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________________ नास्तिक-निकुम्भपूजा ३६५ बीच से गोदावरी नदी बहती है। दक्षिण की ओर नगर वर्ष से बाहर अन्यान्य देशों में भी फैला। यह एक भारी का मुख्य भाग है उसे नासिक कहते है और उत्तरी भाग परिवर्तन था, धार्मिक क्रान्ति थी जिससे श्रुतियों और को पञ्चवटी । गोदावरी के दोनों तटों पर देवालय बने हुए स्मृतियों को लोग विल्कुल भूल गये और बौद्धों को है। पंचवटी से तपोवन और दूसरे तीर्थों का दर्शन करने राज्याश्रय मिल जाने से नास्तिक मत प्रबल हो गया । में सुविधा होती है। रावण ने यहीं से सीताहरण किया (२) सामान्य अर्थ में ईश्वर अथवा परमार्थ में विश्वास था । यहाँ बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर बारह वर्ष न करनेवाले को नास्तिक कहते हैं । के अन्तर से स्नानपर्व या कुम्भमेला होता है। नासिक से नास्तिकदर्शन-वेदों के प्रमाण को माननेवाले आस्तिक ७-८ कोस दूर ‘त्र्यम्बकेश्वर' ज्योतिलिङ्ग तथा नील पर्वत और न मानने वाले नास्तिक कहलाते हैं । चार्वाक, माध्यके उत्तुंग शिखर पर गोदावरी गंगा का उदगम स्रोत है। मिक, योगाचार, सौत्रान्तिक, वैभाषिक एवं आर्हत ये छहः यह प्रदेश बड़ा रमणीक है। नास्तिक दर्शन हैं । दे० सर्वदर्शनसंग्रह नामक ग्रन्थ । नास्तिक-जो आस्तिक नहीं है वह 'नास्तिक' कहलाता है। नास्तिकमत-'नास्तिक दर्शन' शब्द में छ: नास्तिक दर्शन इसका शाब्दिक अर्थ है 'न + अस्ति । (कोई स्थायी सत्ता) गिनाये जा चुके है । विपरीत मतसहिष्णु भारत में आस्तिक नहीं है ] कहने वाला', अर्थात् जो मानता है कि 'ईश्वर और नास्तिक दोनों तरह के विचारों का आदि काल से नहीं है। किन्तु हिन्दू धर्म की पारिभाषिक शब्दावली पूर्ण विकास होता चला आया है । आस्तिक तथा नास्तिक में 'नास्तिक' उसको कहते हैं जो वेद के प्रामाण्य को दोनों दलों की परम्परा और संस्कृति समान चली आयी नहीं मानता है (नास्तिको वेदनिन्दकः) । इस प्रकार बौद्ध, है । दोनों का इतिहास एक ही है। हाँ, प्रत्येक दल ने अर्हत, चार्वाक आदि सम्प्रदाय नास्तिक माने जाते हैं। स्वभावतः अपने इतिहास में अपना उत्कर्ष दिखाया है। नास्तिकता--(१) नास्तिक का परम्परागत अर्थ है 'जो ( विभिन्न नास्तिक मतों को नास्तिक दर्शनों के अन्तर्गत वेद की निन्दा करता है' ( नास्तिको वेदनिन्दकः ) । अतः देखिए।) वेद के प्रमाण में विश्वास न करना नास्तिकता है । ईश्वर नास्तिक हिन्द-दे० 'नास्तिक'। में विश्वास न करने से कोई नास्तिक नहीं होता । मीमांसा निकुम्भपूजा-(१) इस व्रत में चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को और सांख्य दोनों दर्शन ईश्वर के अस्तित्व की आवश्यकता उपवास तथा पूर्णिमा को हरि का पूजन करना चाहिए। नहीं समझते । फिर भी वे आस्तिक माने जाते हैं । पिशाचों की सेना के साथ निकुम्भ नामक राक्षस लड़ने के नास्तिकता तथा नास्तिकों की चर्चा वेदों में प्रचुर लिए जाता है। एक मिट्टी की प्रतिमा अथवा घास का मात्रा में है। नास्तिकों को यहाँ असुर योनि में गिना पुतला बनाकर प्रत्येक घर में मव्याह्न के समय स्थापित गया है । इनकी परम्परा अति पुरानी है या कम से कम करते हुए पुष्प तथा धूप, दीप, नैवेद्यादि से पूजन करना उतनी ही पुरानी है जितनी आस्तिकों की। महाभारत चाहिए । नगाड़े तथा सारङ्गी आदि वाद्ययन्त्र भी बजाने काल में भी नास्तिक थे । चार्वाक की चर्चा महाभारत में चाहिए। चन्द्रोदय के समय पुनः पूजन का विधान है। आयी है । जाबालि के कथन से पता चलता है कि रामायण पूजा के बाद एकदम तितर-बितर हो जाना चाहिए। काल में भी नास्तिक लोगों की संख्या अच्छी रही होगी। व्रती को चाहिए कि वह वाद्य, संगीत आदि से एक बड़ा बौद्धों और जैनों की चर्चा से कुछ लोग समझते हैं कि ये महोत्सव मनाये । जनता घास के बने हुए सर्प से खेले, जो अंश पीछे से मिलाये गये हैं अथवा इन ग्रन्थों की रचना लकड़ियों से घिरा हो। तीन-चार दिन बाद उस सर्प के ही पीछे हुई है । परन्तु यह धारणा भ्रान्त है । महाभारत टुकड़े-टुकड़े कर दिये जायँ तथा उन टुकडों को एक वर्ष के बहुत पीछे महावीर जिन तथा गौतम बुद्ध के समय से तक रखा जाय । नीलमत पुराण (१० ६४, श्लोक ७८१नास्तिक मतों का प्रचार बढ़ा और धीरे-धीरे सारे देश में ७९० ) के अनुसार यह "चैत्रपिशाचवर्णनम्" है। राजा और प्रजा में व्याप गया। बौद्ध मत के आत्यन्तिक (२) आश्विन पूर्णिमा को (महिलाओं, बच्चों तथा वृद्धों प्रचार से आस्तिक धर्मों और वर्णविभाग का कुछ काल को छोड़कर) पुरुष लोग गृह के मुख्य द्वार के पास अग्नि के लिए ह्रास हो गया। नास्तिक मत का प्रभाव भारत स्थापित करके दिन भर निराहार रहकर उसका पूजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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