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________________ २०८ कैयट-कैगल्यसार की परंपरा में ये अत्यन्त प्रौढ़ विद्वान् माने जाते हैं। 'आस' निवास किया जाता है ( केलीनां समूहः कैलम्, दे० 'केशव भट्ट'। कैलेनास्यते अत्र) । यहाँ शिव पार्वती के साथ निवास करते कयट-शब्दाद्वैतवाद के सबसे प्रथम दार्शनिक व्याख्याता हैं और उनके गण इतस्ततः किलोल किया करते हैं। भर्तहरि थे। उनके पश्चात् भर्तमित्र हुए, जिनका स्फोट भागवत पुराण में सुमेरु पर्वत के पूर्व में जठर और पर 'स्फोटसिद्धि' नामक ग्रन्थ अब उपलब्ध हो गया है। देवकूट, पश्चिम में पवन और पारियात्र तथा दक्षिण में इनके बाद इस सिद्धान्त का पूर्ण वर्णन पुण्यराज एवं कैयट कैलास और करवीर पर्वत स्थित कहे गये हैं। के व्याख्यानिबन्धों में पाया जाता है, जो क्रमशः 'वाक्य- कैलासनाथ-कैलास क्षेत्र के स्वामी, कुबेर, जो यक्षों के पदीय' और 'पातञ्जलि महाभाष्य' पर है। कैयट का राजा और धन के देवता हैं । इनकी राजधानी अलकापुरी समय ११वीं शताब्दी है और ये कश्मीरदेशीय थे। कैलास की द्रोणी में बसी हई और मानवों के लिए अगोचर इनकी टीका के बल पर ही पश्चात्कालीन विद्वान् महा- है। कैलास के शिरोभाग पर शंकरजी का निवास है, अतः भाष्य को समझने में समर्थ हो सके। टीका के उपक्रम में वे भी कैलासनाथ कहलाते हैं। इनका कहना है : कैलाससंहिता-शिवपुराण के सात खण्ड हैं : १. विश्वेश्वरभाष्याब्धिः क्वातिगम्भीरः क्वाहं मन्दमतिस्तथा । संहिता, २. रुद्रसंहिता, ३. शतरुद्रसंहिता, ४. कोटितथापि हरिबद्धन सारेण ग्रन्थसेतुना । रुद्रसंहिता, ५. उमासंहिता, ६. कैलाससंहिता एवं क्रममाणः शनैः पारं तस्य प्राप्तास्मि पंगुवत् ॥ ७. वायवीय संहिता (पूर्व एवं उत्तर दो खण्ड युक्त)। महाभाष्य की दुर्बोधता को लेकर श्री हर्ष जैसे महा- कैलाससंहिता में कुल २३ अध्याय हैं । दे० 'शिवपुराण' । कवि ने 'नैषधचरित' में एक अद्भूत उपमा दी है। कैवद्यदीपिका-यह मानभाउ संप्रदाय का एक ग्रन्थ है, जो उन्होंने नल की राजधानी शत्रुओं के लिए वैसी ही अभेद्य संस्कृत में रचा गया है। 'मानभाउ' या महानुभाव मत बतलायी है जैसी पंडितों के लिए महाभाष्य की फक्किकाएँ महाराष्ट्र की ओर प्रचलित है। अबोध्य थीं। कैयट ने इन्हें सूबोध्य बना दिया । कैवर्त-एक वर्णसंकर जाति । ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार कैलास-हिमालय का सर्वाधिक पवित्र शिखर । मानसरोवर क्षत्रिय पुरुष और वैश्य स्त्री से उत्पन्न संतान इस जाति की से कैलास लगभग २० मील दूर है। पूरे कैलास की होती है । इसके पर्याय हैं दाश, धीवर, दाशेरक, जालिक । आकृति विराट् शिवलिङ्ग जैसी है, जो मानों पवतो क मनुस्मृति (१०.३४ ) में भी कैवर्त की गणना संकर एक षोडशदल कमल के मध्य स्थित है । कैलास शिखर जातियों में की गयी है : आस-पास के समस्त शिखरों से ऊँचा है। इसकी परि- निषादो मार्गवं सूते दाशं नौकर्मजीविनम् । क्रमा ३२ मील की है जिसे यात्री प्रायः तीन दिनों में पूरी कैवर्तमिति यं प्राहरार्यावर्तनिवासिनः ॥ करते हैं । कैलास का ऊर्ध्व भाग तो प्रायः अगम्य है, केवल्य-सब उपाधियों से रहित केवल ( शद्ध मात्र ) की उसका स्पर्श यात्रामार्ग से लगभग डेढ़ मील सीधी चढ़ाई अवस्था ( भाव ) । यह मोक्ष अथवा मुक्ति का पर्याय है। पार करके किया जा सकता है और यह चढ़ाई पर्वतारोहण पातञ्जलि योगसूत्र के कैवल्य पाद में कहा गया है : की विशिष्ट तैयारी के विना शक्य नहीं है । कैलास के पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसवः कैवल्यं स्वरूपशिखर की ऊँचाई समुद्रस्तर से १९,००० फुट कही जाती प्रतिष्ठा वा चितिशक्तिरिति । ( सत्र ३३)। है। कैलास के दर्शन एवं परिक्रमा करने पर जो अद्भूत [जब सभी गणों-सत्त्व. रज और तम का परुषार्थ शान्ति एवं पवित्रता का अनुभव होता है वह स्वयं अनुभव (कार्य) समाप्त हो जाता है और उससे जो स्थिति की वस्तु है। उत्पन्न होती है वही सभी विकारों से रहित स्थिति कैवल्य कैलास शब्द की व्युत्पत्ति कई प्रकार से की गयी है : है। अथवा अपने स्वरूप ( शुद्ध ज्ञानरूप ) में प्रतिष्ठा क अर्थात् जल में जिसका लसन अथवा लास्य हो (के जले (सम्यक् स्थिति ) कैवल्य है । ] लासो लसनं दीप्तिरस्य ) वह कैलास कहलाता है । दूसरी कैवल्यसार-वीरशैव मत का पन्द्रहवीं शती में रचित एक व्युत्पत्ति है : केलियों का समूह कैल; 'कल' के साथ यहाँ ग्रन्थ । इसके रचयिता मरितोण्टदार्य नामक आचार्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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