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________________ नारायणतीर्थ-नालायिर प्रबन्धम् हुए एवं शिव तथा ब्रह्मा उनके आश्रित देवता हैं, जो सताये जाने के बाद एक शहतीर के नीचे दबाकर मारा उनकी ध्यानशक्ति से उत्पन्न हुए हैं। जाता है। कहते हैं कि यही विधि देवता को पसन्द है। __ नारायण तथा आत्मबोध उपनिषदों में नारायण का नारायणपुत्र-सामसंहिता के भाष्यकारों में से एक हैं। मन्त्र उद्धत है तथा इन उपनिषदों का मुख्य विषय ही नारायणबलि----रोग आदि की दुर्दशा या दुर्घटना में मृत नारायणमन्त्र है। यह मन्त्र है 'ओम् नमो नारायणाय' ।। व्यक्तियों की सद्गति के लिए किया जानेवाला विशेष पितयही मन्त्र श्रीवैष्णव सम्प्रदाय का दीक्षामन्त्र भी है। कर्म, जिसके अन्तर्गत प्रेत के साथ कई देवता पूजे जाते (२) महाराष्ट्रीय सन्त नारायण । इनका नाम बाद में है और नारायण (शालग्राम) का पूजन, अभिषेक एवं होम समर्थ रामदास (१६०८-८१ ई० ) हो गया, जो स्वामी संपादित होता है। रामानन्दजी के भक्ति आन्दोलन से प्रभावित थे। ये कवि नारायणमन्त्रार्थ-यह आचार्य रामानुजरचित एक ग्रन्थ है। थे किन्तु इनकी रचनाएँ तुकाराम के सदृश साहित्यिक नहीं नारायण विष्णु-श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी श्री अथवा हैं । इनका व्यक्तिगत प्रभाव शिवाजी पर विशेष था। लक्ष्मी एवं विष्णु के अतिरिक्त किसी अन्य देव की इनकी काव्यरचना का नाम 'दासबोध' है जो धार्मिक होने भक्ति या पूजा नहीं करते हैं । इनके आराध्यदेव है नाराकी अपेक्षा दार्शनिक अधिक है। यण, विष्णु । दे० 'नारायण ।' (३) भाष्यकार एवं वृत्तिकार नारायण । नारायण नाम नारायण सरस्वती-योगदर्शन के एक व्याख्याकार, जो के एक विद्वान् ने शाङ्खायनश्रौतसूत्र का भाष्य लिखा है। गोविन्दानन्द सरस्वती के शिष्य थे तथा 'मणिप्रभा' टीका ये नारायण तथा आश्वलायनसूत्र के भाष्यकार नारायण के रचयिता रामानन्द सरस्वती के समकालीन थे । इन्होंने दो भिन्न व्यक्ति हैं । तैत्तिरीय उपनिषद् के एक टीकाकार १६४९ वि० में योगशास्त्र का एक ग्रन्थ लिखा। का भी नाम नारायण है । श्वेताश्वतर एवं मैत्रायणीयोपनि नारायणसंहिता-मध्व ने अपने भाष्य में ऋग्वेद, उपनिषद् षद् (यजुर्वेद की उपनिषदों) के एक वृत्तिकार का भी नाम तथा गीता के अतिरिक्त कुछ पुराणों एवं वैष्णव संहिताओं नारायण है । छान्दोग्य तथा केनोपनिषद् (सामवेदीय) पर का भी उद्धरण दिया है। इन संहिताओं में 'नारायणभी नारायण ने टीका लिखी है। अथर्ववेदीय उपनिषद् संहिता' भी एक है। मुण्डक, माण्डूक्य, प्रश्न एवं नृसिंहतापनी पर भी नारायण की टीकाएँ हैं। नारायण उपनिषद् ( नारायणोपनिषद्)-इस उपनिषद् में ___ उपर्युक्त उपनिषदों के टीकाकार तथा वृत्तिकार नारा प्रसिद्ध नारायणमन्त्र 'ओम् नमो नारायणाय' की व्याख्या यण एक ही व्यक्ति ज्ञात होते हैं, जो सम्भवतः ईसा की की गयी है। चौदहवीं शती में हुए थे । ये माधव के गुरु शङ्करानन्द के नारायणीय उपाख्यान-महाभारत के शान्तिपर्व, मोक्षधर्म बाद हुए थे। इन्होंने अपने भाष्यों में ५२ उपनिषदों का प्रकरण में नारायणीय उपाख्यान वणित है । दे० 'नारायण' । नाम लिखा है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से प्रसिद्ध है। नारायणीयोपनिषद्-तैत्तिरीय आरण्यक का दसवाँ प्रपाठक नारायणतीर्थ-ब्रह्मानन्द सरस्वती के विद्यागुरु स्वामी याज्ञिकी' अथवा 'नारायणीयोपनिषद्' के नाम से विख्यात नारायण तीर्थ थे। है । इसमें मूर्तिमान् ब्रह्मतत्त्व का निरूपण है। शङ्गराचार्य नारायणदेव-(१) सूर्य देवता का पर्याय नारायणदेव है। ने इसका भाष्य लिखा है । सौर सम्प्रदाय में सूर्य ही नारायण अथवा जगदात्मा देव नारायणेन्द्र सरस्वती-सायणाचार्य के ऐतरेय तथा कौषीतकि और आराधनीय है। आरण्यकों के भाष्यों पर अनेक टीकाएँ रची गयी है। (२) 'बैगा' नामक गोंड़ों की अब्राह्मण पुरोहित जाति नारायणेन्द्र सरस्वती की भी एक टीका उक्त भाष्यों के कुलदेवता का नाम नारायणदेव है । जो सूर्य के प्रतीक पर है। या उनके समान माने जाते हैं । बैगा लोग अपने देवता के नालायिर प्रबन्धम्-नाथ मुनि ( यामुनाचार्य के पितामह यज्ञ में सूअर की बलि देते हैं। ऐसे यज्ञ विवाह, जन्म तथा तथा रामानुज सम्प्रदाय के पूर्वाचार्य) ने नम्मालवार तथा मृत्यु जैसे अवसरों पर होते हैं। बलिपशु नाना प्रकार से अन्य आलवारों की रचनाओं का संग्रह किया तथा उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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