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________________ २९६ तक-ताप तर्क-इसका शाब्दिक अर्थ है 'युक्ति' । न्याय शास्त्र के जिसे जैमिनीय अथवा तलवकार कहते हैं। इसके अन्तर्गत लिए भी इसका प्रयोग होता है। न्याय के अनुसार तर्क उपनिषद् एवं ब्राह्मण आते हैं। से ज्ञान का सन्धान (लक्ष्य प्राप्त) होता है । परन्तु अन्तिम तलवकार ब्राह्मण-दे० 'तलवकार'। सत्ता की अनुभूति अथवा सत्यानृत, न्याय-अन्याय के ताण्ड-एक आचार्य का नाम, जिनकी शाखा से 'ताण्ड्य निर्णय में इसकी क्षमता नहीं स्वीकार की गयी है। यह ब्राह्मण' का सम्बन्ध है। यह लाट्यायन श्रौतसूत्र में उद्'अप्रतिष्ठ' माना गया है। साधना में इसका महत्त्व प्राथमिक किन्तु गौण है। ताण्डिन-सामवेद की एक शाखा, जिसके तीन ब्राह्मण हैंतकौमुदी-अठारहवीं शती वि० के आरम्भ में लौगाक्षि पञ्चविंश, षड्विंश एवं छान्दोग्य । भास्कर ने 'तर्ककौमदी' की रचना की । यह ग्रन्थ मीमांसा ताण्डवलक्षणसूत्र-सामवेदीय सूत्र ग्रन्थों में से एक ग्रन्थ । दर्शन से सम्बद्ध है। तान्त्रिक-तन्त्र से सम्बन्ध रखनेवाला । साहित्य और व्यक्ति तकचूडामणि-गोंशोपाध्याय कृत 'तत्त्वचिन्तामणि' दोनों के लिए इसका प्रयोग होता है । विचार और भावना नामक नव्य न्याय के ग्रन्थ पर 'तर्कचडामणि' नाम की की तीन प्रविधियाँ हैं-(१) मन्त्र (२) तन्त्र और (३) टीका धर्मराज अध्वरीन्द्र ने लिखी। इसमें इन्होंने अपने यन्त्र । उनका संघटनात्मक रूप तन्त्र है । जो संघटनात्मक से पूर्ववत्तिनी दस टीकाओं के मतों का खण्डन किया है। रूप को प्रधान मानकर उपासना करते हैं वे तान्त्रिक तर्कताण्डव-व्यासराज स्वामी ( सोलहवीं शती वि०) कहलाते हैं।। कृत 'तर्कताण्डव' न्याय दर्शन की आलोचना प्रस्तुत तान्त्रिक पञ्चमकार-तन्त्र शास्त्र की वाममार्ग पद्धति के करता है। अनुसार उपासना के पाँच साधन, जिनका नाम 'म' अक्षर तर्कभाषा-एकादश शताब्दी के पश्चात् न्याय तथा शे- से आरम्भ होता है, यथा मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और षिक दर्शन मिलकर प्रायः एक ही संयुक्त दर्शन बन मैथन । भौतिक रूप में ये तामस वस्तुएँ प्रतीत होती है, गये। अनेक ग्रन्थों ने इस एकरूपता को व्यक्त किया परन्तु परमार्थ दृष्टि से इनका अर्थ रहस्यात्मक है । है। त्रयोदश शती का केशवमिश्र कृत 'तर्कभाषा' ऐसे ही तात्पर्यचन्द्रिका-सत्रहवीं शती वि० के प्रारम्भ में आचार्य ग्रन्थों में से एक है। इसका अंग्रेजी अनुवाद म०म० गङ्गा- व्यासराज स्वामी ने यह ग्रन्थ लिखा। इनके कुल तीन नाथ झा द्वारा हुआ है। हिन्दी में इसके कई भाषान्तर ग्रन्थ है, जिनमें इन्होंने माध्वमत का प्रतिपादन किया है। तथा टीका है। तात्पर्यदीपिका-सुदर्शन व्यास भट्टाचार्य (वि० संवत् तकविद्या-न्यायदर्शन का एक पर्याय तर्कविद्या है। इससे १४२३ निधन काल) ने रामानुज स्वामी के 'वेदार्थसंग्रह यह न समझना चाहिए कि गौतम का न्याय केवल विचार पर 'तात्पर्यदीपिका' नामक टीका लिखी है। वा तर्क के नियम निर्धारित करने वाला शास्त्र है; अपितु तात्पर्यपरिशुद्धि-उदयनाचार्य कृत तात्पर्यपरिशुद्धि वाचस्पति यह प्रमेयों का विचार करने वाला दर्शन भी है । पाश्चात्य मिश्र के न्यायवार्तिकतात्पर्य की टीका है । इस परिशुद्धि लॉजिक (तर्कशास्त्र) से इसमें यही भेद है । लॉजिक (तर्क- पर वर्धमान उपाध्याय कृत 'प्रकाश' व्याख्या है । शास्त्र) दर्शन के अन्तर्गत नहीं लिया जाता, परन्तु न्याय ताप-आगम प्रणाली में द्विज वैष्णवों से आशा की जाती शास्त्र दर्शन है । यह अवश्य है कि न्याय में प्रमाण अथवा है कि वे योग्य गुरु का चुनाव कर उससे दीक्षा लें । दीक्षातर्क की परीक्षा विशेष रूप से हुई है। संस्कार में पांच क्रियाएं होती हैं, यथा ताप, पुण्ड्र, नाम, तर्कसंग्रह-सोलहवीं शताब्दी के अन्त में न्याय-वैशेषिक मन्त्र एवं याग । 'ताप' क्रिया में दीक्षा लेने वाले के शरीर दर्शन विषयक यह ग्रन्थ अन्नम् भट्ट द्वारा प्रणीत हुआ। पर साम्प्रदायिक सांकेतिक चिह्न अङ्कित किये जाते हैं । इसके देशी-विदेशी अनुवाद तथा अनेक टीकाएँ प्राप्त हैं। पिछले समय में द्वारका में सभी को तप्त शंख-चक्र लगाये तलवकार-सामवेद की अनेक शाखाओं में एक तलवकार जाते थे। लोगों का विश्वास था 'जो द्वारका जरे, सो भी है। तलवकार शाखा का एक ही ब्राह्मण ग्रन्थ है, कहीं मरे, वह अवश्य तरेगा।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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