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________________ गणेशकुण्ड-गन्धवत २२५ भगवान् गणपति की अनेक कथाएँ दी गयी है। गणेशकुण्ड-करवी स्टेशन से चित्रकूट जाते समय मार्ग में करवी संस्कृत पाठशाला मिलती है। यहाँ से लगभग ढ़ाई मील दक्षिण-पूर्व पगडण्डी के रास्ते जाने पर गणेशकुण्ड नामक सरोवर तथा प्राचीन मन्दिर मिलते हैं। अब ये सरोवर तथा मन्दिर जीर्ण दशा में अरक्षित हैं। गणेशखण्ड-ब्रह्मवैवर्तपुराण के चार खण्डों-ब्रह्मखण्ड, प्रकृतिखण्ड, गणेशखण्ड और कृष्णजन्मखण्ड में से एक । गणेशखण्ड में गणेश के जन्म, कर्म तथा चरित का विस्तृत वर्णन है। इसमें गणेश कृष्ण के अवतार के रूप में वर्णित हैं। गणेशचतुर्थीव्रत-भाद्र शुक्ल चतुर्थी को इस व्रत का प्रारम्भ होता है । एक वर्षपर्यन्त इसका आचरण होना चाहिए । इसमें गणेशपूजन का विधान है। हेमाद्रि, १.५१० के अनुसार चतुर्थी के दिन गणेशपूजन का विधान वैश्वानरप्रतिपदा की तरह ही होना चाहिए । दे० 'गणपतिचतुर्थी' । गणेशयामलतन्त्र-कुलचूडामणितन्त्र में उद्धृत ६४ तन्त्रों की सूची में आठ यामल तन्त्र सम्मिलित हैं। 'यामल' शब्द यमल (युग्म) से गठित है तथा विशेष देवता तथा उसकी शक्ति के ऐक्य का सूचक है। गणेशयामलतन्त्र उन आठों में से एक है। गणेशस्तोत्र-वैष्णवसंहिताओं की तालिका में गणेशसंहिता का उल्लेख पाया जाता है, जो गाणपत्य सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। गणेशस्तोत्र इसी का एक अंश है, जिसमें गणेश की स्तुतियों का संग्रह है। गणोद्देशदीपिका-यह चैतन्य सम्प्रदाय के आचार्य रूप गोस्वामी कृत १६वीं शती का एक संस्कृत ग्रन्थ है। इसमें चैतन्य महाप्रभु के साथियों को गोपियों का अवतार कहा गया है। गण्डको-हिमालय से प्रवाहित होनेवाली उत्तर भारत की एक प्रसिद्ध नदी। इसका प्राचीन नाम सदानीरा था। दूसरा नाम नारायणी भी है, क्योंकि इसके प्रवाहवेग द्वारा गोलाकार होनेवाले पाषाणखण्डों से नारायण (शालग्राम) निकलते हैं । परवर्ती स्मृतियों के अनुसार, गण्डक्याश्चैकदेशे च शालग्रामस्थलं स्मृतम् । पाषाणं तद्भवं यत्तत् शालग्राममिति स्मृतम् ।। वराहपुराण (सोमेश्वरादि लिङ्गमहिमा, अविमुक्तक्षेत्र, त्रिवेण्यादिमहिमा नामाध्याय) में शालग्राम-उत्पत्ति का विस्तृत वर्णन पाया जाता है : गण्डक्यापि पुरा तप्तं वर्षाणामयुतं विधो । शीर्णपर्णाशनं कृत्वा वायुभक्षाप्यनन्तरम् ।। दिव्यं वर्षशतं तेपे विष्णु चिन्तयती सदा । ततः साक्षाज्जगन्नाथो हरिभक्तजनप्रियः ॥ उवाच मधुरं वाक्यं प्रीतः प्रणतवत्सलः । गण्डकि त्वां प्रसन्नोऽस्मि तपसा विस्मितोऽनघे ।। अनवच्छिन्नया भक्त्या वरं वरय सुव्रते । ततो हिमांशो सा देवी गण्डकी लोकतारिणी ।। प्राञ्जलिः प्रणता भूत्वा मधुरं वाक्यमब्रवीत् । यदि देव प्रसन्नोऽसि देयो मे वांछितो वरः ।। मम गर्भगतो भूत्वा विष्णो मत्पुत्रतां व्रज । ततः प्रसन्नी भगवान् चिन्तयामास गोपते ।। गण्डकीमवदत् प्रीतः शृण देवि वचो मम । शालग्रामशिलारूपी तव गर्भगतः सदा ॥ तिष्ठामि तव पुत्रत्वे भक्तानुग्रहकारणात् । मत्सान्निध्याद् नदीनां त्वमतिश्रेष्ठा भविष्यसि ।। दर्शनात् स्पर्शनात् स्नानात् पानाच्चैवावगाहनात् । हरिष्यसि महापापं वाङ्मनःकायसम्भवम् । [ गण्डकी ने दीर्घकाल तक विष्णु की आराधना की, विष्णु ने उसको दर्शन देकर वर माँगने को कहा । गंडकी ने वर माँगा कि आप मेरे गर्भ से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ करें। भगवान् बोले कि शालग्राम शिलारूप में मैं तुमसे उत्पन्न होता रहूँगा; इससे तुम सभी नदियों में पवित्र एवं दर्शन-पान-स्नान से अमित पुण्यदायिनी हो जाओगी।] गदाधर (भाष्यकार)-गदाधर ने कात्यायनसूत्र (यजु वेदीय) तथा पारस्करगृह्यसूत्र (यजु०) पर भाष्य लिखे हैं। पारस्करगृह्यसूत्र वाला गदाधर का भाष्य कर्मकाण्ड पर प्रमाण माना जाता है। भाष्य और निबन्ध का यह मिश्रण है। गद्यत्रय-आचार्य रामानुजकृत एक ग्रन्थ, जिसकी टीका वेङ्कटनाथ ने लिखी है । इसमें विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त (तत्त्वत्रय, चित्-अचित-ईश्वर) का प्रतिपादन किया गया है। गन्धव्रत-पूर्णिमा के दिन इस व्रत का आरम्भ होकर एक वर्षपर्यन्त आचरण होता है। पूर्णिमा को उपवास का विधान है । वर्ष की समाप्ति के पश्चात् सुगन्धित पदार्थों से निर्मित देवप्रतिमा किसी ब्राह्मण को दान की जाती है। दे० हेमाद्रि, २.२४१ । २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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