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________________ ३७४ नोलख उपनिषद् - यह एक शैव उपनिषद् है। नीलवृषदान - आश्विन अथवा कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए। इसी दिन नीलवर्ण का साँड़ छोड़ा जाता है। नीलव्रत - इस व्रत में नक्त ( रात्रि में एक समय भोजन ) पद्धति से प्रति दूसरे दिन एक वर्ष तक भोजन ग्रहण करना चाहिए । यह संवत्सरव्रत है । वर्ष के अन्त में नील कमल तथा शर्करा से परिपूर्ण एक पात्र एवं वृषभ का दान करना चाहिए। इस व्रत से व्रती विष्णुलोक को प्राप्त करता है । नृग - ( १ ) राजा नृग की कथा पुराणों में प्रसिद्ध है। भागवत पुराण के अनुसार नृग इक्ष्वाकु के पुत्र थे । वे दान के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार उन्होंने ब्राह्मण की गाय को, जो उनके गोण्ड में मिल गयी थी, भूल से दूसरे ब्राह्मण को दान में दे दिया। ब्राह्मण ने राजा पर दोषारोपण किया । राजा ने दोनों ब्राह्मणों को बुलाया । दोनों में से कोई उस गाय के बदले दूसरी गाय लेने को तैयार न हुआ । राजा विवश था। जब वह मरा तो यमराज ने दण्डस्वरूप उसको गिरगिट का जन्म देकर संसार में भेजा। एक कुएँ में यह पड़ा रहता था । भगवान् कृष्ण का जब अवतार हुआ तब इसका उद्धार हुआ । (२) वेदान्त के प्रसिद्ध आचार्य बृहस्पतिमिश्र का आश्रयदाता नृग नामक तिरहुत का राजा था । " नृमेध नृमेधावेद (१०.८०, ३) में यह अग्नि के एक शिष्य ( रक्षित) का नाम है। इसका अन्य नाम सुमेधा था, जिसे ग्रिफि 'अबोध' बताते हैं तैत्तिरीय संहिता में नृमेध परुच्छेप का असफल प्रतियोगी है एवं पंचविंश ब्राह्मण (८.८, २१ ) में यह आङ्गिरस् गोत्रज तथा सामों का रचयिता कहा गया है। नृसिंह उपपुराण - नरसिंह सम्प्रदाय से सम्बन्धित एक उपपुराण | नृसिहत्रयोदशी गुरुवार की त्रयोदशी को नृसिंहत्रयोदशी कहते है। यह भगवान् विष्णु के नृसिंह अवतार से सम्ब न्धित है। इस दिन उन्हीं का व्रत किया जाता है। नृसिंहपूर्वतापनीय उपनिषद्-नृसिंह सम्प्रदाय की दो उपनिषदें मुख्य आधारग्रन्थ हैं, वे हैं नृसिंह पूर्व एवं उत्तर तापनीय | नृसिंहपूर्वतापनीयोपनिषद् के भी दो भाग हैं । प्रथम भाग में सिंह का राजमन्त्र तथा इसकी रहस्या Jain Education International नील उपनिषद्-नृसिंहावतार त्मक एकता का विवेचन है। दूसरे भाग में नृसिंहमंत्रराज तथा तीन अन्य दूसरे प्रसिद्ध वैष्णव मन्त्रों द्वारा यन्त्र बनाने का निर्देश है, जिसे कवच के रूप में कंठ, भुजा या जटा में पहना जाता है । नृसिंह सरस्वती - वेदान्तसार की टीका सुबोधिनी के रचयिता । यह टीका इन्होंने सं० १५१८ में लिखी थी । अतः इनका स्थितिकाल विक्रमी सत्रहवीं शताब्दी होना चाहिए। सुबोधिनी की भाषा बहुत सुन्दर है। इससे इनकी उच्चकोटि की प्रतिभा का परिचय मिलता है। इनके गुरु का नाम कृष्णानन्द स्वामी था । नृसिंहसंहिता - ( नरसिंहसंहिता) नरसिंह सम्प्रदाय के साहित्य में इस ग्रन्थ की गणना प्रमुखतया की जाती है । नृसिंहाचार्य ऐतरेय एवं कौषीतकि आरण्यकों पर शङ्करा चार्य के भाष्य है तथा उनके भाष्यों पर अनेक आचार्यो की टीकाएँ हैं । इनमें नृसिंहाचार्य की भी एक टीका है । नृसिंहाचार्य ने श्वेताश्वतर एवं मैत्रायणी पर शङ्कर द्वारा रचे गये भाष्यों की भी टीका लिखी है। आपस्तम्बधर्मसूत्र पर नृसिंहाचार्य ने वृत्ति लिखी है। नृसिंहानन्द नाथ - दक्षिणमार्गी शाक्त विद्वानों की परम्परा में अप्पय दीक्षित के काल के पश्चात् दक्षिण ( तंजौर ) के ही तीन विद्वानों के नाम प्रसिद्ध हैं । ये तीनों गुरुपरम्परा का निर्माण करते हैं। ये है नृसिंहानन्द नाथ, भास्करानन्द नाथ तथा उमानन्द नाथ। ये तीनों उसी शाखा के हैं जिससे लक्ष्मीधर विद्यानाथ सम्बन्धित थे । नृसिंहावतार विष्णु का नृसिंहावतार हिरण्याक्ष के छोटे भाई हिरण्यकशिपु के वध एवं धर्म के उद्धार के लिए हुआ था । हिरण्यकशिपु अपने बड़े भाई के वध के कारण विष्णु से बहुत ही क्रुद्ध रहा करता था और उनको अपना बड़ा शत्रु समझता था। इधर ब्रह्माजी के वर के प्रभाव से इस दैत्य ने समस्त स्वर्ग के राज्य पर अधिकार करके वहाँ के देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया था। उस समय देवताओं द्वारा विष्णु की प्रार्थना की गयी, जिससे भगवान् ने प्रसन्न होकर देवताओं से कहा कि हिरण्य कशिपु जब वेद, धर्म तथा अपने भगवद्भक्त पुत्र पर अत्याचार करेगा, उस समय में नृसिंह रूप में आविर्भूत होकर उसका वध करूंगा। भागवत पुराण के अनुसार प्रह्लाद की आस्था को सत्य करने तथा समस्त विश्व में अपनी व्यापक सत्ता का परिचय देने के लिए भगवान् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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