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________________ गुरुकुलजीवन-गुह २३७ गुरुकुलजीवन-द्विज या ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों को जीवन गुरु अङ्गद ने नानक के पदों के लिए उस लिपि को स्वीकी पहली अवस्था में अच्छे गृहस्थजीवन की शिक्षा लेना कार किया जो ब्राह्मी से निकली थी और पंजाब में उनके अनिवार्य था । यह शिक्षा गुरुकुलों में जाकर प्राप्त की जाती समय में प्रचलित थी । गुरुवाणी उसमें लिखी गयी, इसथी, जहाँ वेदादि शास्त्रों के अतिरिक्त क्षत्रिय शस्त्रास्त्र लिए इसका नाम 'गुरुमुखी' पड़ा । गया । वास्तव में 'गुरुमुखी' विद्या और वैश्य कारीगरी, पशुपालन एवं कृषि का कार्य भी लिपि का नाम है, परन्तु भूल से लोग इसे भाषा भी सीखता था। गुरुकुल का जीवन अति त्यागपूर्ण एवं तपस्या समझ लेते हैं । इसकी वही वर्णमाला है जो संस्कृत और का जीवन था। गुरु की सेवा, भिक्षाटन पर जीविका, भारत की अन्य प्रादेशिक भाषाओं की। इस समय पंजाबी गुरु के पशुओं का चारण, कृषिकर्म करना, समिधा जुटाना भाषा को सिवख लोग इसी लिपि में लिखते हैं । आदि कर्म करने के पश्चात् अध्ययन में मन लगाना पड़ता गुरुरत्नमालिका-यह सदाशिव ब्रह्मेन्द्र द्वारा रचित एक था । धनी, निर्धन सभी विद्यार्थियों का एक ही प्रकार का ग्रन्थ है। जीवन होता था। इस तपस्थलों से निकलने पर स्नातक गुरुव्रत-अनुराधा नक्षत्र युक्त गुरुवार को इस व्रत का समाज का सम्माननीय सदस्य के रूप में आदृत होता एवं ____ अनुष्ठान होता है । सुवर्ण पात्र में रखी हुई बृहस्पति ग्रह विवाह कर गृहस्थाश्रम का अधिकारी बनता था। की सुवर्णमूर्ति के पूजन का विधान है। इसमें सात नक्तों का आचरण किया जाता है । दे० देमाद्रि, २.५०९।। गुरुग्रन्थसाहब-(१) सिक्ख संप्रदाय का सर्वोत्तम धार्मिक गुरुस्थल जङ्गम-'जङ्गम' शब्द का प्रयोग दो अर्थों में ग्रन्थ, जिसकी पूजा गुरुमूर्ति के रूप में की जाती है । इस होता है-पहला प्रयोग जाति के सदस्य के लिए । पवित्र ग्रन्थ का अखण्ड पाठ करने की रीति सिक्खों ने ही दूसरा अभ्यासी के अर्थ में। अभ्यासी अर्थवाचक जङ्गम प्रचलित की। इसमें सिक्खों के दस गुरुओं की वाणी के पूज्य होता है । ऐसे जङ्गम लिङ्गायतों के गुरु होते हैं साथ ही कबीर, नामदेव, रविदास, मीरा, तुलसी आदि तथा किसी न किसी मठ से सम्प्रदाय की शिक्षा व दीक्षा भक्तों की चुनी हुई वाणियाँ भी संकलित हैं और यह ग्रहण करते हैं । इन्हें आजीवन ब्रह्मचारी रहना चाहिए । गुरुमुखी लिपि में लिखा गया है। ये दो प्रकार के होते हैं-गुरुस्थल जङ्गम और विरक्त (२) इसी नाम का गरीबदासी सम्प्रदाय का भी एक जङ्गम । गुरुस्थलों को सभी पारिवारिक संस्कारों धार्मिक ग्रन्थ है, जिसे संत गरीबदास (१७१७-८२ ई०)। (उत्सवों) एवं गुरु का कार्य करने की शिक्षा दी जाती है । गुर्वष्टमी व्रत-गुरुवारयुक्त भाद्रपद मास की अष्टमी को ने में रचा। इसमें २४,००० पद है । दे० 'गरीबदास'। गुव ___ इस व्रत का अनुष्ठान होता है । सुवर्ण अथवा रजत की गुरुदेव-पन्द्रहवी शती के वीरशैव सम्प्रदाय के एक आचार्य, गुरु अर्थात् बृहस्पति देवता की प्रतिमा की पूजा का जिन्होंने 'वीरशैव आचार प्रदीपिका' की रचना की। विधान है। गुरुदेव स्वामी-ये 'आपस्तम्ब सूत्र' के एक भाष्यकार थे । गुरुद्वारा-सिक्खों का पूजास्थान गुरुद्वारा कहलाता है। गुह-(१) कार्तिकेय का एक पर्याय । महाभारत (३.२२८) __ में शिव ( रुद्र ) के पुत्र को गुह कहा गया है : पूजा में 'ग्रन्थ साहब' के कुछ निश्चित भागों का पाठ तथा रुद्रसूनुं ततः प्राहुर्गुहं गुरुमतांवर । ग्रन्थ की पूजा होती है। सिक्ख गुरुद्वारों में अमृतसर का अर्थनमभ्ययुः सर्वा देवसेनाः सहस्रशः । स्वर्णमन्दिर प्रमुख और दर्शनीय है। गुरु नानक तथा अस्माकं त्वं पतिरिति ब्रुवाणाः सर्वतो दिशः ।। अन्य गुरुओं के जीवन से सम्बन्ध रखने वाले प्रमुख स्थानों [ रुद्र के पुत्र का नाम गुह हुआ और देवताओं की पर गुरुद्वारे बने हुए हैं, जो सिक्खों के तीर्थस्थान हैं। समस्त सेना ने इनको अपना नाथक मान लिया।] गुरुप्रवीप-वेदान्ताचार्य अद्वैतानन्द स्वामी (सं० १२०६ से । (२) वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान् राम १२५५) के तीन ग्रन्थों में एक ग्रन्थ का नाम 'गुरुप्रदीप' है। के सखा निषादराज का नाम गुह था। यह शृङ्गवेरपुर गुरुमुखी-उस लिपि का नाम जिसमें सिक्खों का धर्मग्रन्थ के मुख्य गंगातट का शासक था। राम और भरत का 'ग्रन्थ साहब' लिखा हुआ है । गुरु नानक के उत्तराधिकारी इसने बड़ा आतिथ्य किया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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