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________________ १० छोड़ दिया जाता है । इसके अनन्तर उदयनीय और उदवसनीय (४१) कार्य किये जाते हैं । इन्हें पाँचवें दिन पूरी रात्रि तक करना चाहिए। इनके समाप्त होने पर अग्निष्टोम याग की भी समाप्ति हो जाती है। अग्निस्वामी ( भाष्यकार ) -- मनु-रचित 'मानव श्रौतसूत्र' पर भाष्य के लेखक मानव श्रौतसूत्र के दूसरे भाग्यकार हैं। बालकृष्ण मिश्र एवं कुमारिल भट्ट । अग्निहोत्र - एक दैनिक यज्ञ । यह दो प्रकार का होता हैएक महीने की अवधि तक करने योग्य और दूसरा जीवन पर्यन्त साध्य दूसरे की यह विशेषता है कि अग्नि में जीवन पर्यन्त प्रतिदिन प्रातः सायं हवन करना चाहिए । यज्ञ करने वाले का इसी अग्नि से दाह संस्कार भी होता है । इसका क्रम स्मृति में इस प्रकार है : विवाहित ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, जो काने, बहरे, अन्धे एवं पङ्गु नहीं हैं, उन्हें वर्णक्रम से वसन्त, ग्रीष्म और शरद ऋतु में अग्नि को आधान करना चाहिए। अग्नि संख्या में तीन हैं - (१) गार्हपत्य, (२) दक्षिणाग्नि और (३) आहवनीय, इनकी स्थापना निश्चित वेदी पर विभिन्न मन्त्रों द्वारा हो जाने पर सायं तथा प्रातः अग्निहोत्र करना चाहिए । अग्निहोत्र होम का ही नाम है । इसमें दस द्रव्य होते हैं(१) दूध, (२) दही, (३) लप्सी, (४) घी, (५) भात, (६) चावल, (७) सोमरस, (८) मांस, (९) तेल और (१०) उरद कलियुग में दूध, चावल, लप्सी के द्वारा एक ऋत्विज अथवा यजमान के माध्यम से प्रतिदिन होम का विधान है । अमावस की रात्रि में लप्सी द्वारा यजमान को होम करना चाहिए जिस दिन अग्नि की स्थापना की जाती है उसी दिन प्रथम होम प्रातः सायं आरम्भ करना चाहिए। उस दिन प्रातः सो आहुतियों के होम का देवता सूर्य एवं सायं काल अग्नि होता है। अग्न्याधान के पश्चात् प्रथम अमावस्या को दर्श और पूर्णमासी को पौर्णमास याग का आरम्भ करना चाहिए । इसमें छः प्रकार के याग होते हैं पूर्णमासी के दिन तीन और अमावस के दिन तीन । पूर्णमासी के (१) आग्नेय, (२) अग्निषोमीय और (३) उपांशु याग हैं। अमावस के (१) आग्नेय, ( २ ) ऐन्द्र और ( ३ ) दधिपय याग होते हैं । दर्श - पूर्णमास यज्ञ भी जीवनपर्यन्त करना चाहिए । इसमें भी यज्ञ के प्रतिबन्धक दोषों से रहित तीन वर्णों को सपत्नीक होकर यज्ञ करने का अधिकार है । सामान्यतः पर्व की प्रतिपदा को यज्ञ का आरम्भ करना चाहिए । Jain Education International अग्निस्वामी अम्वाधान जिस यजमान ने सोमयाग नहीं किया हो उसे पूर्णमासी के दिन अग्निकोण में पुरोडाश याग और ऐन्द्र याग करना चाहिए जो यजमान सोमयाग कर चुका है उसे पूर्णमासी के दिन अग्निकोण में घृतउपांशु याग और अग्निषोमीय पुरोडाश याग करना चाहिए। अमावस्या के दिन आग्नेय पुरोडाश याग, ऐन्द्र-पयो-याग, ऐन्द्र-दधि-याग ये तीन याग करने चाहिए। इसमें चार ऋत्विज होते हैं : (१) अध्वर्यु, (२) ब्रह्मा (३) होता और (४) आनी । यजुर्वेद-कर्म करने वाला 'अध्वर्यु', ऋक्, यजु साम इन तीनों का कर्म करनेवाला 'ब्रह्मा' और ऋग्वेद के कर्म करनेवाला 'होता' है । आग्नीध्र प्रायः अध्वर्यु का ही अनुयायी होता है, उसी की प्रेरणा से कार्य करता है । पुरोडाश चावल अपना यय का बनाना चाहिए। अग्निहोत्र के समान यहाँ भी जिस द्रव्य से यज्ञ का आरम्भ करे उसी द्रव्य से जीवनपर्यन्त करते रहना चाहिए । अग्निहोत्री - - ( १ ) नियमित रूप से अग्निहोत्र करनेवाला | ब्राह्मणों की एक शाखा की उपाधि भी अग्निहोत्री है। (२) कात्यायन सूत्र के एक भाष्यकार, जिनका पूरा नाम अग्निहोत्री मिश्र है। अग्न्याधान - ( अग्नि के लिए आधान ) । वेदविहित अग्निसंस्कार, अग्निरक्षण, अग्निहोत्र आदि इसके पर्याय हैं । प्राचीन भारत में जब देवताओं की पूजा प्रत्येक गृहस्थ अग्निस्थान में करता था तब यह उसका पवित्र कर्त्तव्य होता था कि वेदी पर पवित्र अग्नि की स्थापना करें। यह कर्म 'अग्न्याधान' अर्थात् पवित्र अग्निस्थापना के दिन से प्रारम्भ होता था । अग्न्याधान करने वाला गृहस्थ चार पुरोहित चुनता था तथा गार्हपत्य एवं आहवनीय अग्नि के लिए वैदिकाए बनवाता था । गार्हपत्य अग्नि के लिए वृत्त एवं आहवनीय के लिए वर्ग चिह्नित किया जाता था । दक्षिणाग्नि के लिए अर्द्धवृत्त खींचा जाता था, यदि उसकी आवश्यकता हुई तब अध्वर्यु घर्षण द्वारा या गाँव से तात्कालिक अग्नि प्राप्त करता था। फिर पञ्च भूसंस्कारों से पवित्र स्थान पर गार्हपत्य अग्नि रखता था तथा सायंकाल 'अरणी' नामक लकड़ी के दो टुकड़े यश करनेवाले गृहस्थ एवं उसकी स्त्री को देता था, जिसके घर्षण से आगामी प्रातः वं आह्वनीय अग्नि उत्पन्न करते थे। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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