद (७.१८.२१) में शत्यातु तथा वसिष्ठ प्रणयन कलियुग के लिए किया गया था। इसके प्रास्ताके साथ पराशर का भी उल्लेख है । निरुक्त ( ६.३० ) के विक इलोकों में लिखा है कि ऋषि लोग व्यास के पास अनुसार पराशर वसिष्ठ के पुत्र थे । किन्तु वाल्मीकिरामा- जाकर प्रार्थना करने लगे कि आप कलियुग के लिए यण में इन्हें शक्ति का पुत्र तथा वसिष्ठ का पौत्र कहा धर्मोपदेश करें। व्यासजी ऋषियों को अपने पिता पराशर गया है। गेल्डनर का मत है कि पराशर का उल्लेख के पास ले गये, जिन्होंने इस स्मृति का प्रणयन किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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