SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुरायण-तुलसीदास तुरायण-महाभारत के अनुशासनपर्व (१०३.३४) से प्रतीत भाषा में 'रामायण' लिखा। इसमें व्याज से वर्णाश्रमधर्म, होता है कि महाराज भगीरथ ने इस व्रत का तीस वर्ष अवतारवाद, साकार उपासना, सगुणवाद, गो-ब्राह्मण रक्षा, तक आचरण किया था। पाणिनि की अष्टाध्यायी (५.१. देवादि विविध योनियों का यथोचित सम्मान एवं प्राचीन ७२) में भी यह नाम आया है। स्मृतिकौस्तुभ के अनुसार संस्कृति और वेदमार्ग का मण्डन और साथ ही उस समय यह एक प्रकार का यज्ञ है । आपस्तम्बश्रौतसूत्र (२.१४)। के विधर्मी अत्याचारों और सामाजिक दोषों की एवं में 'तुरायणेष्टि यज्ञ' बतलाया गया है। मनुस्मृति (६.१०) पन्थवाद की आलोचना की गयी है। गोस्वामीजी पन्थ में चातुर्मास्य तथा आग्रयण के साथ इसे वैदिक इष्टि वा सम्प्रदाय चलाने के विरोधी थे। उन्होंने व्याज से बतलाया गया है। भ्रातृप्रेम, स्वराज्य के सिद्धान्त, रामराज्य का आदर्श, तुरीयातीतावधूत उपनिषद-यह परवर्ती उपनिषद् है। अत्याचारों से बचने और शत्रु पर विजयी होने के उपाय; इसमें अवधूतों के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। सभी राजनीतिक बातें खुले शब्दों में उस कड़ी जासूसी तुलसी-भारत में जंगली वृक्ष, क्षुप एवं तृणों में भी दिव्य के जमाने में भी बतलायों, परन्तु उन्हें राज्याश्रय प्राप्त न शक्ति मानी जाती है। जैसे बेल का वक्ष शैवों के लिए था । लोगों ने उनको समझा नहीं। रामचरितमानस का पवित्र है, कुश, दूर्वा कर्मकाण्डियों के लिए; वैसे ही तुलसी राजनीतिक उद्देश्य सिद्ध नहीं हो पाया। इसीलिए उन्होंने वैष्णवों के लिए पवित्र है । लोग उसकी पूजा करते और झुंझलाकर कहा : उसे अपने घर के आँगन में रोपित करते हैं। प्रत्येक "रामायण अनुहरत सिख, जग भई भारत रीति । दिन स्नानोपरान्त इस वृक्ष को जल दिया जाता है । तुलसी काठहि को सुन, कलि कुचालि पर प्रीति ।" सन्ध्याकाल में वृक्ष के नीचे इसके चरणों के पास दीपक सच है, साढ़े चार सौ वर्ष बाद आज भी कौन सुनता जलाते हैं। इसमें हरि (विष्णु) का निवास मानते हैं। है? फिर भी उनको यह अद्भत पोथी इतनी लोकप्रिय है विष्णु की पूजा के लिए इसकी पत्तियाँ अत्यावश्यक हैं। कि मूर्ख से लेकर महापण्डित तक के हाथों में आदर से तुलसी का एक नाम वृन्दा भी है। पुराणों के अनुसार स्थान पाती है। उस समय की सारी शङ्काओं का रामवृन्दा जालन्धर की पत्नी थी। अपने पातिव्रत के कारण चरितमानस में उत्तर है। अकेले इस ग्रन्थ को लेकर यदि वह विष्णु के लिए भी वन्दनीय थी। इसलिए विष्णु के गोस्वामी तुलसीदास चाहते तो अपना अत्यन्त विशाल अवतार कृष्ण की लीलाभूमि का नाम ही वृन्दावन है। और शक्तिशाली सम्प्रदाय चला सकते थे। यह एक ___ इसकी पत्तियों में मलेरिया ज्वर की नाशक शक्ति है। सौभाग्य की बात है कि आज यही एक ग्रन्थ है, जो जिससे ग्रामीण वैद्य अधिकतर इसका व्यवहार करते हैं। साम्प्रदायिकता की सीमाओं को लाँधकर सारे देश में व्यापक परन्तु इसका प्रयोग अधिकांश धार्मिक भाव से ही होता है। और सभी मत-मतान्तरों को पूर्णतया मान्य है। सबको तुलसीकृत रामायण-दे० 'तुलसीदास' । एक सूत्र में ग्रथित करने का जो काम पहले शंकराचार्य तुलसीत्रिरात्र-कार्तिक शुक्ल नवमी को यह व्रत प्रारम्भ स्वामी ने किया, वही अपने युग में और उसके पीछे आज होता है। तीन दिन तक व्रत रखना चाहिए। तत्पश्चात् भी गोस्वामी तुलसीदास ने किया। रामचरितमानस की तुलसी के उद्यान में विष्णु तथा लक्ष्मी की पूजा करनी कथा का आरम्भ ही उन शंकाओं से होता है जो कबीरचाहिए। दास की साखी पर पुराने विचार वालों के मन में तुलसीदास (गोस्वामी)-तुलसीदास (१५३२-१६२३ ई०) उठती हैं। के नाम, जीवनचरित्र एवं उनके ग्रन्थों से कौन ऐसा जैसा पहले लिखा जा चुका है, गोस्वामीजी स्वामी हिन्दू होगा जो अपरिचित होगा । इनका 'रामचरितमानस' रामानन्द की शिष्यपरम्परा में थे, जो रामानुजाचार्य के झोपड़े से लेकर बड़े-बड़े प्रासादों तक में उत्तर भारत के विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय के अन्तर्भुक्त है । परन्तु गोस्वामीजी हिन्दू मात्र के गले का हार है। की प्रवृत्ति साम्प्रदायिक न थी। उनके ग्रन्थों में अद्वैत गोस्वामीजी श्रीसम्प्रदाय के आचार्य रामानन्द की और विशिष्टाद्वैत का सुन्दर समन्वय पाया जाता है । शिष्यपरम्परा में थे। इन्होंने समय को देखते हुए लोक- इसी प्रकार वैष्णव, शैव, शाक्त आदि साम्प्रदायिक भाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy