SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० बावसु आङ्गिरस-दिव् दावसु आङ्गिरस-पञ्चविंश ब्राह्मण ( २५.५,१२,१४) में में इस ग्रन्थ का बहुत आदर है। हिन्दी भाषा में भी वणित सामगान के रचयिता एक ऋषि । इसका अनुवाद प्रकाशित हो गया है । दाश-धीवर अर्थात् मछुवा, जो नाव के द्वारा शुल्क लेकर दास शर्मा-मलय देशवासी वादपुत्र पण्डित आतीय ने लोगों को नदी के पार ले जाता है। यजुर्वेद की पुरुष- शालायनसूत्र का भाष्य लिखा है। इसमें से नवें, दसवें मेध वाली बलितालिका में इसका उल्लेख है ।। और ग्यारहवें अध्याय का भाष्य नष्ट हो गया था। दास वास-(१) ऋग्वेद में दस्युओं के सदश दासों को भी देवों शर्मा ने 'मञ्जूषा' नामक टीका लिखकर इन तीन अध्यायों का भाष्य पूरा किया है। का शत्रु कहा गया है, किन्तु कुछ परिच्छेदों में आर्यों के मानव शत्रुओं के लिए भी यह शब्द व्यवहृत हुआ है । दिक्-वैशेषिक मतानुसार 'दिक्' या दिशा सातवाँ पदार्थ है। ये पुरों (दुर्गों ) के अधिकारी कहे गये हैं तथा इनके यह 'काल' को सन्तुलित करता है। यह वस्तुओं का स्थान विशों ( गणों) का वर्णन है। ऋग्वेद में अनेक स्थानों निर्देश करता हुआ उन्हें नष्ट होने से बचाता है । दिग्विजयभाष्य-माधवाचार्य रचित 'शङ्करदिग्विजय' पर पर आर्यों एवं दास व दस्युओं के धार्मिक मतभेदों की आनन्दगिरि एवं धनपति ने भाष्य लिखा है जो 'दिग्विजयचर्चा हुई है। अनेक बार दासों को सेवा का काम करने भाष्य' नाम से प्रसिद्ध है। पर बाध्य किया गया था, इसलिए इस शब्द का अर्थ आगे। दिधिषु-ऋग्वेद में देवर को 'दिधिषु' कहा गया है, जो चलकर 'सेवक' समझा जाने लगा। साथ ही दास की किसी स्त्री के पति के मरने पर अन्त्येष्टि के समय स्त्रीलिंग दासी का भी प्रयोग आरम्भ हआ। जो स्त्रियाँ उसके पति का स्थान ग्रहण करता था। 'नियोग' पारिवारिक सेवाकार्य करती थीं वे 'दासी' कहलाती थीं। में भी यह देवर ही होता था, जिसे पुत्रहीन स्त्री पति के (२) धर्मशास्त्र में कई प्रकार के दासों का वर्णन __ मरने पर पुत्र प्राप्ति के लिए ग्रहण करती थी। यह शब्द है, इससे स्पष्ट है कि दासत्व विधितः मान्य था। 'दास' पूषा देवता के लिए भी प्रयुक्त होता है, जिसने 'सूर्या' की परिभाषा इस प्रकार दी हुई है : “जब कोई स्वतन्त्र को पत्नी रूप में ग्रहण किया था। व्यक्ति स्वेच्छा से अपने को दूसरे के लिए दान कर देता बड़ी बहिन से पहले विवाहित छोटी बहिन का पति भी है तब वह उसका दास बन जाता है" ('स्वतन्त्रस्यात्मनो दानाद्दासत्वं दासवद् भृगुः ।' कात्यायन, 'व्यवहारमयूख' दिनक्षय-जब २४ घंटे के एक दिन में दो तिथियाँ समाप्त हों में उद्धृत)। इसके अतिरिक्त अन्य कारणों से भी दासत्व तो वह दिन (तिथि) क्षय होता है । दे० चतुर्वर्गचिन्तामणि, उत्पन्न हो जाता है। मनुस्मृति ( ८.४१५ ) के अनुसार काल, ६२६ । कालनिर्णय (२६०) वसिष्ठ को उद्धृत करते सात प्रकार के दास होते हैं : हुए कहता है कि एक दिन में यदि तीन तिथियों का स्पर्श ध्वजाहृतो भक्तदासो गहजः क्रीतदत्रिमौ । होता हो तो वह समय 'दिन का क्षय' कहा जाता है । उस पैतृको दण्डदासश्च सप्तैता दासयोनयः ।। दिन व्रत, उपवास निषिद्ध हैं। इस दिन किया हुआ दान [ध्वजाहृत (युद्ध में बन्दी बनाया हआ), जीविका के सहस्रगुने पुण्यों की प्राप्ति कराता है। लिए स्वयं समर्पित, अपने घर में दास से उत्पन्न, क्रय दिव-संसार तीन भागों-पृथ्वी, वायु अथवा वायुमण्डल किया हुआ, दान में प्राप्त, उत्तराधिकार में प्राप्त और तथा स्वर्ग अथवा आकाश (दिव्) में विभाजित है । आकाश विधि से दण्डित ये दास के सात प्रकार हैं।] एवं पृथ्वी ( द्यावा-पृथिवी) मिलकर विश्व बनाते हैं। नारदस्मृति के अनुसार पन्द्रह प्रकार के दास होते थे। वातावरण आकाश में सम्मिलित है। विद्युत् एवं सौर मण्डल अथवा इसी प्रकार के अन्य मण्डल आकाश में दासों के साथ व्यवहार करने और उनके मुक्त होने के सम्मिलित है। नियम भी धर्मशास्त्रों में दिये हुए हैं। विश्व के तीन विभाजन क्रमशः पृथ्वी (मिट्टी), वायु दासबोध-शिवाजी के गुरु समर्थ स्वामी रामदास द्वारा एवं आकाश नामक तीन तत्त्वों में प्रतिबिम्बित हैं । इसी रचित एक आध्यात्मिक ग्रन्थ । मानवता के उद्बोधन के प्रकार एक सर्वोच्च, एक मध्यम तथा एक निम्नतम तीन लिए इसमें सुन्दर और प्रभावशाली उपदेश हैं। महाराष्ट्र आकाश कहे गये हैं। अथर्ववेद में तीनों आकाशों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy