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________________ २६० चतुर्वेदस्वामी-चन्द्रषष्ठी विश्वकोश तैयार किया, जिसे 'चतुर्वर्गचिन्तामणि' कहते चन्द्रज्ञान आगम-चन्द्रज्ञान को चन्द्रहास भी कहते हैं । हैं । लेखक की योजना के अनुसार इसके पाँच खण्ड है- यह एक रौद्रिक आगम है। ताथ (४) माक्ष तथा (५) चन्द्रग्रहण-पृथ्वी की छाया ( रूपक अर्थ में छाया राक्षसी परिशेष । परिशेष खण्ड के चार भाग है-(१) देवता का पुत्र राह अर्थात अन्धकार ) जब चन्द्रमा पर पड़ती (२) काल-निर्णय (३) कर्मविपाक तथा (४) लक्षण है तब उसे चन्द्रग्रहण कहते हैं। इस पर्व पर नदीस्नान समुच्चय । 'बिलियोथिका इंडिका' सीरीज में इसका तथा विशेष जप-दान-पुण्य करने का विधान है । यह प्रकाशन चार भागों तथा ६००० पृष्ठों में हुआ है । दूसरी धार्मिक कृत्य नैमित्तिक माना गया है। और तीसरी जिल्द में दो दो भाग हैं । चौथी जिल्द प्राय चन्द्रनक्षत्रवत -सोमवार युक्त चैत्र को पूर्णिमा को इस श्चित्त पर है । यह सन्देह किया जाता है कि यह हेमाद्रि को व्रत का अनुष्ठान होता है। यह वार व्रत है। इसमें रचना है अथवा नहीं । अभी सम्पूर्ण ग्रन्थ का मुद्रण नहीं चन्द्रपूजन का विधान है । आरम्भ से सातवें दिन चन्द्रमा हो पाया है । यह धर्मशास्त्र का एक विशाल एवं महत्त्व को रजतप्रतिमा किसी कांसे के बर्तन में रखकर उसकी पूर्ण ग्रन्थ है । दे० पा० वा० काणे : धर्मशास्त्र का इति पूजा की जाती है। चन्द्रमा का नामोच्चारण करते हुए हास, भाग १। २८ या १०८ पलाश की समिधाओं से घी तथा तिल के चतुर्वेद स्वामी-ये ऋकसंहिता के एक भाष्यकार हैं, साथ होम करना चाहिए। जिनका उल्लेख सायण ने अपने विस्तृत ऋग्वेदभाष्य में चन्द्रभागा-एक नदी और तीर्थ प्राचीन काल में चिनाव किया है। नदी ( पंजाब ) को चन्द्रभागा कहते थे । जहाँ यह सिन्धु चतुःश्लोकी भागवत-महाराष्ट्र भक्त एकनाथ (१६०८ ई०) में मिलती थी वहाँ चन्द्रभागातीर्थ था। यहाँ पर कृष्ण के द्वारा लिखित भागवत का अत्यन्त संक्षिप्त रूप । इसके भीतर चार श्लोकों में ही भागवत की सम्पूर्ण कथा पुत्र साम्ब ने सूर्यमन्दिर की स्थापना की थी। मुसलमानों द्वारा इस तीर्थ के नष्ट कर देने पर उत्कल में इस तीर्थ वर्णित है। मूल संस्कृत में चतुःश्लोकी भागवत का उपदेश नारा का स्थानान्तरण हुआ। इस नाम की एक छोटी नदी समुद्र (बंगाल की खाड़ी) में मिलती है । वहीं नवीन चन्द्रभागा यण ने ब्रह्मा को सुनाया था, जो भागवत पुराण के द्वितीय तीर्थ स्थापित हुआ और कोणार्क का सूर्यमन्दिर बना । स्कन्ध में उद्धृत है। कोणार्क का सूर्यमन्दिर धार्मिक स्थापत्य का अद्भुत चन्द्र-चन्द्र या चन्द्रमा सौर मण्डल में पृथ्वी का उपग्रह नमूना है। है । ऋग्वेद के पुरुषसूक्त के अनुसार यह विराट् पुरुष के मन से उत्पन्न हुआ। इसलिए यह मन का स्वामी है।। चन्द्रमा-पृथ्वी का उपग्रह । वेद में इसकी उत्पत्ति का वर्णन चन्द्रकलातन्त्र-दक्षिणाचार के अनुयायी विद्यानाथ ने, इस प्रकार पाया जाता है : जिन्हें लक्ष्मीधर भी कहते हैं, 'सौन्दर्य लहरी' के ३१ वें चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत । श्लोक की टीका में ६४ तन्त्रों की तालिका के साथ-साथ श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ।। दो और सूचियाँ दी है। प्रथम में ८ मिश्र तथा द्वितीय में [चन्द्रमा उस पुरुष के मनस् अर्थात् ज्ञानस्वरूप ५ शुभ तन्त्र हैं। उनके अन्तर्गत 'चन्द्रकलातन्त्र' मिश्र सामर्थ्य से, तथा उसके चक्षुओं अर्थात् तेजस्वरूप से सूर्य तन्त्र है। उत्पन्न हुआ । ....."] चन्द्रप-कुरुक्षेत्रान्तर्गत ब्रह्मसर सरोवर के मध्य में बड़े चन्द्रवत-वराहपराण के अनुसार यह व्रत प्रत्येक द्वीप पर यह अति प्राचीन पवित्र स्थान है। यह कूप पूर्णिमा को पन्द्रह वर्ष तक किया जाता है । इसके अनुष्ठान कुरुक्षेत्र के चार पवित्र कुओं में गिना जाता है । कप के साथ एक मन्दिर है। कहा जाता है कि युधिष्ठिर ने चन्द्रषष्ठी-भाद्र कृष्ण षष्ठी को चन्द्रषष्ठी कहते हैं। महाभारत युद्ध के बाद यहाँ पर एक विजयस्तम्भ बनवाया कपिला षष्ठी के समान इसका अनुष्ठान किया जाता है। था । वह स्तम्भ अब यहाँ नहीं है । षष्ठी के दिन उपवास का विधान है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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