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________________ गरीबदास-रुड २२७ के तट पर अपना निवासस्थान बनाया । वहाँ यह भी जाता है और फल्गु नदी में स्नान करके उनका तर्पण करता बताया गया है कि बुद्धगया में वे कश्यप ऋषि के उरुबिल्व है। इस सन्दर्भ में गया के गदाधर (विष्णु) और गयशिर नामक आश्रम में गये थे, जहाँ उन्हें सम्बोधि की प्राप्ति ____ का दर्शन उसके लिए आवश्यक है। लिखितस्मृति के हुई। विष्णुधर्मसूत्र (८५.४०) के अनुसार विष्णुपद गया अनुसार यदि कोई भी किसी व्यक्ति के नाम से गयशिर में ही स्थित है । वह श्राद्ध के लिए सबसे पवित्र स्थल है। में पिण्डदान करे तो नरक में स्थित व्यक्ति स्वर्ग को और इसी प्रकार उससे यह भी पता चलता है कि 'समारोहण' स्वर्गस्थित व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है। कूर्मपुराण में नाम का भी कोई स्थल गया में फल्गु नदी के तट पर युक्ति तो यह है कि मनुष्य को कई संतानों की कामना स्थित है। करनी चाहिए जिससे उनमें से यदि कोई एक भी गया ___ अनुशासनपर्व में अश्मपृष्ठ (प्रेतशिला), निरविन्द पर्वत जाकर श्राद्ध करे तो पितरों को मुक्ति मिल जायेगी और तथा क्रौञ्चपदी तीनों को गया का पवित्र स्थल माना गया वह स्वयं मोक्ष को प्राप्त होगा। मत्स्यपुराण (२२. ४. ६) है, किन्तु वनपर्ण में इनका उल्लेख नहीं है। फिर भी में गया को पितृतीर्थ कहा गया है। इनको वनपर्व में वर्णित विष्णुपद, गयशिर तथा समारो- गयामाहात्म्य-वायुपुराण में गयामाहात्म्य का विस्तारपूर्वक हण स्थलों से अतिरिक्त समझना चाहिए। अश्मपृष्ठ में वर्णन किया गया है। इसके अन्तिम आठ अध्याय गयापहली ब्रह्महत्या का अपराधी शुद्ध हो जाता है, निरविन्द ___ माहात्म्य पर ही हैं। यह अलग ग्रन्थ के रूप में भी पर दूसरी का तथा क्रौञ्चपदी पर तीसरी ब्रह्महत्या का प्रसिद्ध है, जो वायुपुराण से ही लिया गया है। दे० अपराधी भी बिशुद्ध हो जाता है। 'गया'। डा. कीलहान के अनुसार राजकुमार यक्षपाल ने भग- गरीबदास-ये महात्मा (१७१७-८२ ई०) छीड़ानी या वान् मौलादित्य तथा अन्य देवताओं की मूर्तियों के लिए चुरनी (रोहतक जिला) गाँव में रहते थे । इनके 'गुरुग्रन्थ' मन्दिर बनवाये। वहीं एक उत्तरमानस नामक पुष्कर अथवा में २४,००० पंक्तियाँ है। इनका सम्प्रदाय आज भी प्रचझील का भी निर्माण कराया । उसने गया के अक्षयवट के लित है, किन्तु इनका एक ही मठ है तथा साधारण जनता पास एक सत्र (भोजनालय) भी बनवाया था । डा० वेणी- इनकी शिष्यता या सदस्यता नही प्राप्त कर सकती । इनके माधव बरुआ के अनुसार पालशासक नयपाल के अभिलेखों साधु केवल द्विज ही हो सकते हैं। इनके मतावलम्बियों से यह पता चलता है कि उत्तर मानस का निर्माण १०४० को गरीबदासी कहते हैं। निर्गुण-निराकार-उपासक यह ई० के आसपास हुआ था। इस प्रकार अनुमानतः गया का पंथ भी अनेक पंथों की तरह कबीरपंथ से प्रभावित है। माहात्म्य ११वीं शताब्दी के बाद ही अधिक बढ़ा होगा। गरुड-एक पुराकल्पित पक्षी, जिसका आधा शरीर पक्षी किन्तु वायुपुराण (७७.१०८) से लगता है कि उत्तरमानस और आधा मनुष्य का है। पुराणकथाओं में गरुड विष्णु का निर्माण ८वीं या ९वीं शताब्दी तक अवश्य हो गया के वाहन के रूप में वर्णित है । विष्णु सूर्य के ही सर्वव्यापी होगा । वस्तुतः गया का माहात्म्य कब से बढ़ा यह विवा- रूप हैं जो अनन्त आकाश का तीव्रता से चक्कर लगाते दास्पद प्रश्न है। महाभारत और स्मृतियाँ भिन्न-भिन्न मत- हैं। इसलिए इनके लिए एक शक्तिमान् और द्रुतगामी मतान्तरों से युक्त है । वनपर्न (८७) में यह उल्लेख है कि वाहन की आवश्यकता थी। विष्ण के वाहन के रूप में आठ पुत्रों में से यदि कोई एक भी गया जाकर पितृपिण्ड गरुड की कल्पना इसी का प्रतीक है। इस सम्बन्ध में यज्ञ करे तो पितर लोग प्रतिष्ठित और कृतज्ञ होते हैं। उल्लेख करना अनुचित न होगा कि स्वयं सूर्य का सारथि उसमें आगे यह भी कहा गया है कि फल्गु नामक पवित्र अरुण (लालिमा) है, जो गरुड का अग्रज है। नदी, गयशिर पर्वत तथा अक्षयवट ऐसे स्थल हैं जहाँ पौराणिक कथाओं के अनुसार गरुड दक्षकन्या विनता पितरों को पिण्ड दिया जाता है। गया में पूर्वजों या पितरों और कश्यप के पुत्र हैं, इसीलिए 'वैनतेय' कहलाते हैं । का श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं। फलतः उस व्यक्ति विनता का अपनी सपत्नी कद्रू से वैर था, जो सपो की को भी जीवन में सुख मिलता है । अविस्मृति (५५.५८) माता है । अतः गरुड भी सो के शत्र हैं। गरुड जन्म से के अनुसार पुत्र अपने पितरों के हित के लिए ही गया ही इतने तेजस्वी थे कि देवताओं ने उनका अग्नि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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