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________________ ३८६ पद्मनाभद्वादशी-पंथ(पथ) ये बहुत बड़े विद्वान् थे और चालुक्य राजधानी कल्याण (१०) कायस्थोत्पत्ति ओर कायस्थस्थितिनिरूपण (११) में रहते थे। एक बार इनका शास्त्रार्थ मध्वाचार्य से हुआ। कालिञ्जरमाहात्म्य (१२) कालिन्दीमाहात्म्य (१३) शोभन भट्ट शास्त्रार्थ में हार गये और इन्होंने वैष्णवमत काशीमहात्म्य (१४) कृष्णनक्षत्रमाहात्म्य (१५) वेदारस्वीकार कर लिया। तब इनका नाम पद्मनाभाचार्य पड़ा। कल्प (१६) गणपतिसहस्रनाम (१७) गौतमीमाहात्म्य मध्वाचार्य के बाद ये ही आचार्य पदासीन हुए । पद्मनाभा- (१८) चित्रगुप्तकथा (१९) जगन्नाथ माहात्म्य (२०) चार्य ने मध्व के ग्रन्थों की टीकाएँ भी लिखीं और संप्र- तप्तमुद्राधारणमाहात्म्य (२१) तीर्थमाहात्म्य (२२) दाय का अच्छा विस्तार किया। ये तेरहवीं शताब्दी में त्र्यम्बकमाहात्म्य (२३) देविकामाहात्म्य (२४) धर्माख्यवर्तमान थे। माहात्म्य (२५) ध्यानयोगसार (२६) पंचवटीमाहात्म्य पद्मनाभद्वादशी-आश्विन शुक्ल द्वादशी को इस व्रत का (२७) पायिनीमाहात्म्य (२८) प्रयागमाहात्म्य (२९) आरम्भ होता है। एक कलश की स्थापना करके उसमें फाल्गुनीकृष्ण-विजयामाहात्म्य (३०) भक्तवत्सलमाहात्म्य भगवान् पद्मनाभ (विष्णु) की प्रतिमा विराजमान की (३१) भस्ममाहात्म्य (३२) भागवतमाहात्म्य (३३) भीमाजाती है, उसका चन्दन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्यादि माहात्म्य (३४) भूतेश्वरतीर्थमाहात्म्य (३५) मलमाससे पूजन होता है। दूसरे दिन उसे दान में दे दिया माहात्म्य (३६) मल्लादिसहस्रनाम स्तोत्र (३७) यमुनाजाता है। माहात्म्य (३८) राजराजेश्वरयोग कथा (३९) रामसहस्रपद्मपादिका- (पञ्चपादिका) शंकराचार्य के शिष्य पद्मपा नाम स्तोत्र (४०) रुक्माङ्गदकथा (४१) रुद्रहृदय (४२) दकृत एक दार्शनिक ग्रन्थ । इसके ऊपर प्रबोधपरिशोधिनी रेणुकामहस्रनाम (४) विकृतजननशान्तिविधान (४४) नाम की एक टीका है, जिसके रचयिता नरसिंहस्वरूप के विष्णुसहस्रनाम (४५) वृन्दावनमाहात्म्य (४६) वेङ्कटस्तोत्र शिष्य आत्मस्वरूप थे। ( ४७ ) वेदान्तसार शिवसहस्रनाम ( ४८ ) वेण्योपाख्यान ( ४९ ) बैतरणी व्रतोद्यापनविधि (५०) वैद्यनाथमाहात्म्य पद्मपुराण-इसके पाँच खण्ड है-(१) सृष्टिखण्ड (२) (५१) वैशाखमाहात्म्य (५२) शिवगीता (५३) शताश्वभूमिखण्ड (३) स्वर्गखण्ड (४) पातालखण्ड और (५) विजय ( ५४ ) शिवालयमाहात्म्य ( ५५ ) शिवसहस्रनाम उत्तरखण्ड । विष्णुपुराण की सूची के अनुसार पद्म पुराण स्तोत्र (५६) शीतलास्तोत्र (५७) शोशीपुरमाहात्म्य (५८) दूसरा पुराण है। देवीभागवत के अतिरिक्त, जिसके मत श्वेतगिरिमाहात्म्य (५९) सङ्घटनामाष्टक (६०) सत्योसे मार्कण्डेय पुराण दूसरा है, सब पुराण इसी को दूसरा पाख्यान (६१) सरस्वत्यष्टक (६२) सिन्धुरागिरिमाहात्म्य स्थान देते हैं और इस बात पर एकमत हैं कि पद्मपुराण (६३) सुदर्शनमाहात्म्य (६४) हनुमत्कवच (६५) हरिश्चमें ५४,००० श्लोक हैं। केवल ब्रह्मवैवर्तपुराण के मत से न्द्रोपाख्यान (६६) हरितालिकाव्रतकथा (६७) हर्षेश्वरइसमें ५९,००० श्लोक होने चाहिए । इसमें हिरण्मय पक्ष माहात्म्य (६८) होलिकामाहात्म्य इत्यादि । (सुनहरे कमल) से संसार की उत्पत्ति का वृत्तान्त वर्णित है, इसलिए इस पुराण को बधजन 'पद्म' कहते हैं । सष्टि- पद्मसंहिता-यह प्रायः सबसे प्राचीन संहिता मानी जाती खण्ड के ३६वें अध्याय में इसकी कथा है, जिसमें संसार है, जिसमें चार खण्ड हैं-ज्ञानपाद, योगपाद, क्रियापाद की उत्पत्ति का सविस्तर वर्णन है और इससे मत्स्यपुराण एवं चर्यापाद । केवल दो ही संहिताओं 'पद्म' तथा 'विष्णुकी उक्ति का समर्थन होता है। तत्त्व' में उपर्युक्त चार खण्डों का प्रतिपादन हुआ है। नीचे लिखी छोटी-छोटी पोथियाँ पद्मपुराण के अन्तर्गत अधिकांश संहिताएँ केवल क्रिया एवं चर्यापादों का ही मानी जाती हैं : वर्णन करती हैं। (१) अष्टमूर्तिपर्व (२) अयोध्यामाहात्म्य (३) पद्मावलो-चैतन्य संप्रदाय के महात्मा रूप गोस्वामी द्वारा उत्पलाख्यमाहात्म्य (४) कदलीपुरमाहात्म्य (५) रचित एक संस्कृत नाटक । कमलालयमाहात्म्य (६) कपिलगीता (७) पंथ (पथ)-यह शब्द धार्मिक सम्प्रदाय का द्योतक है। करवीरमाहात्म्य (८) कर्मगीता (९) कल्याणकाण्ड प्रायः निर्गणवादी सन्तों द्वारा चलाये गये सम्प्रदायों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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