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________________ ३६८ निम्बार्क (गण)-नियमयूथमालिका निम्बार्क ने इस प्रकार अपना सारा ध्यान कृष्ण तथा सीखी थी। इन्हीं नारदजी ने निम्बार्क को उपदेश दिया । राधा पर केन्द्रित किया है। परवर्ती अनेक सम्प्रदाय निम्बार्क ने अपने वेदान्तभाष्य में सनत्कुमार और नारद उनके ऋणी हैं। उन्होंने वेदान्तसूत्र पर एक संक्षिप्त के नाम का उल्लेख किया है। निम्बार्क ने साम्प्रदायिक भाष्य अथवा वृत्ति लिखी, जिसका नाम 'वेदान्तपारिजात- ढंग से जिस मत की शिक्षा पायी थी उसे अपनी प्रतिभा सौरभ' है तथा 'दशश्लोकी' नामक एक दस पद्यों की से और भी उज्ज्वल बना दिया। पुस्तिका रची है। इस सम्प्रदाय का भाष्य श्रीनिवास- निम्बार्कसम्प्रदाय की एक प्राचीन गुरुगद्दी मथुरा में रचित 'वेदान्तकौस्तुभ' है जो एक उच्च कोटि का यमुना के तटवर्ती ध्रुवक्षेत्र में है । वैष्णवों का यह पवित्र तार्किक ग्रन्थ है । बाद के आचार्यगण भी विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ तीर्थ माना जाता है। अब अन्यत्र भी प्रभावशाली लिखते आये हैं । इनकी उपासना विधि के निर्देशक ग्रन्थ गुरुगद्दियाँ स्थापित हो गयी हैं। इस सम्प्रदाय के लोग गौतमीय संहिता तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण का कृष्ण सम्बन्धी विशेषकर उत्तर भारत में ही रहते हैं। इस सम्प्रदाय भाग है, जो पीछे से निम्बार्कदर्शन के रूप में सम्भवतः की एक विशेषता यह है कि इसके आचार्यों ने अन्य मतों इस पुराण में जोड़ दिया गया है। 'शाण्डिल्यभक्तिसूत्र' के आचार्यों की तरह दूसरे मतों का खण्डन नहीं किया की भी निम्बार्क मत से ही उत्पत्ति मानी जा सकती है। है। केवल देवाचार्य के ग्रन्थ में शाङ्कर मत पर आक्षेप निम्बार्क (गण)-निम्बार्क द्वारा प्रवर्तित मत को मानने किया गया है। वाले निम्बार्क वैष्णव (गण) कहलाते हैं। इनमें गृहस्थ निम्बार्काचार्य-दे० 'निम्बार्क' । और विरक्त दोनों प्रकार के अनुयायी होते हैं। गुरुगद्दी निम्मप्पदास-एक कर्नाटकी भक्त का नाम । प्राकृत भाषाओं के संचालक आचार्य भी दोनों ही वर्गों में पाये जाते हैं, में धार्मिक ग्रन्थों के लिखे जाने के आन्दोलन के प्रभाव से जो शिष्यों को मन्त्रोपदेश करते हुए कृष्णभक्ति का प्रचार कन्नड भाषा में भी ग्रन्थ रचे गये। निम्मप्पदास ने औरों करते रहते हैं । आचार्य और भक्तगण प्रायः भजन-ध्यान की तरह अपनी रचनाएँ (पद्य में ) कन्नड भाषा में एवं राधा-कृष्ण की युगल उपासना की ओर ही उन्मुख लिखी है। रहते हैं, दार्शनिक सिद्धान्त की अभिरुचि इनमें अधिक नियति-शाक्त मत के अनुसार प्राथमिक सष्टि के दूसरे नहीं पायी जाती। इसीलिए इनका समन्वय चैतन्य चरण में शक्ति के भूतिरूप का सामूहिक प्रकटन कूटस्थ संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, प्रणामी संप्रदाय, धर्मदासी पुरुष तथा माया शक्ति के रूप में होता है। कूटस्थ पुरुष कबीर शाखा, रामानन्दीय, खालसादल आदि के साथ भी व्यक्तिगत आत्माओं का सामूहिक रूप है (मधुमक्खियों की सौहार्द के साथ होता आया है। व्रजमंडल, प्रयाग, काशी, तरह एकत्र हुआ) तथा माया विश्व का अभौतिक उपानेपाल, बंगाल, उड़ीसा, राजस्थान, द्वारका आदि में दान है । माया से नियति की उत्पत्ति होती है, जो सभी निम्बाकियों की गृहस्थ और विरक्त गुरुगद्दियाँ और मठ- वस्तुओं को नियमित करती है। फिर नियति से काल मन्दिर पाये जाते हैं। उत्पन्न होता है जो चालक शक्ति है । निम्बार्कसम्प्रदाय-यह सम्प्रदाय वैष्णव चतुःसंप्रदाय की नियम-योगदर्शन में निर्दिष्ट अष्टांग योग का द्वितीय घटक । एक शाखा है । दार्शनिक दृष्टि से यह भेदाभेदवादी है। इसकी परिभाषा है : 'शौच-सन्तोष-तपः-स्वाध्याय-ईश्वरभेदाभेद और द्वैताद्वैत मत प्रायः एक ही है। इस मत के । प्रणिधानानि नियमाः । [शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय अनुसार द्वैत भी सत्य है और अद्वैत भी। इस मत के प्रधान और ईश्वर का ध्यान ये नियम कहलाते हैं ।] सामान्य आचार्य निम्बार्क हो गये हैं परन्तु यह मत अति प्राचीन ___ अर्थ है 'स्वेच्छा से अपने ऊपर नियन्त्रण रखकर अच्छा है । इसे सनकादिसम्प्रदाय भी कहते हैं। ब्रह्मा के चार __ अभ्यास विकसित करना', जैसे स्नान, शुद्धाचार, शरीर को मानस पुत्र सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार थे। निर्मल बनाना, सन्तोष, प्रसन्नता, अध्ययन, उदासीनता ये चारों ऋषि इस मत के आचार्य कहे जाते हैं । छान्दोग्य आदि । उपनिषद् में सनत्कुमार-मारद की आख्यायिका प्रसिद्ध है। नियमयूथमालिका-अप्पय दीक्षित रचित 'नियमयूथउसमें कहा गया है कि नारद ने सनत्कुमार से ब्रह्मविद्या मालिका' रामानुज मत का दिग्दर्शन कराती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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