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________________ दण्डी - दत्तात्रेय दण्ड । प्रजा कर्मानुगामिनी थी । फिर काम, क्रोध, लोभादि दुर्गण उत्पन्न हुए । कर्त्तव्याकर्तव्य का ज्ञान नष्ट हुआ एवं 'मात्स्य न्याय' का बोलबाला हुआ । ऐसी दशा में देवों की प्रार्थना पर ब्रह्मा ने एक लाख अध्यायों वाला 'दण्डनीति' नाम का नीतिशास्त्र रच डाला। इसी के संक्षिप्त रूप आवश्यकतानुसार समय-समय पर 'वैशा लाक्ष', 'बाहुदन्तक', बार्हस्पत्य शास्त्र', 'ओशनसी नीति', 'अर्थशास्त्र', 'कामन्दकीय नीति' एवं 'शुक्रनीतिसार' हुए दण्डनीति का प्रयोग राजा के द्वारा होता था। यह राजधर्म का ही प्रमुख अङ्ग है । कौटिल्य ने अपने 'अर्थशास्त्र' के विद्यासमुद्देश प्रकरण में विद्याओं की सूची में दण्डनीति की गणना की है 'आन्वीक्षिकी यी वार्ता दण्डनीतिश्चेति विद्याः ।' कौटिल्य ने कई राजनीतिक सम्प्रदायों में ओशनससम्प्रदाय का उल्लेख किया है जो केवल दण्डनीति को ही विद्या मानता था । परन्तु उन्होंने स्वयं इसका प्रतिवाद किया है और कहा है कि चार विद्याएँ हैं ( चतस्र एव विद्या) और इनके सन्दर्भ में ही दण्डनीति का अध्ययन हो सकता है । 'अर्थशास्त्र' में दण्डनीति के निम्नांकित कार्य बताये गये हैं : ( १ ) अलब्धलाभार्था ( जो नही प्राप्त है उसको प्राप्त कराने वाली ), ( २ ) लब्धस्य परिरक्षिणी ( जो प्राप्त है उसकी रक्षा करने वाली ), (३) रक्षितस्य विवर्धिनी ( जो रक्षित है उसकी वृद्धि करने वाली ) और ( ४ ) वृद्धस्य पात्रेषु प्रतिपादिनी (बढ़े हुए का पात्रों में सम्यक् प्रकार से विभाजन करनेवाली ) । बण्डी - चतुर्थ आश्रम के कर्तव्य व्यवहारों के प्रतीक रूप बाँस का दण्ड जो संन्यासी हाथ में धारण करते हैं, वे दण्डी कहे जाते हैं। आजकल प्रायः शङ्कर स्वामी के अनुगामी दण्डियों का विशेष प्रचलन है । यह उनके दसनामी संन्यासियों का एक आन्तरिक वर्ग है। इनके नियमानुसार केवल ब्राह्मण ही दण्ड धारण कर सकता है । इसकी क्रियाएँ इतनी कठिन हैं कि ब्राह्मणों में भी कुछ थोड़े ही उनका निर्वाह कर सकते हैं और अधिकांश इस अधिकार का उपयोग नहीं कर पाते ! Jain Education International ३११ काशी ने गुरु दत्तगोरखसंवाद - नागरी प्रचारिणी सभा, गोरखनाथ विरचित ३७ ग्रन्थ खोज निकाले हैं, जिनमें से 'दत्तगोरखसंवाद' भी प्रमुख ग्रन्थ है । --- दत्त तापस पञ्चविंश ब्राह्मण ( २५.१५.३ ) के वर्णनानुसार दत्त तापस तथाकथित सर्पयज्ञ में होता पुरोहित था। दत्त सम्प्रदाय - प्राचीन वैष्णवों के व्यापक भागवत सम्प्रदाय की अब तीन शाखाएँ पायी जाती हैं- वारकरी सम्प्रदाय, रामदासी पन्थ एवं दत्त सम्प्रदाय ये तीनों सम्प्रदाय महाराष्ट्र में ही उत्पन्न हुए और वहीं से फैले। इन सम्प्रदायों में उच्च कोटि के सन्त, भक्त और कवि हो गये हैं । दत्त सम्प्रदाय तीनों में पुराना है । इसके आराध्य या आदर्श अवधूतराज दत्तात्रेय माने जाते हैं । दत्त होम - दत्तक पुत्र ग्रहण विधि का अनुष्ठान होता है अपना उत्तराधिकारी एवं । करने के समय इस धार्मिक हिन्दुओं में पुत्रहीन पिता वंशपरम्परा स्थापित करने के लिए दूसरे के पुत्र को ग्रहण करता है । इस अवसर पर उसे दूसरी आवश्यक विधियों के करने के पश्चात् व्याहृतिहोम अथवा 'दत्तहोम' करना पड़ता है। इस होम का आशय देवों का साक्षित्व प्राप्त करना होता है कि उनकी उपस्थिति में पुत्रसंग्रह का कार्य सम्पन्न हुआ । दत्तात्रेय - आगमवर्ग की प्रत्येक संहिता प्रारम्भिक रूप में किसी न किसी सम्प्रदाय की पूजा या सिद्धान्त का वर्णन उपस्थित करती है । दत्तात्रेय की पूजा इस नाम की 'दत्तात्रेयसंहिता' में उपलब्ध है। बत्तात्रेय को मानभाउ सम्प्रदाय वाले अपने सम्प्रदाय का मुख्य आचार्य कहते हैं तथा उनकी पूजा करते हैं। दत्तात्रेय की अस्पष्ट मूर्तिपूजा छाया रूप में मानभाउ सम्प्रदाय के इतिहास के साथ संलग्न रहो है। दत्तात्रेय को ऐतिहासिक संन्यासी मान लिया जाय तो अवश्य ही वे महाराष्ट्र प्रदेश में हुए होंगे तथा यादवगिरि ( मेलकोट ) से सम्बन्धित रहे होंगे जैसा नारदपुराण में । उल्लिखित है, उन्होंने मैसूरस्थित यादवगिरि की यात्रा की थी । संप्रति उनका प्रतिनिधित्व तीन मस्तक वाली एक संन्यासी मूर्ति से होता है और इस प्रकार वे त्रिमूर्ति भी समझे जाते हैं । उनके साथ चार कुत्ते एवं एक गाय होती है, जो क्रमशः चारों वेदों एवं पृथ्वी के प्रतीक हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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