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________________ २९८ तालवन-तिलचतुर्थी समझा गया है। किन्तु कुछ विद्वान तार्क्ष्य को तृक्षि का यह माणिक्कवाचकर द्वारा रचित है। अपत्यबोधक बताते हैं, जो ऋग्वेद के पश्चात् त्रसद्दस्यु के तिरुमन्त्रम्-तिरुमूलर द्वारा रचित 'तिरुमन्त्रम्' के अनुवाद वंशज कहलाते थे । ऋ०(२.४.१) में 'ताय' से एक पक्षी का नाम 'सिद्धान्तदीपिका' है। नम्बि के 'तिरुमुरई' का बोध होता है ( सम्भवतः वायस का ) जो सूर्य का । नामक संग्रह में यह भी संमिलित है। यह तामिल संकेतक है। शवों के व्यावहारिक धर्म पर प्रकाश डालने वाला तालवन-यह तीर्थस्थान व्रज में है, इसे तारसी गाँव कहते प्रथम एवं सफल काव्यग्रन्थ है। इसमें आगमों के धार्मिक हैं। यहाँ बलरामजी ने धेनुकासुर को मारा था। नियमों का भी समावेश हुआ है । यहाँ बलभद्रकुण्ड और बलदेवजी का मन्दिर है। तिरुवाचकम्-तिरुमूलर के पश्चात् तामिल शवों में ९५० तालवृन्तवासी-आपस्तम्बसूत्र के अनेक व्याख्याकारों में वि० के लगभग माणिक्कवाचकर का प्रादुर्भाव हुआ, तालवृन्तवासी का भी नाम आता है। इनके सम्बन्ध में जिन्होंने अपने छोटे एवं बड़े अनेक गेय पदों का संग्रह कुछ विशेष ज्ञातव्य नहीं है। 'तिरुवाचकम्' नामक ग्रन्थ में किया है। 'तिरुमुरई' तित्तिरि ऋषि-'तैत्तिरीय' शब्द कृष्ण यजुर्वेद के प्राति नामक संग्रह में इसे भी सम्मिलित किया गया है । शाख्यसूत्र में और सामसुत्र में मिलता है। पाणिनि के तिरुविरुत्तम्-द्राविड वेदों में से प्रथम तिरुविरुत्तम् ऋग्वेद का प्रतिनिधि है। नम्मालवार की रचनाओं को चारों वेदों अनुसार 'तित्तिरि' एक ऋषि का नाम था, जिससे तैत्तिरीय शब्द बना है । आत्रेय शाखा की 'संहितानुक्रमणिका' का प्रतिनिधि कहा गया है। उनमें प्रथम तिरुविरुत्तम् है । में भी यही व्युत्पत्ति मिलती है। हो सकता है कि यह तिरुविलंय-आडत्पुराणम्-तमिल प्रदेश में असाम्प्रदायिक व्यक्तिवाचक नाम न होकर गोत्रनाम हो, क्योंकि बहुत से शैव ग्रन्थ भी अनेक रचे गये। उनमें उपर्युक्त भी एक गोत्रनाम पक्षियों पर भी पड़े हैं। सम्बद्ध ऋषि का गोत्र है। इसके रचयिता परजीति हैं। रचनाकाल सत्रहवीं पक्षी 'तित्तिर' ( तीतर ) था। शती का प्रारम्भिक चरण है। इसमें स्थानीय धार्मिक कथाओं का संग्रह किया गया है । तिन्दुकाष्टमी-ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह व्रत तिलक-धार्मिक एवं शोभाकर चिह्न, जिसे पुरुष और प्रारम्भ होता है । एक वर्ष पर्यन्त चलता है। इसमें स्त्रियाँ सभी अपने ललाट पर धारण करते हैं। राज्यारोहण, कमल के फूलों से हरि का चार मास तक पूजन, आश्विन यात्रा, प्रस्थान तथा अन्य मांगलिक अवसरों पर भी तिलक से पौष तक धतूरे के फूलों से पूजन और माघ से वैशाख धारण किया जाता है। तिलक चन्दन, कस्तुरी, रोली तक शतपत्रों ( दिवसकमल ) से पूजन करना चाहिए। आदि कई पदार्थों से किया जाता है। तिरिन्दिर-ऋग्वेद ( ८.६.४६-४८ ) की दानस्तुति में धार्मिक ग्रन्थों की व्याख्या भी तिलक कही जाती है, 'पशु' के साथ तिरिन्दिर का नाम गायकों को दान करने क्योंकि पूर्व काल के पत्राकार हस्तलेखों में मूल ग्रन्थ मध्य के सम्बन्ध में आता है । शाङ्खायनश्रौतसूत्र में इसी भाग में और उसकी व्याख्या मस्तकतुल्य ऊपरी हाशिये बात को यों कहा गया है कि कण्व वत्स ने तिरिन्दिर पर लिखी जाती थी। मस्तक के तिलक की समानता से पार्शव्य से एक दान प्राप्त किया। इस प्रकार तिरिन्दिर ऐसे व्याख्यालेख को भी तिलक या टीका कहने की रोति एव पशु एकगोत्रज व्यक्ति के नाम हैं। ऋग्वेद के एक परिच्छेद में लुट्विग को तिरिन्दिर पर यदुओं की विजय तिलकव्रत-चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को यह व्रत प्रारम्भ होता का प्रमाण दृष्टिगोचर होता है, किन्तु जिभर इसे असंगत है और एक वर्ष तक चलता है । सुगन्धित अगरु से बताते हैं। यदु राजकुमार अवश्य हो तिरिन्दिर एवं संवत्सर के चित्र की पूजा करनी चाहिए । व्रती को अपने पशु का समानार्थी है। वेबर यदुओं को राजकुमार न मस्तक पर श्वेत चन्दन का तिलक लगाना चाहिए । मानकर गायक मानते हैं । तिलचतुर्थी-माघ शुक्ल चतुर्थी को इस व्रत का अनुष्ठान तिरुक्कोवैयर-यह तामिल शैव साहित्य का एक प्रसिद्ध होता है। इसकी विधि कुन्दचतुर्थी अथवा ढुण्डिराजग्रन्थ है। रचनाकाल ९५०वि० के लगभग है । सम्भवतः चतुर्थी के समान है। इसमें नक्त व्रत करना होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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