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________________ २१० कोणार्क वाला सूर्यमन्दिर सन् १२५० में बना और नया चन्द्रभागातीर्थ स्थापित हुआ। इस मन्दिर में भास्कर्व कला परम्परा का सम्पूर्ण वैभव दृष्टिगोचर होता है। किन्तु यह आज भग्नावस्था में है। भारत के लगभग सभी सूर्यमन्दिरों की यही अवस्था है। वास्तव में सौर मत का प्रभाव समाप्त होता गया और उचित संरक्षण न मिलने से यह मन्दिर भी ध्वस्त हो गया है । इसका जगमोहन मात्र आज खड़ा है । वर्ष में एक बार यहाँ देश के कोने-कोने से बचे-खुचे सूर्योपासक इकट्ठे होकर इस स्थान मन्दिर एवं वातावरण को प्राणवान् कर देते हैं । यह तीर्थ भी चन्द्रभागा के नाम से प्रसिद्ध है । यहाँ पर चन्द्रभागा नदी समुद्र में मिलती है । परन्तु स्पष्टतः यह पुराने तीर्थ (चन्द्रभागा या चेनाब और सिन्धु के संगम) का स्थानान्तरण है । 3 कोणार्क का सूर्यमन्दिर अपनी वास्तुकला लिए प्रसिद्ध अपनी वास्तुकला लिए प्रसिद्ध है। यहां पर सूर्य की अनेक सर्जनात्मक क्रियाएँ प्रतीकात्मक रूप से विविध आकारों में अंकित हैं । कोविलपुराण - यह शैव सिद्धान्त की तमिलशाखा का चौदहवीं शती में निर्मित एक ग्रन्थ है । कोलाहल पण्डित - यामुनाचार्य के समसामयिक पाण्डयराज का सभापण्डित । राजा इसके प्रति अत्यन्त श्रद्धाभाव रखता था । जो पण्डित कोलाहल से शास्त्रार्थ में हार जाते थे, उन्हें राजा की आज्ञा के अनुसार दण्डस्वरूप कुछ वार्षिक कर कोलाहल पण्डित को देना पड़ता था । कोलाहल सम्राट् की तरह अधीनस्थ पण्डितों से कर वसूलता था। यामुनाचार्य के गुरु भाष्याचार्य भी उसे कर दिया करते थे । एक बार भाष्याचार्य ने दो तीन वर्ष तक कर नहीं दिया । कोलाहल का एक शिष्य कर माँगने आकर भाष्याचार्य को अनुपस्थित पा अनापन्यानाप बक्ने लगा । ऐसी स्थिति में यामुन ने, जो १२ वर्ष के बालक थे, कोलाहल से शास्त्रार्थ करने को कहा । शिष्य ने जाकर कोलाहल से कहा। उधर राजा-रानी को भी पता चला। दोनों में तर्क हुआ। रानी ने कहा कि यामुन जीतेगा यदि न जीतेगा तो मैं आपकी क्रीतदासी की दासी होकर रहेंगी। राजा ने कहा कोलाहल जीतेगा यदि न जीतेगा तो मैं अपना आधा राज्य यामुन को दे दूंगा । रानी की बात रह गयी, यामुन जीत गये। कोलाहल पण्डित हार Jain Education International कोविलपुराण- कोयुमी गया। यामुन को राजा ने सिंहासन पर बैठा दिया। दे० ' यामुनाचार्य' । कोष -उपनिषदों में आत्मा के पाँच कोष बताये गये हैं : १. अन्नमय कोष (स्थूल शरीर, जो अन्न से बनता है) २. प्राणमय कोष (शरीर के अन्तर्गत वायुतत्त्व ) ३. मनोमय कोष ( मन की संकल्प-विकल्पात्मक क्रिया) ४. विज्ञानमय कोष (बुद्धि की विवेचनात्मक क्रिया) ५. आनन्दमय कोष ( आनन्द की स्थिति ) । ये आत्मा के आवरण माने गये हैं । इनके क्रमशः भेदन से जीवात्मा अपना स्वरूप पहचानता है । आत्मा इन सबका आधार और इनसे परे है । दे० 'आत्मा' | पञ्चदशी ( ३.१-११ ) में इन कोषों का विस्तृत वर्णन है । कोसल ( कोशल ) - जनपद का नाम, जिसकी राजधानी अयोध्या थी (दे० 'अयोध्या' ) वाल्मीकि रामायण । ( १.४.५ ) में इसका उल्लेख है : कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान् । निविष्ट: सरपूतीरे प्रभूत धनधान्यवान् ।। [ कोसल नामक महान् जनपद विस्तृत और सुखी था । यह सरयू के किनारे स्थित और प्रभूत धन-धान्य से युक्त था ।] कहीं-कहीं अयोध्या नगरी के लिए ही इसका प्रयोग हुआ है। कौस्त — शतपथ ब्राह्मण ( ४.६.१.१३ ) में 'कौकूस्त' एक यज्ञ में पुरोहितों को दक्षिणा देनेवाला कहा गया है। काण्व शाखा इस शब्द का पाठ 'कौक्थस्त' के रूप में करती है । कौत्स - यह एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम है । - कौथुमी — सामवेद की एक शाखा । सामसंहिता के सभी मन्त्र गेय हैं। जिन यज्ञों में सोमरस काम में लाया जाता या उनमें (अर्थात् सोमयागों में ) उद्गाताओं का यह कर्तव्य था कि वे सामगान करें ब्रह्मचारियों को आचार्य इस संहिता के छन्दों के सस्वर पाठ करने की विधि सिखाते थे, तथा वे इसे बार-बार गाकर कंठस्थ भी कर लेते थे। उन्हें यह भी शिक्षा दी जाती थी कि किस वंश में किस ऋचा या छन्द का गान होगा। कौथुमीसंहिता सामवेद की तीन शाखाओं में से एक है। यह शाखा उत्तर भारत में प्रचलित है, जबकि 'जैमिनीय' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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