SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस धन्यवत अथवा धन्यप्रतिपदावत कि वर्ष के अन्त में रजत, फल आदि वस्तुओं के दान से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। द्वैतवादरायण के पूर्व ही वेदान्त के अनेक आचायों ने आत्मा एवं ब्रह्म के सम्बन्ध में अपने मत प्रकाशित किये थे। इनमें से तीन सिद्धान्त प्रसिद्ध हैत अद्वैत और द्वैताद्वैत ( भेदाभेद ) । द्वैतमत के संस्थापक औडुलोमि हैं । उनके मतानुसार आत्मा वहा से बिल्कुल भिन्न है, जब तक कि वह मोक्ष प्राप्त कर ब्रह्म में विलीन नहीं हो जाता । वेदान्त के अतिरिक्त सांख्य, न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा को प्रकृति अथवा ब्रह्म से स्वतन्त्र तत्त्व माना गया है और इस प्रकार द्वैत अथवा त मत का समर्थन हुआ है। द्वैताद्वैतमत- यह एक प्रकार का भेदाभेदवाद ही है । इस के अनुसार ति भी सत्य है और अद्वैत भी इस मत के प्रधान आचार्य निम्बार्क हो गये हैं। ब्रह्मसूत्र में भी द्वैताद्वैतवाद तथा उसके आचार्य का नाम मिलता है। दसवीं शताब्दी में आचार्य भास्कर ने भेदाभेदवाद के अनुसार वेदान्तसूत्र की व्याख्या की । यह व्याख्या ब्रह्मपरक है, शिव या विष्णुपरक नहीं ग्यारहवीं शताब्दी में निम्बार्क स्वामी ने ब्रह्मसूत्र की विष्णुपरक व्याख्या करके द्वैताद्वैत मत अथवा भेदाभेदवाद की स्थापना की । आचार्य निम्बार्क के मतानुसार ब्रह्म जीव और जड़ अर्थात् चेतन और अचेतन से पृथक् और अपृथक् है इस पृथक्त्व और अयक्त्व के ऊपर ही उनका दर्शन निर्भर है । जीव और जगत् दोनों ब्रह्म के परिणाम हैं । जीव ब्रह्म से अत्यन्त भिन्न एवं अभिन्न है । जगत् भी इसी प्रकार भिन्न और अभिन्न है ताईतवाद का यही सार है। ताईतसिद्धान्तसेका सुन्दरभट्ट रचित 'द्वैताद्वैतसिद्धान्तसेतुका' देवाचार्य रचित वेदान्तव्याख्या 'सिद्धान्त जाह्नवी' का भाष्य है । ध धनत्रयोदशी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी का एक नाम । व्यापारी लोग इस दिन वाणिज्य सामग्री को परिष्कृत, सुसज्जित कर धन के देवता की पूजा का त्रिदिनव्यापी उत्सव आरम्भ करते हैं, नये-पुराने आर्थिक वर्ष का लेखा४३ Jain Education International जोखा तैयार किया जाता है और इस दिन नयी वस्तु का क्रय-विक्रय शुभ माना जाता है । आयुर्वेद के देवता धन्वन्तरि का यह जन्मदिन है, इसलिए चिकित्सक वैद्य लोग आज धन्वन्तरिजयन्ती का उत्सव मनाते हैं । धनपति ३३७ शरदिग्विजय (माधवाचार्यकृत) के एक भाष्यकार थे । धनसंक्रान्तियत यह संक्रान्ति है एक वर्ष पर्यन्त चलता है। इसके सूर्य देवता हैं। प्रतिमास जलपूर्ण कलश, जिसमें सुवर्णखण्ड पड़ा हो, निम्नांकित मन्त्र बोलते हुए दान करना चाहिए : 'हे सूर्य ! प्रसीदतु भवान् ।' व्रत के अन्त में एक सुवर्णकमल तथा धेनू दान में देनी चाहिए। विश्वास किया जाता है कि इससे व्रती जन्मजन्मान्तरों तक सुख, समृद्धि, सुस्वास्थ्य तथा दीर्घायु प्राप्त करता है। धन्ना (धना ) - वैष्णवाचार्य स्वामी रामानन्द के कुछ ऐसे भी शिष्य हो गये हैं, जिन्होंने किसी सम्प्रदाय की स्थापना या प्रचार नहीं किया, किन्तु कुछ पदरचना की है। धन्ना ऐसे ही उनके एक शिष्य थे । धनावासिव्रत (१) श्रावण पूर्णिमा के पश्चात् प्रतिपदा को यह व्रत आरम्भ होता है, एक मास तक चलता है, नील कमलों से विष्णु तथा संकर्षण की पूजा होती है । साथ ही घृत तथा सुन्दर नैवेद्य भगवच्चरणों में अर्पित करना चाहिए। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से तीन दिन पूर्व उपवास रखना चाहिए । व्रत के अन्त में एक गौ का दान विहित है । - (२) इसमें एक वर्ष पर्यन्त भगवान् वैधवण (कुबेर) की पूजा होती है । विश्वास है कि इसके परिणामस्वरूप अपार सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। धनी धर्मदास - मध्ययुगीन सुधारवादी आन्दोलनों में जिन सन्त कवियों ने योगदान किया है, धनी धर्मदास उनमें से एक हैं । इनके रचे अनेक पद पाये जाते हैं । धन्यव्रत अथवा धन्यप्रतिपदाव्रत - मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को इस व्रत का अनुष्ठान किया जाता है । उस दिन नक व्रत करना चाहिए तथा विष्णु भगवान् का (जिनका अग्नि नाम भी है) रात्रि को पूजन करना चाहिए। प्रतिमा के सम्मुख एक कुण्ड में हवन किया जाता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy